Edited By Rakhi Yadav, Updated: 22 May, 2018 07:38 AM
प्रदेश के कई जिलों में कॉटन इंडस्ट्रीज हैं। प्रदेश में कपास का उत्पादन भी कई जिलों में होता है लेकिन मार्केट फीस अधिक होने के कारण प्रदेश की कपास पड़ोसी राज्यों में चली जाती है। फिर प्रदेश के कॉटन उद्योगों को उन्हीं....
अम्बाला(वत्स): प्रदेश के कई जिलों में कॉटन इंडस्ट्रीज हैं। प्रदेश में कपास का उत्पादन भी कई जिलों में होता है लेकिन मार्केट फीस अधिक होने के कारण प्रदेश की कपास पड़ोसी राज्यों में चली जाती है। फिर प्रदेश के कॉटन उद्योगों को उन्हीं राज्यों से महंगे दामों पर कॉटन खरीदनी पड़ती है।
यानि अपना जूता अपने ही सिर पर पड़ रहा है। मार्केट फीस कम करने की मांग काफी समय से की जा रही है लेकिन सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है।
पंजाब के साथ सटे सिरसा जिले में कपास का उत्पादन करीब 35 फीसदी होता है। इस जिले में करीब 3 दर्जन कॉटन इंडस्ट्रीज हैं। फतेहाबाद, हिसार, भिवानी व महेंद्रगढ़ आदि जिलों में भी कपास का अच्छा उत्पादन होता है।
कपास पर मार्केट फीस पंजाब और राजस्थान दोनों से ज्यादा है। इससे बचने के लिए किसान अपनी कपास को राजस्थान और पंजाब की मंडियों में बेचते हैं। इससे एक ओर जहां आढ़तियों को नुक्सान उठाना पड़ रहा है, तो दूसरी ओर कॉटन उद्योग दम तोडऩे को मजबूर है। उद्योगपतियों को प्रदेश की कपास दूसरे राज्यों में चले जाने के कारण पर्याप्त कॉटन नहीं मिल पाती। प्रदेश में कॉटन के भाव कम रहते हैं।
जब उद्योगपतियों को कॉटन नहीं मिल पाती तो वे दूसरे राज्यों से कॉटन खरीदते हैं। उन्हें महंगे दामों पर कॉटन खरीदनी पड़ती है। उत्पादन लागत बढऩे के कारण उद्योगपतियों का मुनाफा कम हो जाता है। प्रदेश का कॉटन उद्योग इस समय गहरे आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। कर्ज में डूबे उद्योगपतियों को सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिल रही है। कर्जदार उद्योगपतियों को बैंकों से भी लोन नहीं मिल पाता।