दिलचस्प: क्या ऐलनाबाद से उप चुनाव लड़ेंगे अभय चौटाला? अगर जीते तो उठेंगे इस्तीफे पर सवाल!

Edited By Shivam, Updated: 06 Feb, 2021 11:16 PM

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इंडियन नेशनल लोकदल के महासचिव अभय सिंह चौटाला द्वारा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या अभय चौटाला ऐलनाबाद का उपचुनाव लड़ेंगे? यदि वे चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं तो उससे भी बड़ा सवाल यह पनपेगा है कि अगर...

ऐलनाबाद (सुरेन्द्र सरदाना): इंडियन नेशनल लोकदल के महासचिव अभय सिंह चौटाला द्वारा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या अभय चौटाला ऐलनाबाद का उपचुनाव लड़ेंगे? यदि वे चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं तो उससे भी बड़ा सवाल यह पनपेगा है कि अगर चौटाला को चुनाव लडऩा ही था तो उनके इस्तीफे का औचित्य क्या था?



माना कि अभय सिंह चौटाला ने केन्द्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों पर समर्थन के नाम पर प्रभाव छोडऩे के लिए इस्तीफा दिया है। वे किसानों की वेदना से त्रस्त होकर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के बीच आंदोलन का समर्थन करने पहुंचे और तीन कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए केंद्र सरकार से सभी तीन कानून निरस्त करने की मांग भी की। 



इसके अलावा, अभय सिंह चौटाला ने सरकार को एक डेडलाइन देते हुए अपना इस्तीफा भी हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष को ई मेल कर डाला कि अगर 26 जनवरी तक सभी कानून निरस्त नहीं किए गए तो 27 जनवरी को उनका इस्तीफा मंज़ूर कर लिया जाए। लेकिन स्पीकर ने इस सशर्त इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया और इसे नियम के विरुद्ध बताया। उसके बाद भी अभय सिंह चौटाला अपनी की गई घोषणा के अनुरूप व्यक्तिगत रूप से हरियाणा विधानसभा में पहुंचे और स्पीकर ज्ञान चन्द गुप्ता को अपना इस्तीफा सौंप दिया और स्पीकर ने यह इस्तीफा मंज़ूर कर लिया और सूचना निर्वाचन आयोग को भी दे दी।



ऐसे में ऐलनाबाद विधानसभा की सीट खाली होने के चलते ऐलनाबाद में उप चुनाव होना तय है। अब सवाल यह उठता है कि क्या अभय सिंह चौटाला खुद या फिर इनेलो पार्टी से किसी अन्य उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारेंगे? या फिर यह निर्णय लेंगे कि जब तक तीनों कृषि कानून रद्द नहीं हो जाते तब तक उनकी पार्टी का कोई भी उम्मीदवार अथवा वे खुद चुनावी दंगल में नहीं उतरेंगे? ऐसे में यदि अभय सिंह ऐलनाबाद उपचुनाव लड़ते भी हैं और दोबारा चुनाव जीत भी जाते हैं तो फिर इस प्रकार दिए इस्तीफे का क्या औचित्य रह जाता है?



सवाल यह भी उठता है कि क्या यह ऐसा नहीं कि ऐसा चुनाव लडऩा न केवल आमजन को बरगलाना है या फिर आम चुनाव करवा जनता की खून पसीने की कमाई को व्यर्थ रूप में बहाना है? हालांकि अब देखना बाकी है कि अभय तीन कृषि कानूनों के निरस्त होने तक चुनाव लड़ते हैं या नहीं? बहरहाल, कुछ भी हो अभय चौटाला चुनाव लड़ें या न लड़ें लेकिन उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे कर किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी देवी लाल की याद लोगों में ताजा करवा दी।

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