Edited By Updated: 15 Mar, 2016 10:36 AM
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि सतलुज-यमुना संपर्क (एसवाईएल) नहर के जरिए जल बंटवारे पर पंजाब और हरियाणा के बीच लड़ाई में वह किसी का पक्ष नहीं ले रहा है।
नई दिल्ली: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि सतलुज-यमुना संपर्क (एसवाईएल) नहर के जरिए जल बंटवारे पर पंजाब और हरियाणा के बीच लड़ाई में वह किसी का पक्ष नहीं ले रहा है। न्यायमूर्ति ए.आर. दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष केंद्र की यह दलील विवादास्पद नहर के निर्माण के खिलाफ पंजाब विधानसभा द्वारा विधेयक पारित किए जाने के कुछ ही घंटे पहले आई।
हरियाणा की आेर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के कार्यालय द्वारा 13 मार्च को जारी किए गए प्रेस बयान के बारे में ध्यान दिलाया, जिसमें कहा गया था कि कैबिनेट ने पंजाब सतलुज यमुना संपर्क नहर (पुनर्वास एवं संपत्ति अधिकार लौटाने) विधेयक लाने का फैसला किया है जो नहर द्वारा अधिग्रहित की गई 5, 300 एकड़ भूमि को गैर अधिसूचित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
उन्होंने दलील दी कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 के सिलसिले में राष्ट्रपति द्वारा न्यायालय से मांगी गई सलाह उस साल से लंबित है, जबकि अब सुनवाई शुरू होने पर पंजाब कैबिनेट ने एक फैसला किया है जो संविधान के संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा करता है। उन्होंने कहा कि हरियाणा एक अर्जी देगा और पंजाब के एेसे किसी कदम का विरोध करेगा। पीठ में न्यायमूर्ति पीसी घोष, न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह, न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय भी शामिल थे।
उन्होंने सुनवाई जारी रखते हुए पंजाब सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता आर.एस. सूरी को हरियाणा द्वारा जताई गई आपत्तियों और घटनाक्रम पर निर्देश लेने को कहा। सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सलाह में केंद्र कोई पक्ष नहीं लेगा और बाद में शीर्ष कानून अधिकारी अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी उनके साथ दलील दी। हालांकि, रोहतगी ने कहा कि यदि पंजाब आगे बढ़ता है और कानून लागू करता है तो इसकी पड़ताल करनी होगी और इसपर एक विचार लेना होगा। अटार्नी जनरल ने कहा कि मौजूदा परिदृश्य में सुनवाई टाली जानी चाहिए जिसके बाद पीठ इस पर 17 मार्च को सुनवाई करने को राजी हो गई।