12 चुनावों में से आधा दर्जन में निर्दलीयों ने छोड़ी छाप

Edited By Deepak Paul, Updated: 15 Jan, 2019 11:32 AM

out of 12 elections independents left the mark in half a dozen

जींद विधानसभा सीट को लेकर अगर अतीत के चुनावी पन्ने खंगालें तो इस सीट पर कई तरह के रोचक तथ्य सामने आते हैं। खास बात यह है कि 1967 से लेकर 2014 तक हुए 12 चुनाव में से आधा दर्जन चुनाव ऐसे रहे हैं जब निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी खास छाप छोड़ी है, जबकि...

जींद(संजय अरोड़ा): जींद विधानसभा सीट को लेकर अगर अतीत के चुनावी पन्ने खंगालें तो इस सीट पर कई तरह के रोचक तथ्य सामने आते हैं। खास बात यह है कि 1967 से लेकर 2014 तक हुए 12 चुनाव में से आधा दर्जन चुनाव ऐसे रहे हैं जब निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी खास छाप छोड़ी है, जबकि एक चुनाव में 1977 में मांगेराम गुप्ता ने आजाद उम्मीदवार के रूप में जीत भी दर्ज की। 

जींद सीट पर सन् 1967, 1972, 1977, 2000, 2005, 2009 व 2014 के चुनाव में आजाद उम्मीदवारों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। 1967 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के बाबू दया किशन ने जीत हासिल की जबकि दूसरे स्थान पर 12211 वोट लेकर आजाद उम्मीदवार ईश्वर सिंह ने अपना प्रभाव छोड़ा। इसी तरह से 1968 के चुनाव में 16,136 मत लेकर आजाद उम्मीदवार शंकर दास दूसरे स्थान पर रहे। रोचक पहलू यह है कि 1977 के चुनाव में तो मांगेराम गुप्ता ने 15,751 वोट हासिल करते हुए आजाद उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। खास बात यह है कि अनेक चुनावों में आजाद उम्मीदवारों ने कई सियासी दलों का गणित भी गड़बड़ाया। मसलन साल 2000 में आजाद उम्मीदवार बलवंत सिंह ने 5,604 वोट हासिल किए। 

उनके इतनी अधिक वोटों के चलते ही इनैलो उम्मीदवार गुलशन कुमार को 5000 वोटों से हार झेलनी पड़ी। इसी तरह से साल 2005 के चुनाव में आजाद उम्मीदवार बृजमोहन सिंगला ने 21,075 वोट हासिल किए। यही वजह रही कि इनैलो के सुरेंद्र सिंह को हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह से साल 2009 के चुनाव में आजाद उम्मीदवार बलवंत सिंह ने 8,220 वोट हासिल किए तो 2014 के चुनाव में आजाद उम्मीदवार टेकराम कंडेला ने 11,218 वोट हासिल किए।

किसी सियासी दल ने नहीं आजमाया महिला प्रत्याशी को 
जींद में अब तक 12 चुनाव हुए लेकिन अभी तक किसी भी सियासी दल ने महिला उम्मीदवार पर भरोसा नहीं जताया। यह बात दीगर है कि जींद विधानसभा में 75,000 से अधिक महिला मतदाता हैं लेकिन आधी आबादी अभी तक यहां पर टिकट से मोहताज ही रही है। खास बात यह है कि जहां किसी सियासी दल ने किसी महिला उम्मीदवार पर भरोसा नहीं जताया, वहीं आजाद उम्मीदवार के रूप में भी महिलाओं ने यहां स्वयं चुनाव लडऩे में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। 1967 से लेकर 1977 तक हुए चुनाव में कोई भी महिला उम्मीदवार मैदान में नहीं थी। 1982 में जानकी देवी ने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और महज 375 वोट हासिल किए। इस बार उपचुनाव में किसी भी प्रमुख दल ने महिला उम्मीदवार पर भरोसा नहीं जताया। यह जरूर है कि चुनावी दंगल में इस बार 2 निर्दलीय महिला उम्मीदवार उतरी हैं। 
 

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