SYL को लेकर पंजाब-हरियाणा के बीच 'जल- विवाद क्यो? जानें अब तक क्या-क्या हुआ

Edited By Isha, Updated: 11 Feb, 2020 01:32 PM

why  water dispute  between punjab and haryana regarding syl

एसवाईएल के पानी पर भले ही सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के हक में फैसला सुना दिया हो, लेकिन पंजाब हरियाणा को उसका पानी देने को तैयार नहीं है।बीते दिन पंजाब में एसवाईएल को लेकर सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें हरियाणा को

चंडीगढ़ (धरणी)- एसवाईएल के पानी पर भले ही सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के हक में फैसला सुना दिया हो, लेकिन पंजाब हरियाणा को उसका पानी देने को तैयार नहीं है।बीते दिन पंजाब में एसवाईएल को लेकर सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें हरियाणा को एसवाईएल का पानी ना देने का बिल पारित किया गया।पंजाब के इस फैसले से हरियाणा की राजनीति गर्मा गई है, और जिसके चलते पक्ष विपक्ष के नेता अपने हक में आवाज बुलंद करने लगे हैं।हरियाणा के  गृहमंत्री अनिल विज ने इस मामले में पंजाब को दो टूक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि आपसी बातचीत का दौर खत्म हो चुका था, अब तो सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा जिसे सबको मानना ही पड़ेगा।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल  का कहना है कि बैठक से साफ हो गया है कि पंजाब जल विवाद को सुलझाना ही नहीं चाहता। हम पंजाब सरकार के इस रुख से सुप्रीम कोर्ट में अवगत करवाएंगे। हरियाणा के नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी सर्वदलीय बैठक के फैसले को गलत बताया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के अपना फैसला कर चुका है। ऐसे में उसे अपने हक का पानी मिलेगा पंजाब में हुई सर्वदलीय बैठक को हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने देश की संघीय व्यवस्था के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी को मानना होगा।

सत्ता पक्ष की ओर से मुख्यमंत्री से लेकर गृहमंत्री व तमाम छोटे-बड़े नेता एसवाईएल के पानी पर अपने अधिकार का दावा कर रहे हैं और विपक्ष भी पंजाब से पानी हर कीमत पर लेने का दम भर रहा है। हालांकि अब हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की एग्ज़िक्यूशन के लिए डाला हुआ है, ऐसे में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कहतें  हैं कि पंजाब की सभी राजनीतिक दलों की सर्वदलीय बैठक हुई जिसमें हरियाणा को पानी नही देने का प्रस्ताव पास किया गया। सभी पार्टियों एक ही स्वर में पंजाब के पास फालतू पानी नहीं होने की बात कही। बैठक में दोनों राज्यो के बीच जल विवाद के निपटारे के लिए  नया ट्रिब्यूनल बनाने के भी मांग की गई है।

1981 को पंजाब और हरियाणा के बीच  हुआ था जल समझौता
1966 से पहले हरियाणा पंजाब का हिस्सा होता था। 1966 में हरियाणा बना तो प्रदेश में सिंचाई के पानी की कमी थी। इसको दूर करने के लिए केंद्र सरकार सरकार के हस्तक्षेप से 31 दिसंबर 1981 को पंजाब और हरियाणा के बीच जल समझौता हुआ था।  

पंजाब में अब तक नहर का काम नहीं हुआ पूरा
सतलुज यमुना लिंक नहर की कुल लंबाई 211 किलोमीटर है जिसमें से 121 किलोमीटर का हिस्सा पंजाब में आता है और 90 किलोमीटर का हिस्सा हरियाणा में आता है। हरियाणा में अपने हिस्सा बनकर तैयार है लेकिन लंबे समय बीत जाने के बाद पानी नहीं आने के कारण हिस्सा जर्जर हो चुका है। वहीं पंजाब को अपने हिस्से की नहर बनाने के लिए 1991 तक का समय दिया गया था। लेकिन पंजाब में अब तक नहर का काम पूरा नहीं हुआ है। हरियाणा को यदि एसवाईएल का पानी मिलता है तो इससे करीबन करीब साढे चार लाख हेक्टेयर जमीन पर अतिरिक्त सिंचाई होगी। एस वाई एल का पानी मिलने से दक्षिण हरियाणा में सिंचाई की किल्लत दूर हो जाएगी। पंजाब और हरियाणा के बीच नहर निर्माण का काम शुरू हो गया। लेकिन राजनीति के चलते नहर का निर्माण कार्य बीच में ही रुक गया और मुद्दा कोर्ट में उलझ गया।

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में सुनाया था फैसला
लंबी चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में पंजाब सरकार को हरियाणा को उसके हिस्से का पानी देने की आदेश दिए और नहर निर्माण की जिम्मेदारी केंद्र जिम्मेवारी केंद्र सरकार को सौंप दें। इसके बाद 2004 में पंजाब विधानसभा ने एकतरफा ऑल वाटर एग्रीमेंट टर्मिनेशन बिल पास कर दिया। इसके बाद राष्ट्रपति ने जल समझौता निरस्त विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट सेेे राय मांगी। जिस पर 12 साल बाद 10 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट ने कहा कि कोई भी सरकार एकतरफा समझौते से नहीं हट सकती है।

फिलहाल हरियाणा सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है और उम्मीद जता रही है कि कोर्ट का फैसला जल्द आ जाएगा, वहीं पंजाब सरकार भी एसवाईएल के पानी को लेकर अड़ गई है। पंजाब सरकार का कहना है कि जब एसवाईएल नहर में हरियाणा को देने के लिए पर्याप्त पानी ही नहीं है, तो पानी का बंटवारा कैसे किया जा सकता है। हालांकि एसवाईएल को लेकर दोनों प्रदेशों की सियासत पूरी तरह से गर्म हो चुकी है, ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही इस जल संग्राम को खत्म कर सकता है।

 

 

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