किन्नू उत्पादन में सिरसा बना किंग

Edited By Isha, Updated: 26 May, 2019 01:47 PM

sirsa ban king in kinnu production

गेहूं एवं कपास उत्पादन में अव्वल रहा सिरसा जिला अब सीट्रस के उत्पादन में भी सिरमौर बन गया है। सीट्रस वर्ग में आने वाले किन्नू एवं नींबू उत्पादन में सिरसा जिले ने नए आयाम रच दिए हैं। आलम यह है

सिरसा : गेहूं एवं कपास उत्पादन में अव्वल रहा सिरसा जिला अब सीट्रस के उत्पादन में भी सिरमौर बन गया है। सीट्रस वर्ग में आने वाले किन्नू एवं नींबू उत्पादन में सिरसा जिले ने नए आयाम रच दिए हैं। आलम यह है कि सिरसा जिले में पूरे प्रदेश का 55 फीसदी किन्नू का उत्पादन हो रहा है। पिछले 20 बरस में किन्नू उत्पादन का रकबा 4278 हैक्टेयर से बढ़कर 9500 हैक्टेयर तक हो गया है। उत्पादन भी 80 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 2 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है।  उद्यान विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार ही 2015 में जिले में 9450 हैक्टेयर रकबे पर 1 लाख 98 हजार 332 हैक्टैयर किन्नू का उत्पादन हुआ। पूरे राज्य में उत्पादन 3 लाख 2 हजार हैक्टेयर रहा। सिरसा का किन्नू राज्य के अलावा पंजाब, राजस्थान, दिल्ली व चंडीगढ़ में बिकता है।

 दरअसल सिरसा पिछले काफी समय से गेहूं एवं कपास उत्पादन में नम्बर 1 स्थान पर है। करीब 3 लाख 86 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि वाले सिरसा जिले में प्रदेश की 40 फीसदी कॉटन का उत्पादन होता है। पिछले कुछ अर्से से बागवानी की ओर से बढ़ रहे रुझान के चलते यहां किसान अब किन्नू की काश्त करने लगे हैं। पूरे राज्य में 19499 हैक्टेयर क्षेत्र पर किन्नू के बाग हैं। इनमें से 40 फीसदी बाग अकेले सिरसा जिले में करीब 9500 हैक्टेयर रकबे पर हैं।

खास बात यह है कि कॉटन काऊंटी के रूप में प्रसिद्ध सिरसा, फतेहाबाद एवं हिसार जिलों की तिकड़ी अब सीट्रस के उत्पादन में लम्बी छलांग मार रही है। मसलन पूरे प्रदेश के 6 लाख हैक्टेयर में से हर साल इन 3 जिलों में 4 लाख 20 हजार हैक्टेयर रकबे पर कपास की खेती होती है। अब यही आलम किन्नू की खेती के लिहाज से है। पूरे राज्य में 19,499 हैक्टेयर में से इन 3 जिलों में 14 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में किन्नू के बाग हैं। 2006-07 में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के आने के बाद सिरसा में बागवानी की खेती को बढ़ावा मिला। 66 में यहां कुछेक एकड़ पर बाग थे। 80 में बागों का रकबा 2 हजार हैक्टेयर था। 96-97 में 4278 हैक्टेयर जबकि 2001 में रकबा 5557 हैक्टेयर था। अब यह एरिया 10 हजार हैक्टेयर तक पहुंच गया है। कुछ भी हो परम्परागत फसलों का मोह त्याग बागवानी की ओर किसानों का रुझान होना एक अच्छा संकेत है।
 

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