गुड़गांव में अधिग्रहित की गई जमीन मामले में सीबीआई जांच से नाखुश सुप्रीम कोर्ट

Edited By vinod kumar, Updated: 05 Dec, 2019 05:25 PM

supreme court unhappy over cbi probe in land acquired in gurgaon

गुडग़ांव में रिहायशी और व्यवसायिक विकास के लिए 2009-2010 में अधिग्रहित की गई 1400 एकड़ जमीन में से 1313 एकड़ जमीन छोड़े जाने के मामले में चल रही सीबीआइ जांच के तौर तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने नाखुशी जाहिर की है। कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को मामला देखने का...

डेस्क: गुडग़ांव में रिहायशी और व्यवसायिक विकास के लिए 2009-2010 में अधिग्रहित की गई 1400 एकड़ जमीन में से 1313 एकड़ जमीन छोड़े जाने के मामले में चल रही सीबीआई जांच के तौर तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने नाखुशी जाहिर की है। कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को मामला देखने का निर्देश देते हुए कहा है कि वह उम्मीद करते हैं कि मामले में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच होगी। इस मामले की निगरानी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। कोर्ट ने मामले को जनवरी में फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एक नवंबर 2017 को मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिये थे ताकि ये पता चल सके कि जमीन छोडऩे के पीछे पैसे के लेन देन या बिल्डरों से सांठगांठ तो नहीं थी। कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच कर छह महीने में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी अभी तक जांच पूरी नहीं हुई है सीबीआई समय मांगती जा रही थी। गत 2 दिसंबर को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने मामले पर सुनवाई के दौरान सीबीआइ के जांच के तरीके पर नाखुशी जाहिर की।

सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता और एएसजी विक्रमजीत बनर्जी मौजूद थे जबकि भूस्वामी किसानों की ओर से वकील जसबीर सिंह मलिक थे। कोर्ट ने सीबीआई जांच के तरीके पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह ठीक नहीं है। कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को आदेश दिया कि वह इस मामले को देखे। इस मामले में भूस्वामी किसानों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण की यह कार्यवाही अधिकारों का दुरुपयोग और द्वेषपूर्ण प्रक्रिया थी। कोर्ट ने इसी बात पर जांच सीबीआइ को सौंपी थी।

भूमि अधिग्रहण का यह मामला गुडग़ांव के 58 से 67 सेक्टर के बीच पडऩे वाले आठ गांव बादशाहपुर, बेहरामपुर, नागली उमारपुरा, तिगरा, उल्लावास, खादरपुर, घाटा और मडवास की 1400 एकड़ जमीन का है। हरियाणा सरकार ने रिहायशी और व्यवसायिक विकास के लिए 2009 में इन गावों की 1400 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की धारा 4 की अधिसूचना निकाली, लेकिन 2010 में सिर्फ 800 एकड़ जमीन के लिए ही धारा 6 की अधिसूचना जारी की गई बाकी जमीन छोड़ दी गई। 

इसके बाद मई 2012 में अवार्ड सिर्फ 87 एकड़ जमीन का ही हुआ बाकी सारी जमीन छोड़ दी गई। इस मामले में जिन लोगों की जमीन अंतत अधिग्रहित कर अवार्ड जारी किया गया उनमें से छह लोगों ने अधिग्रहण को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने किसानों की याचिका पर अधिग्रहण रद कर दिया था।हाईकोर्ट के खिलाफ हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट आयी थी। सुनवाई के दौरान किसानों की ओर से जसबीर सिंह मलिक ने आरोप लगाया गया था कि जिन लोगों ने बिल्डरों को जमीन दे दी है उनकी जमीनें अधिग्रहण से छोड़ दी गई हैं और जिन्होंने बिल्डरों को जमीन नहीं दी थी उनकी जमीन अधिग्रहित कर ली गई। सरकार की बिल्डरों के साथ मिली भगत है।

हालांकि सरकार ने आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि सरकार ने योजना के तहत जमीन विकसित करने के लिए बिल्डरों को लाइसेंस दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने 87 एकड़ जमीन बाहरी विकास जैसे बिजली का सब स्टेशन, वाटर वर्कस, अस्पताल स्कूल आदि बनाने के लिए अधिग्रहित की है। बाहरी विकास करना सरकार की जिम्मेदारी है। हाईकोर्ट का यह यह कहना ठीक नहीं है बाहरी विकास भी बिल्डर की जिम्मेदारी है। 

सुप्रीम कोर्ट सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं हुआ था और उसने नवंबर 2017 में मामला सीबीआई को जांच के लिए भेजते हुए कहा था कि पूरा मामला देखने से लगता है कि सरकार ने शक्तियों का दुरुपयोग किया है। सरकार ने बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रावधानों का बेजा इस्तेमाल किया है। मामले की सीबीआइ जांच होनी चाहिए ताकि पता चल सके कि जो जमीन छोड़ी गई उसमें पैसे का लेनदेन तो नहीं हुआ।

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