Edited By Isha, Updated: 02 Dec, 2020 03:46 PM
तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली कूच करने से रोकने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा किसानों को हिरासत में लेने के खिलाफ डाली गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट मंगलवार को सुनवाई हुई। किसानों को गिरफ्तार करने पर हाईकोर्ट
चंडीगढ़: तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली कूच करने से रोकने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा किसानों को हिरासत में लेने के खिलाफ डाली गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट मंगलवार को सुनवाई हुई। किसानों को गिरफ्तार करने पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को डिटेल एफिडैविट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। दरअसल आज हरियाणा सरकार के वकील ने कोर्ट को कहा कि जिन किसानों को हिरासत में लिया गया था उनको छोड़ दिया गया है इसलिए इस याचिका का निपटारा किया जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि किसानों को छोड़ देना काफी नहीं है हमारे लिए यह जानना भी जरूरी है कि क्या किसानों को कानून के तहत हिरासत में लिया गया था या नहीं और क्या उन्हें हिरासत में लेना कानूनी तौर पर सही था या नहीं। मामले की अगली सुनवाई 18 दिसम्बर को होगी।
मामले पर सुनवाई के दौरान किसानों दृारा रिज्वाइंडर डाला गया। किसानों के वकील प्रदीप रापडिय़ा ने कोर्ट को बताया कि कानून के तहत किसानों की गिरफ्तारी नहीं की गई और न ही उनको कोई लीगल एड मुहैया करवाई गई। उन्होंने बताया कि हिरासत में किसानों को हार्डकोर क्रिमिनल की तरह ट्रीट किया गया और उनको अलग-अलग धाराओं में क्रिमिनल घोषित करने की कोशिश की गई। प्रदीप रापडिय़ा ने कहा कि किसानों के साथ हुए इस व्यवहार के चलते उन्हें मुआवजा मुहैया करवाया जाए। दरअसल हरियाणा प्रोग्रैसिव फार्मर्स यूनियन सबका मंगल हो नामक संगठन ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि वो सभी थानों में जांच के लिए सरकारी खर्चे पर वारंट ऑफिसर तैनात करे, वारंट ऑफिसर थानों की जांच कर निर्दोष किसानों को रिहा करवाए व सरकार ऐसे किसानों को उचित मुआवजा जारी करे।
संगठन के वकील प्रदीप रापडिय़ा ने बैंच को बताया कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवम्बर को किसानों संगठनों के आह्वान पर किसान दिल्ली जाना चाहते है लेकिन हरियाणा के विभिन्न जिलों में पुलिस ने मंगलवार देर रात से बुधवार सुबह 5 बजे तक सैंकड़ों किसानों को अवैध हिरासत में रख लिया। उन्होंने कोर्ट को समाचार पत्रों की खबरें व सरकार द्वारा जारी बयान की जानकारी भी दी थी। किसान संगठन की तरफ से कोर्ट को बताया गया था विरोध करना उनका कानूनी हक है और सरकार उनको दिल्ली जाने से रोक कर उनके इस अधिकार का हनन कर रही है।