कारगर साबित नहीं हो रहा निगम का पॉलीथिन पर बैन लगाने का अभियान

Edited By Isha, Updated: 17 May, 2019 11:53 AM

campaign to impose ban on corporation s polyethylene not proven effective

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) के आदेशों पर नगर निगम द्वारा पिछले 4 दिनों से पॉलीथिन की रोकथाम के लिए चलाया गया अभियान कारगर साबित नहीं हो रहा। बेशक अभियान को गति देने के लिए व

हिसार (सपड़ा): नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) के आदेशों पर नगर निगम द्वारा पिछले 4 दिनों से पॉलीथिन की रोकथाम के लिए चलाया गया अभियान कारगर साबित नहीं हो रहा। बेशक अभियान को गति देने के लिए व चालान करके जुर्माना वसूलने के लिए मुख्य सफाई निरीक्षक सुभाष सैनी के नेतृत्व में टीम गठित की गई है और अस्पतालों व बड़े प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है लेकिन कछुआ गति से चल रही कार्रवाई के कारण रोजाना गिने-चुने चालान काटकर खानापूर्ति की जा रही है। 

असलियत यह है कि भारी मात्रा में पॉलीथिन या तो बड़े दुकानदारों के पास जमा है अन्यथा बाजारों में परचून के दुकानदारों व रेहडिय़ों पर रखा हुआ है। सरेआम पॉलीथिन बेचने के हालात यहां तक बिगड़े हुए हैं कि सब्जी मंडी व इसके आसपास पॉलीथिन बेचने की स्टॉल तक लगती है। इतना ही नहीं बाजारों में साइकिलों व माटरसाइकिलों पर होम डिलीवरी तक दी जा रही है।

लगभग 30 चालान  काट 40 हजार  जुर्माना वसूला
नगर निगम की टीम मुख्य सफाई निरीक्षक सुभाष सैनी के नेतृत्व में सहायक सफाई निरीक्षक सुरेन्द्र कुमार, राजकुमार, रोहित सोनी के अलावा पोल्यूशन विभाग के कर्मचारियों के साथ अभी तक दिल्ली रोड, राजगढ़ रोड़, बालसमंद चौक, ऋषि नगर, जिंदल चौक व कैंट एरिया में अभियान चलाकर गंदगी फैलाने व पॉलीथिन का प्रयोग करने पर लगभग 30 प्रतिष्ठानों या व्यक्तियों के चालान काटकर लगभग 40 हजार रुपए जुर्माने के रूप में वसूल कर चुकी है। यहां उल्लेखनीय है कि टीम चाहे तो रोजाना हर क्षेत्र में दर्जनों चालान रोज करके लाखों रुपए वसूल कर सकती है। 

क्यों नहीं सफल हो पाता अभियान
पॉलीथिन की बात हो या अन्य किसी अभियान की, हर बार कभी कुछ तो कभी कुछ व्यवधान बीच में आ जाते हैं जिस कारण सिरे चढऩे से पहले ही उस पर विराम लग जाता है। इसी कारण पूर्व में विभिन्न अधिकारियों के बैनर तले चले कई अभियान सिरे चढऩे से पहले ही दम तोड़ गए। अधिकारियों ने अपनी कार्यशैली दिखाते हुए अनेक योजनाएं तो बनाई किंतु कभी समयाभाव आड़े आ गया तो कभी कर्मचारियों की कमी तो कभी ट्रांसफर ने योजनाओं की रफ्तार को रोक दिया। 

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