सट्टा मार्केट के बदलते भाव, तेज हो रही उम्मीदवारों की धड़कनें

Edited By Deepak Paul, Updated: 18 Jan, 2019 09:37 AM

the changing prices of the speculative market the beating of the fast

हरियाणा के जींद विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हैं तो सियासी पर्यवेक्षक लगातार इस चुनाव को लेकर अपना आकलन करने में लगे हुए हैं...

जींद (संजय अरोड़ा): हरियाणा के जींद विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हैं तो सियासी पर्यवेक्षक लगातार इस चुनाव को लेकर अपना आकलन करने में लगे हुए हैं। इन सबके बीच हर चुनाव में जीत-हार को लेकर अपना अलग से अनुमान लगाने वाले सट्टा बाजार की भी प्रदेश के इस उपचुनाव पर खास निगाहें हैं। सट्टा मार्कीट से जुड़े लोग पूरे जींद विधानसभा क्षेत्र में अपना डेरा जमाकर पल-पल बदलते समीकरणों पर फोकस करते हुए जीत-हार पर अपने भाव तय कर रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि 10 जनवरी को नामांकन पत्र दाखिल करने के अंतिम दिन सभी पाॢटयों के उम्मीदवारों के सामने आ जाने से सट्टा मार्कीट द्वारा विभिन्न उम्मीदवारों की स्थिति को लेकर भाव देने शुरू कर दिए गए थे। इस हफ्ते दौरान सट्टा मार्कीट के भाव लगातार ऊपर-नीचे होते रहे हैं। सटोरियों द्वारा उम्मीदवारों की स्थिति को लेकर आए दिन भावों में किए जा रहे बदलावों के साथ जींद उपचुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की धड़कनें भी तेज होती दिख रही हैं।

यूं लगता है सट्टा

चुनाव में लगने वाला यह सट्टा बाजार कैसे अपना काम करता है? इस बारे तह तक जाने पर पता लगा कि सट्टा बाजार पूरी तरह मोबाइल नैटवर्क के जरिए अपना काम करता है। सट्टा लगवाने वाले को बुकीज बोलते हैं जबकि इन बुकीज के जरिए सट्टा लगाने वाले को फंटर बोला जाता है।

दोनों पक्ष आमने-सामने की बजाय मोबाइल कॉल पर ही भाव लेते हैं और संबंधित अपने हिसाब से उस भाव पर पैसा लगाते हंै। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस बाजार में भाव स्थिर नहीं रहते और हर पल समीकरणों के साथ-साथ ही भाव भी अप-डाऊन चलते हैं लेकिन यह पूरा खेल मोबाइल के जरिए ही खेला जाता है।

ऐसे तय होते हैं भाव

सट्टा कारोबारियों का अपना ही एक नैटवर्क होता है। इस बाजार से जुड़े लोग किसी सर्वे इत्यादि पर नहीं अपितु स्वयं द्वारा किए गए सर्वेक्षण के बाद उम्मीदवार की स्थिति के लिहाज से भाव तय करते हैं। भाव उम्मीदवारों की स्थिति के साथ-साथ उसकी सभाओं व लोगों की भीड़ वगैरह देखकर भी घोषित किए जाते हैं और चुनावी नतीजों तक उनके भाव अदल-बदल कर सट्टा लगाने वाले इच्छुक को बता दिए जाते हैं मगर इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्थिति ही सही मायने में उम्मीदवारों का बाजार भाव तय करती है। जानकारी के अनुसार सट्टा मार्कीट द्वारा किसी भी चुनाव में उम्मीदवारों की जीत-हार का भाव देने से पहले संबंधित चुनाव क्षेत्र का पूरी गहनता से सर्वे किया जाता है और इस सर्वे दौरान सट्टा बाजार से जुड़े लोग संबंधित क्षेत्र के मतदाताओं से बात करने के साथ-साथ मीडिया से जुड़े लोगों के अलावा विभिन्न दलों के नेताओं से भी फीडबैक जुटाते हैं और फिर उम्मीदवारों के जातीय समीकरणों के आधार पर अपना एक अलग आकलन तैयार करते हुए जीत-हार के भाव तय करते हैं।

यह होता है भाव का अर्थ

सट्टा बाजार द्वारा बताए जाने वाले भाव का सीधे शब्दों में अर्थ उम्मीदवार की उस वक्त की स्थिति होती है। मसलन किसी भी उम्मीदवार की स्थिति मजबूत है तो भाव पैसों में होते हैं और बेहद कमजोर वाले के रुपयों में होते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसी का भाव 50 पैसे है तो इसका मतलब है कि सट्टा लगाने वाले को 10,000 रुपए के बदले में जीत में केवल 5,000 रुपए मिलेंगे और जिसका भाव 2 रुपए है तो उस पर सट्टा लगाने वाले को 2,000 रुपए की एवज में 10,000 रुपए का जीतने पर भुगतान मिलेगा। अर्थात सट्टा मार्कीट में जिस उम्मीदवार का भाव अधिक होगा उसके जीतने की संभावना कम ही नजर आती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सट्टा मार्कीट का आकलन हर बार सही हो, ऐसा भी नहीं है। 

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