Edited By Isha, Updated: 22 Aug, 2019 04:30 PM
प्रशासन व विभाग के शहर को साफ व स्वच्छ बनाने के दावे झूठे साबित हो रहे हैं। गंदगी की समस्या विभाग व लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। जिला प्रशासन द्वारा को शहर को साफ सुथरा रखने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहा हैं
यमुनानगर: प्रशासन व विभाग के शहर को साफ व स्वच्छ बनाने के दावे झूठे साबित हो रहे हैं। गंदगी की समस्या विभाग व लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। जिला प्रशासन द्वारा को शहर को साफ सुथरा रखने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहा हैं किन्तु विभाग अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के कारण सभी प्रयास विफल हो रहे हैं। अधिकारी-कर्मचारी व लोग स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत अभियान तो चला रहे हैं किन्तु इस पर पूरी तरह से अमल नहीं कर पा रहे हैं। गंदगी के हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं। शहर के पॉश एरिया मॉडल टाऊन, प्यारा चौक, मॉडल कालोनी, छोटी लाइन, सरोजनी कालोनी, कृष्णा कालोनी, मधु कालोनी आदि के साथ-साथ मुख्य सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व गली-मोहल्ले सभी में कूड़े के ढ़ेर नजर आ रहे हैं।
विभाग शहर के सौंदर्यीकरण के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने की बात कर रहा है किन्तु जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। विभाग द्वारा कूड़ा एकत्र करने के लिए चलाए गए वाहनों से भी यह समस्या कम होती नजर नहीं आ रही है और अब विभाग द्वारा कुछ स्थानों से कूड़ेदान हटा दिए गए हैं, जिससे लोगों को घरों व दुकानों का कूड़ा सड़क किनारे ही डालना पड़ रहा है। शहरवासी ममतेश शर्मा, नीलम दुरेजा, रंजना गुप्ता, पूजा, निधि सांगवान, ललित, सुमिल, रणजीत सिंह, निर्मल सिंह आदि का कहना है कि प्रशासन द्वारा शहर को साफ-सुथरा रखने के लिए उठाए जाने वाले कदम कोई असर नहीं दिखा रहे हैं, जिसका खमियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है।
विभाग व कर्मचारियों के लापरवाही के कारण जहां शहर का वातावरण दूषित हो रहा है, वहीं इसका दुष्प्रभाव शहर की सुंदरता पर भी पड़ रहा है।जिस कारण लोगों को मजबूरन अपने घर का कूड़ा कूड़ेदान में डालना पड़ता है अथवा प्राइवेट कूड़ा एकत्र करने वालों को देना पड़ता है, जिसकी एवज में यह कूड़ा एकत्र करने वाले मासिक शुल्क लेते हैं। कूड़ेदान में डाले गए कूड़े को उठाने के लिए कई-कई दिन तक कोई कर्मचारी नहीं आता, और कालोलियों में सफाई नहीं होती है। विभाग करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी शहर को साफ सुथरा रखने में असमर्थ है। पार्षद व नगर निगम अधिकारी इस समस्या पर बात करने से बचते नजर आते हैं और पूछे जाने पर चुप्पी साध लेते हैं।