अर्थशास्त्र की छात्रा ने बिगाड़ा राजनीतिक धुरंधरों का खेल, सबसे कम उम्र में बनी चेयरमैन

Edited By Nisha Bhardwaj, Updated: 31 May, 2018 10:27 AM

seema kashyap becomes chairman

महज 24 साल की उम्र और एम.ए. अर्थशास्त्र की कक्षा में पढ़ाई। कैथल नगर परिषद के चुनाव में इसी छात्रा सीमा कश्यप ने राजनीति के कई धुरंधरों को न सिर्फ मात दी बल्कि देश की संभवतया सबसे कम उम्र की चेयरमैन बनने का गौरव हासिल कर लिया। भले ही इसके पीछे...

अंबाला (वत्स): महज 24 साल की उम्र और एम.ए. अर्थशास्त्र की कक्षा में पढ़ाई। कैथल नगर परिषद के चुनाव में इसी छात्रा सीमा कश्यप ने राजनीति के कई धुरंधरों को न सिर्फ मात दी बल्कि देश की संभवतया सबसे कम उम्र की चेयरमैन बनने का गौरव हासिल कर लिया। भले ही इसके पीछे कांग्रेसी नेता रणदीप सुरजेवाला का बड़ा रोल माना जा रहा है लेकिन इस छात्रा ने भाजपा का खेल बिगाड़ने में सबसे बड़ा योगदान दिया। संयोग यह रहा कि एक दिन पूर्व ही वह कांग्रेस में शामिल हुई और फिर चेयरमैन बन गई।

भाजपा के पास 31 में से 17 पार्षद थे। एक वोट विधायक और एक वोट सांसद का डलना था। यानी कुल 33 वोटों में से 17 वोट वाले खेमे की जीत निश्चित थी। भाजपा इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी कि बहुमत होने के कारण चेयरमैन पद उन्हें ही मिलेगा। सूत्रों के अनुसार भाजपा के पार्षदों ने चेयरमैन का निर्णय सी.एम. मनोहर लाल खट्टर पर छोड़ दिया था। सभी भाजपा पार्षद सी.एम. से मिले थे। सी.एम. से चेयरमैन का नाम मांगा था। उन्होंने बंद लिफाफे में नाम देकर पार्षदों को भेज दिया था। जब चेयरमैन के नाम का लिफाफा खोला गया तो उसमें पूजा मित्तल के नाम की पर्ची थी। इस बात की जानकारी रणदीप सुरजेवाला को लगी तो उन्होंने भाजपा को मात देने की पूरी तैयारी कर ली। बताया जा रहा है कि रणदीप ने तत्काल सीमा कश्यप से संपर्क साधकर उन्हें समर्थन देने की स्थिति में चेयरमैन बनाने का ऑफर दे दिया। 

भाजपा की ओर से इस चुनाव में जहां राजकुमार सैनी को भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट करना था तो अपने प्रत्याशी को चेयरमैन बनाने की जिम्मेदारी भाजपा ने कृष्ण बेदी पर डाली हुई थी। किसी को इस बात का विश्वास ही नहीं था कि अर्थशास्त्र की छात्रा सीमा कश्यप ने भाजपा को झटका देकर यह साबित कर दिया कि अर्थशास्त्र की यह छात्रा रजनीतिक विज्ञान की छात्रा की तरह बड़ा उलटफेर करने में सक्षम है। भाजपा के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं है। साथ ही सुरजेवाला ने भी यह साबित कर दिया उनके गढ़ में वह विरोधियों की जीत को भी हार में बदलने का माद्दा रखते हैं। साथ ही भाजपा के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। 
 

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