फिर गर्माने लगा एस.वाई.एल. का मुद्दा

Edited By Punjab Kesari, Updated: 24 Jan, 2018 12:28 PM

then started heating up s y l  issue

लोकसभा चुनाव को करीब एक साल पड़ा है लेकिन हरियाणा में एस.वाई.एल.  नहर का मुद्दा फिर से गर्माना शुरू हो गया है। अपने ग्रामीण जनाधार को कायम रखने के लिए इनेलो पार्टी इसे सबसे ज्यादा उछाल रही है जबकि खेमों में बंटी कांग्रेस कानून व्यवस्था की बदहाली को...

अम्बाला(ब्यूरो): लोकसभा चुनाव को करीब एक साल पड़ा है लेकिन हरियाणा में एस.वाई.एल.  नहर का मुद्दा फिर से गर्माना शुरू हो गया है। अपने ग्रामीण जनाधार को कायम रखने के लिए इनेलो पार्टी इसे सबसे ज्यादा उछाल रही है जबकि खेमों में बंटी कांग्रेस कानून व्यवस्था की बदहाली को हवा देने में जुटी है। इनेलो नेता अभय चौटाला ने गत दिवस कुरुक्षेत्र व करनाल में कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 15 फरवरी को जींद में पार्टी के मोटरसाइकिल रोड शो में आने से पहले एस.वाई.एल. पर सार्वजनिक तौर पर अपना पक्ष स्पष्ट करें अन्यथा इनेलो जींद में काले झंडों के साथ उनके खिलाफ प्रदर्शन करेगी। बता दें कि पिछले साल 23 फरवरी को अभय की अगुवाई में प्रदेशभर के इनैलो कार्यकर्ताओं व नेताओं ने हरियाणा-पंजाब सीमा पर पंजाब के इलाके में एस.वाई.एल. नहर की खुदाई करने की कोशिश में गिरफ्तारियां दी थीं। कहा जाता है कि उसके बाद से अकाली दल व इनैलो के बीच दूरियां बढऩे लगीं।

उम्र से पहले बूढ़ी लगने लगी नहर, किनारे भी टूटे
अर्से से लावारिस-सी जिंदगी जी रही यह एस.वाई.एल. नहर उम्र से पहले बूढ़ी लगने लगी है। विडम्वना यह है कि इससे बिल्कुल सट कर बह रही नरवाना ब्रांच केनाल हमेशा पानी से लबालब रहती है जबकि एस.वाई.एल. केनाल में कभी-कभार 2-3 फुट ही पानी नजर आता है। करीब 3 दशकों से वीरान पड़ी इस नहर के किनारे भी टूट गए हैं। कोर्ट जब भी पंजाब को इसमें पानी छोडऩे का फैसला देगा तब इसे चालू करने में काफी वक्त लग सकता है।

3 दशकों से हरियाणा-पंजाब के बीच पानी की जंग जारी
दरअसल एस.वाई.एल. नहर हरियाणा के किसानों की जीवन रेखा है। पिछले 3 दशकों से हरियाणा पंजाब से अपने हिस्से का पानी लाने के लिए राजनीतिक व कानूनी लड़ाई लड़ रहा है जबकि पंजाब हरियाणा को एक बूंद तक पानी देने के लिए तैयार नहीं है। अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। जब-जब हरियाणा, पंजाब व केंद्र में एक ही दल की सरकारें रहीं तब भी इस मामले में आपसी सहमति नहीं बन सकी। अब केंद्र व हरियाणा में भाजपा की सरकारें हैं जबकि पंजाब कांग्रेस के कब्जे में है, ऐसे माहौल में तो आपसी सहमति का कोई फार्मूला निकलना असंभव है।

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