फलदार पौधें बांटकर मनाया शहीद-ए-आजम उधम सिहं का बलिदान दिवस

Edited By Naveen Dalal, Updated: 31 Jul, 2019 05:14 PM

shaheed e azam udham singh s sacrificial day celebrated

इंद्री में शहीद-ए-आजम उधम सिहं के बलिदान दिवस पर शहीद उधम सिहं समिति द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस दौरान सभी वर्ग, धर्म व सियासी दलों के नेताओं ने शहीद के चरणों में पुष्प अर्पित कर जनता के सामने एकजुटता की मिसाल पेश की....

इंद्री (मैनपाल): इंद्री में शहीद-ए-आजम उधम सिहं के बलिदान दिवस पर शहीद उधम सिहं समिति द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस दौरान सभी वर्ग, धर्म व सियासी दलों के नेताओं ने शहीद के चरणों में पुष्प अर्पित कर जनता के सामने एकजुटता की मिसाल पेश की। इस समारोह में पर्यवरण प्रदूषण की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए सभी लोगों को एक-एक फलदार पौधा वितरित कर नई पहल की गई। शहीद को श्रद्धाजंलि देने के साथ समाज के पर्यावरण प्रदूषण को खत्म करने की दिशा में की गई इस पहल की लोगों ने खूब प्रशंसा की।

इस दौरान शहीद उधम सिहं समिति के अध्यक्ष एम एस निर्मल ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि शहीद उधम सिहं का जीवन सघंर्ष से भर हुआ है। जिसने देश के लिए अपने प्रणों की आहूति देकर लोगों के सामने देशप्रेम एवं राष्ट्रवाद की अलख जगाई। राम मोहमद सिंह आजाद नाम रखने वाले शहीद उधम सिंह ने देश की एकता व अखण्डता का अद्भूत नमूना पेश किया। उधम सिंह ने बोज बिरादरी में पैदा होकर का बोज बिरादरी का गौरव जरूर बढ़ाया, लेकिन उन्होंने अपने प्राणों की कुर्बानी देश के सभी कौम व वर्ग के लोगों के लिए देकर इतिहास के स्वर्ण पन्नों पर अपना नाम अंकित करा लिया।

एम एस निर्मल ने  कहा कि शहीद उधम सिहं का जन्म 26 दिस बर 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे में साधारण किसान टहल सिहं के घर में हुआ। उधम सिहं के बच्पन में मां का निधन हो गया। इसके बाद पिता और भाई का भी साया उनके सिर से उठ गया। अनाथ हुए शहीद उधम सिहं को अमृतसर के अनाथ आश्रम में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। जब उधम सिहं ने जवानी की तरफ कदम रखा तो 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में बैसाखी के पर्व के दौरान इकटठे हुए निर्दोष लोगों पर अंग्रेज हकूमत के  गवर्नर माईकल ओयडवायर और जरनल डायर ने गोलियां चलवा दी।

इस दृष्य से उधम सिहं का खून खोल उठा तथा वहीं पर खून से सनी मिट्टी को उठकर इस घटना के दोषियों को सजा देने का निर्णय ले लिया। इसके लिए वह इंग्लैंड गए तथा भरी जनसभा में ही दोनों आरोपियों की हत्या करने की इंतजार में करीब 20 वर्ष तक विकट परिस्थितियों से लड़ते रहे। आखिरकार वह दिन आ गया जिस दिन की वह इंतजार में तडफ़ रहे थे। 13 मार्च 1940 को इग्लैंड के किग्ंसटन हाल में एक जनसभा हो रही थी और उसमें माईकओयडवायर हिन्दुस्तानियों की हत्या करने की सेखी पधार रहे थे तो उधम सिहं ने पिस्तौल निकालकर उसे वहीं ढ़ेर कर दिया। इस दौरान उधम सिहं ने मौका से भागने की बजाय अपनी प्रतिज्ञा के तहत शहीद होने का चयन किया। इंग्लैंड में अदालत में उनपर मुकदमा चलाया गया और 5 जून को उन्हे फांसी की सुना दी गई तथा 31 जुलाई 1940 को उन्हे शहीद कर दिया गया। 

निर्मल ने कहा कि शहीद उधम सिहं ने देश के निर्दोष लोगों की हत्या करने से वालों से विदेश में जाकर बदला लेकर जनता के मन में आजादी, राष्टभक्ति एवं मानव प्रेम की प्रेरण जगाने का महान काम किया है। ऐसे महान शहीद की शहादत दिवस के मौके पर एक-एक फलदार पेड़ लगाकर उसके पोषण का संकल्प लें। उधम सिंह ने अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलवाने की अलग जगाई तो आज पर्यावरण प्रदूषण की गुलामी से आजादी पाने की जरूरत है, जो पेड़ लगाकर साकार हो सकती है। शहीद की शहादत के मौके पर लगे फलदार पेड़ के फल खाने से देशप्रेम और राष्टवाद की मिठास मानव के मन में घुलती रहेगी।   

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