CM की हसरत लिए सक्रिय राजनीति से आऊट हुए ‘ट्रैजडी किंग’

Edited By Isha, Updated: 19 Nov, 2019 10:29 AM

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बांगर की धरती पर लंबे समय तक कांग्रेस और अब 5 साल से भारतीय जनता पार्टी का झंडा बुलंद करने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह डूमरखां ऐसे नेता हैं जो मुख्यमंत्री बनने की इच्छा अपने मन में लिए सक्रिय राजनीतिक से आऊट हो गए हैं। अब वह बेटे के माध्यम से अपनी...

करनाल (शर्मा) : बांगर की धरती पर लंबे समय तक कांग्रेस और अब 5 साल से भारतीय जनता पार्टी का झंडा बुलंद करने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह डूमरखां ऐसे नेता हैं जो मुख्यमंत्री बनने की इच्छा अपने मन में लिए सक्रिय राजनीतिक से आऊट हो गए हैं। अब वह बेटे के माध्यम से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगे। हरियाणा की राजनीति में बीरेंद्र सिंह की छवि मुंहफट,अक्खड़ व साफगोई से बात करने वाले नेता की रही है। चौधरी बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में रहे हों या भाजपा में लेकिन उनकी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा कभी खत्म नहीं हुई।

कांग्रेस में रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपना जूनियर बताकर उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाना डूमरखां की दिनचर्या का हिस्सा रहा है।  किसान नेता दीनबंधु सर छोटूराम के नाती के रूप में राजनीति में सक्रिय रहे चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कई बार छोटूराम के माध्यम से एक वर्ग का सर्वमान्य नेता बनने का प्रयास किया लेकिन हर बार पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व कई अन्य नेता इनकी राह में रोड़ा बनते रहे।

चौधरी बीरेंद्र सिंह ने इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपने आई.ए.एस.बेटे बृजेंद्र सिंह को राजनीति में स्थापित करने के लिए खुद मंत्री पद से इस्तीफा देकर राज्यसभा सांसद के रूप में इस्तीफे की पेशकश की थी। इस बीच भाजपा ने बीरेंद्र के बेटे को हिसार से पार्टी प्रत्याशी बनाया और वह लोकसभा में पहुंच गए।  इस दौरान बीरेंद्र सिंह का राज्यसभा सांसद पद से इस्तीफा ठंडे बस्ते में चला गया और हरियाणा में विधानसभा चुनाव दौरान राव इंद्रजीत सहित भाजपा के कई नेताओं ने बीरेंद्र सिंह के राज्यसभा तथा उनके बेटे के लोकसभा में होने का हवाला देकर पत्नी प्रेमलता को उचाना से टिकट दिए जाने का विरोध किया।

इसके बावजूद पार्टी ने प्रेमलता को प्रत्याशी तो बनाया लेकिन वह दुष्यंत चौटाला के मुकाबले चुनाव हार गईं। अब बांगर की धरती तथा उचाना में अपनी खिसक रही जमीन को बचाने के लिए बीरेंद्र सिंह ने सक्रिय अथवा सत्ता की राजनीति से खुद को अलग करते हुए संगठन की मजबूती के बहाने अपना घर बचाने की कवायद शुरू कर दी है।अब बेटे को मिल सकता है मोदी मंत्रिमंडल में स्थान
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने लोकसभा चुनाव से पहले जब केंद्र में मंत्री पद छोड़ा तो राजनीति के गलियारों में इस बात की चर्चा थी कि उनके स्थान पर उनके सांसद बेटे को केंद्र में जगह मिल सकती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुद हिसार में रैली दौरान इस बात का ऐलान किया था कि बृजेंद्र को लोकसभा में भेज दीजिए बीरेंद्र सिंह के स्थान पर उन्हें बिठाने की जिम्मेदारी पार्टी की है। इसके बावजूद मोदी मंत्रिमंडल में बृजेंद्र को स्थान नहीं मिला। अब बीरेंद्र सिंह द्वारा सक्रिय राजनीतिक को अलविदा कहे जाने के बाद वह अपने बेटे को मोदी सरकार का हिस्सा बनाने के लिए प्रयास करेंगे।

बतौर सांसद सक्रिय रहे हैं बीरेंद्र 
चौधरी बीरेंद्र सिंह डूमरखां कांग्रेस व भाजपा में रहते हुए 3 बार राज्यसभा के सांसद बने। उनको वर्ष 2010 में कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में भेजा गया। हालांकि बीरेंद्र सिंह का कार्यकाल वर्ष 2016 तक था लेकिन वह वर्ष 2014 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए जिसके बाद वह केंद्र में मंत्री बने और भाजपा ने उन्हें वर्ष 2016 में फिर से राज्यसभा में भेज दिया। हालांकि बीरेंद्र सिंह का कार्यकाल 11 जून 2022 तक था लेकिन उन्होंने गत दिवस इस्तीफा दे दिया। बीरेंद्र सिंह डूमरखां ने बतौर सांसद वित्त विभाग, शिक्षा तथा ग्रामीण विकास संबंधित कई मुद्दे उठाए।

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