हनीट्रैप के दर्जनों मामलों में पुरुषों को इंसाफ दिलवा चुकी हैं सविता आर्य

Edited By Shivam, Updated: 23 Nov, 2021 04:54 PM

savita arya has got justice for men in dozens of honeytrap cases

''''कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता- एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों'''' समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध- घरेलू हिंसा और असुरक्षा के माहौल को मध्य नजर रखते हुए पानीपत की एक साधारण सी घरेलू महिला द्वारा जिस तबियत से पत्थर उछाला गया,...

चंडीगढ़ (धरणी): ''कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता- एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों'' समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध- घरेलू हिंसा और असुरक्षा के माहौल को मध्य नजर रखते हुए पानीपत की एक साधारण सी घरेलू महिला द्वारा जिस तबियत से पत्थर उछाला गया, उसने वाकई में आसमान में छेद जैसा काम कर डाला। नारी तू नारायणी उत्थान समिति आज न केवल पानीपत अपितु हरियाणा प्रदेश भर में किसी परिचय की मोहताज नहीं है। मामला भ्रूण हत्या के मिलने का हो, किसी महिला के साथ अत्याचार- मारपीट का हो, घरेलू हिंसा या शोषण का हो, समिति के संपर्क में आने वाली हर उस महिला जिसे मदद की दरकार होती है के साथ खड़ी नजर आती है। जाहिर है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अधिकार दिलवाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसके लिए बेहद हौसले और जज्बे की जरूरत है।

ऐसे में बचपन से ही महिलाओं के प्रति लगाव और सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाली सविता आर्या ने जब इस संस्था की शुरुआत की, तब उनके लिए यह एक मिशन एक पहाड़ के समान था। लेकिन आज उनकी उपलब्धियों ने उन्हें उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है कि जरूरत महसूस करने वाली हर महिला को सविता आर्या एक उम्मीद की किरण नजर आती हैं। बकौल आर्या बेटी पैदा होने पर उसे ना अपनाने वाले 2 परिवारों के एक चर्चित मामले ने उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव लाया कि वह बेटी को न्याय दिलवाने की राह पर चल पड़ी।

आर्या बताती है कि ग्रामीण आँचल में पैदा होकर पढऩे-लिखने के दौरान से ही उन्होंने पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति अत्याचार को बेहताशा रूप में देखा। ग्रामीण क्षेत्रों में शराब का सेवन कर महिलाओं को पीटने के अप्रत्याशित मामले उनकी नजर में आते रहे। जिन्होंने उनके जीवन को एक नई दिशा देते हुए इस राह पर चलने को मजबूर कर डाला। आर्या के अनुसार वह आज तक सैकड़ों महिलाओं को इंसाफ दिलवाने में सफल रही हैं। आज जो बेटियां स्कूल- कालेजों या अन्य किसी स्थान पर उनके साथ होने वाले अत्याचार की आवाज लोकलाज के डर से नहीं उठा पाती थी, अपने परिवार तक में बात करने से डरती थी, वह आज अपनी बात को खुलकर कहने तथा थाने तक में जाने से भी नहीं कतराती हैं। यह बदलाव निश्चित रूप से उनके द्वारा की गई पहल का परिणाम है। जिसे समाज के उस जरूरतमंद तबके का साथ मिल रहा है जो अपनी आवाज बुलंद करने में कतराता था।

आर्य कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत करने के दौरान भ्रूण हत्या को बड़ा शर्मनाक मामला बताते हुए चिकित्सकों की भूमिका पर भी उंगली उठाई गई थी। हालांकि इन मामलों में कमी आनी चाहिए थी। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इन मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। उनका कहना है कि न्याय केवल जरूरतमंद, पीड़ित, अबला और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए ही नहीं अपितु अजन्मी उस बच्ची के लिए भी है जिसे संसार में आने से पहले ही रोकने की सोच उसके माता-पिता रखते हैं। उनकी उपलब्धियों में अनेक टूटते घरों को बचाना, रेप पीड़िताओं के मामले दर्ज करवाते हुए आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे भिजवाना, छेड़छाड़ की शिकार बच्चियों को इंसाफ दिलवाना शामिल है। लेकिन साथ ही लोगों को भ्रूण हत्या से समाज पर पडऩे वाले प्रभावों की जानकारी देते हुए भ्रूण हत्या की कमी लाना भी मुख्य उद्देश्य है।

आर्या कहती हैं कि समाज में हो रही उथल-पुथल और अपराधों के लिए केवल पुरुषों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अपने स्वार्थ और लालच में वशीभूत कुछ महिलाएं दहेज संबंधी, बलात्कार संबंधी कानूनों का फायदा उठाते हुए निर्दोष लोगों को फंसाने का भी काम करती हैं तो हनी ट्रैप जैसे अनेक मामले भी उनके संज्ञान में आए हैं। जिनमें उन्होंने पुरुषों को भी इंसाफ दिलवाया है। आर्या के अनुसार केवल कानून मजबूत कर देने से ही समाज में बदलाव लाना संभव नहीं हो सकता। हमें अपने घर का वातावरण और माहौल इस प्रकार से बनाना होगा जिससे हमारे बच्चे अपने आपको समझने और संभालने में सक्षम बन पाए। साथ ही हमें हमारे परिवारों में खत्म हो चुके सनातनी संस्कारों को भी वापस लाना होगा।अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी से बच्चों को समय देते हुए अच्छे और बुरे का फर्क समझाना होगा। जिससे एक नए समाज का निर्माण होगा और तभी हम अपने बच्चों को सुरक्षित जीवन दे पाने में सफल हो पाएंगे।
 

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