क्या रुक पाएगा उद्योगपतियों का पलायन

Edited By Updated: 18 Nov, 2015 02:14 PM

what would stop migration of industrialists

बहादुरगढ़ का विकास गुडग़ांव व फरीदाबाद की तर्ज पर करने का सपना प्रदेश की कई सरकारों ने लोगों को

बहादुरगढ़, (प्रवीण भारद्वाज) : बहादुरगढ़ का विकास गुडग़ांव व फरीदाबाद की तर्ज पर करने का सपना प्रदेश की कई सरकारों ने लोगों को दिखाया, लेकिन यह शहर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के साथ सटा होने के बावजूद गुडग़ांव व फरीदाबाद की तरह आज तक विकसित नहीं हो पाया। इसके पीछे सरकारों की नीतियां व सैल्स टैक्स पालिसी के अलावा बिजली,पानी,सडक़ और मजदूरों की कमी भी कारण मानी जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र के संगठन बी.सी.सी.आई. पर राजनीतिक आधिपत्य भी हावी रहा है। इससे इंडस्ट्रीज के क्षेत्र में बहादुरगढ़ फरीदाबाद की तरह पूरे देश में नाम नहीं कमा पाया और न ही नामी कम्पनियां इस क्षेत्र में अपना उद्योग स्थापित कर पाईं। हालांकि कुछ नामी कम्पनियां यहां स्थापित हैं, मगर यूनियनबाजी के चक्कर में मालिकों ने इन यूनिटों को भी दूसरे राज्यों में स्थापित करना शुरू कर दिया है। 
सन 1957 में संयुक्त पंजाब के समय काटा गया बहादुरगढ़ का पुराना औद्योगिक क्षेत्र आज तक सही रूप से विकसित नहीं हो पाया है। इसके जो भी कारण रहे हों, लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया जारी है। कई उद्योग तो इस क्षेत्र से लगने के बाद पलायन कर गए। कई औद्योगिक इकाइयां अब भी स्थापित हो रही हैं। पुराने औद्योगिक क्षेत्र के बारे में जब उद्योगपति प्रवीण गर्ग से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि संयुक्त पंजाब के समय काटे गए ये प्लाट अब विकसित अवस्था में पहुंच रहे हैं। इस क्षेत्र की यह दशा इस कारण हुई क्योंकि हरियाणा बनने के बाद एम.आई.ई. (आधुनिक औद्योगिक क्षेत्र) दिल्ली सीमा पर काट दिया गया। इसलिए इस क्षेत्र की बजाय उद्योगपतियों ने दिल्ली से सटे क्षेत्र को ज्यादा प्राथमिकता दी। उन्होंने इस क्षेत्र के विकसित न होने का सबसे बड़ा कारण सैल्स टैक्स पालिसी को माना। हालांकि इसमें अब भी कुछ फैक्ट्रियां वर्षोंं से बंद पड़ी हुई हैं। 
इस क्षेत्र के बाद उद्योगपतियों के लिए बसाया गया नया क्षेत्र एम.आई.ई. आज भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है और यह भी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया। इस क्षेत्र में अब भी काफी प्लाट खाली पड़े हुए हैं। बहुत सी फैक्ट्रियां इस क्षेत्र में आई और पलायन कर गई। इस क्षेत्र के विकसित न होने का सबसे बड़ा कारण यहां बिजली व पानी की कमी रहा है। उद्योगों को पनपने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यकता बिजली व पानी की होती है जो इस क्षेत्र को नहीं मिल पाई है। बिजली की समस्या से फैक्ट्रियों का उत्पादन कम होता चला गया। जिससे फैक्टरी मालिक घाटे में आ गए और वे यहां से पलायन कर गए। इस संबंध में जब बहादुरगढ़ चैम्बर आफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष अशोक रेढू से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि उद्योगों को पनपने के लिए अच्छा राजनीतिक माहौल, सुदृढ़ कानून व्यवस्था, बिजली व मजदूरों की आवश्यकता होती है। उन्होंने माना कि लगभग सैकड़ों फैक्ट्रियां यहां से पलायन कर चुकी हैं, जबकि सरकारों नें हर बार उद्योगपतियों को समुचित बिजली सप्लाई देने की बात कही। मगर उद्योगपतियों को आश्वासन के सिवाए उनकी आवश्यकता के अनुरूप बिजली की आपूर्ति नहीं मिली है। अन्य सुविधाओं में अच्छे रोड जहां से बड़े व छोटे वाहनों द्वारा अपना माल सप्लाई कर सके। वह भी इस क्षेत्र को नहीं मिल पाए। इस कारण घाटे के चलते उद्योगपति यहां से चुपचाप खिसक गए। 
रेढू ने बताया कि उद्योगपतियों के विकास व समस्याओं को सुलझाने के लिए बनाई गई संस्था बहादुरगढ़ चैम्बर आफ कामर्स एडं इंडस्ट्रीज पर भी राजनीतिक हावी रही है। जिस कारण उद्योगपति को अपना काम निकलवाने के लिए क्षेत्र के नेताओं के आगे पीछे घूमना पड़ता है। जो स्वतंत्रता उद्योगों को पनपने के लिए चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पा रही है। ऐसे में उद्योगपतियों को पलायन के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखाई देता और जहां अच्छी सुविधाएं मिलती है वे वहीं पर अपना उद्योग स्थापित कर लेते हैं। 

फुटवियर पार्क 
हाल में काटे गए एच.एस.आई.आई.डी.सी. में फुटवियर पार्क में अब अनेक जूता इकाइयों ने काम शुरू कर दिया है। इससे बहादुरगढ़ में औद्योगिक गतिविधियां भी तेज होने लगी हैं। युवाओं को भी रोजगार के अवसर मिलने लगे हैं। फुटवियर पार्क एसोसिएशन के महासचिव सुभाष जग्गा के अनुसार एशिया का सबसे बड़ा जूता उद्योग बहादुरगढ़ है। नई सरकार से उद्योगपतियों को विशेष राहत पैकेज की उम्मीद है।
मेट्रो भी दे सकती है विकास की गति
मुंडक़ा से बहादुरगढ़ तक मेट्रो को हरी झंडी कांग्रेस सरकार में ही मिल गई थी। सरकार बदलते ही एक बार मेट्रो का काम रुक गया था, लेकिन अब यह फिर से गति पकड़ गया है। उद्योगपतियों का मानना है कि मेट्रो से जहां बहादुरगढ़ की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनेगी। किसी भी औद्योगिक नगरी के लिए यातायात के साधन बड़े मायने रखते हैं। ऐसे में मेट्रो का आगमन शहर के लिए मील का पत्थर साबित होगा। मेट्रो अधिकारियों की मानें तो दिसम्बर 2016 तक यहां लोग मेट्रो की सवारी कर सकेंगे। इस  की गति को देखते हुए अब यहां व्यवसायिक गतिविधियां तेज हो गई हैं।

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