बीस वर्ष से चली आ रही HSGPC में झींडा की सल्तनत हुई ध्वस्त!

Edited By Shivam, Updated: 15 Aug, 2020 08:43 PM

sultanate of jhinda collapsed in hsgpc

हरियाणा गुरुद्वारा सिख प्रबन्धक कमेटी के 13 अगस्त को  हुए 41 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों के हुए चुनाव में पिछले बीस वर्षों से हरियाणा की कमेटी की सत्ता पर काबिज जगदीश सिंह झींडा की सल्तनत ध्वस्त हो गई है। सम्पन्न हुए चुनाव में कुल 41 सदस्यों में से 36...

ऐलनाबाद (सुरेंद्र सरदाना): हरियाणा गुरुद्वारा सिख प्रबन्धक कमेटी के 13 अगस्त को  हुए 41 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों के हुए चुनाव में पिछले बीस वर्षों से हरियाणा की कमेटी की सत्ता पर काबिज जगदीश सिंह झींडा की सल्तनत ध्वस्त हो गई है। सम्पन्न हुए चुनाव में कुल 41 सदस्यों में से 36 सदस्यों ने ही मतदान किया। जिसमें 19 मत बलजीत सिंह दादूवाल के पक्ष में तथा 17 मत जसबीर खालसा जी की झींडा खेमे से अध्यक्ष पद की दौड़ में था, को पड़े।

इस प्रकार 1 मत ने ही जगदीश झींडा को, जो वर्ष 2000 से लगातार हरियाणा सिक्ख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान चले आ रहे थे, उनकी सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। जगदीश झींडा ने अभी भी अपनी जीत सुनिश्चित गिनी हुई थी लेकिन स्वर्ण सिंह रतिया जो गत अनेक वर्षों से झींडा का पीए भी रहा, ने मतदान वाले दिन अचानक अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए यूटर्न लिया और अपना बलजीत दादूवाल की तरफ दिया और दादूवाल की प्रधान पद की जीत पर मोहर लगा दी।

इसी खुशी में, वर्ष 2014 में जब हरियाणा सरकार ने अलग हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन किया तब इस अलग कमेटी के लिए दादूवाल खेमे के सदस्य व अनेक दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठने वाले जरनैल सिंह बराड़ ने बलजीत दादूवाल के प्रधान बनने पर खुशी जाहिर की व अपने प्रतिष्ठान पर लड्डू बांटे। उन्होंने बताया कि जगदीश झींडा गत अनेक वर्षों से तानाशाह बने हुए थे और उनकी हार से एक तानाशाह युग का अंत हो गया है। हरियाणा में पंजाब की तर्ज पर हरियाणा में पनप रहा एक ओर तानाशाह बादल के उबरने पर रोक लग गई है जो कि हमारे लिए खुशी की बात है।

उन्होंने बताया कि हरियाणा में अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी गठन की मांग को ले कर वर्ष 2000 में डाजर सिंह व त्रिलोक सिंह मान जेल सुपरिंटेंडेंट के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था और वर्ष 2002 में जगदीश झींडा को तब कमेटी का प्रधान बनाया था। तबसे अब तक वह अपने इस पद पर तानाशाही रवैये से इस पद पर बने रहे। कड़े विरोध और चुनाव की मांग के बाद आखिर 17 जुलाई को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और 13 अगस्त को सम्पन्न हुए चुनाव में उन्हें हार का मुह देखना पड़ा और बलजीत दादूवाल इस पद पर सुशोभित हुए।

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