Edited By Shivam, Updated: 29 Apr, 2019 03:49 PM
दिल मे यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी उसका रास्ता नहीं रोक सकती, कुछ ऐसा ही कर दिखाया है रेवाड़ी की बेटी रेखा चोकन ने। रेखा चोकन एक युवा साफ्टवेयर इंजीनियर है जो केरला में जॉब कर रही हैं। रेखा ने बताया कि वह कोई माउंटेनियर...
रेवाड़ी(मोहिंदर भारती): दिल मे यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी उसका रास्ता नहीं रोक सकती, कुछ ऐसा ही कर दिखाया है रेवाड़ी की बेटी रेखा चोकन ने। रेखा चोकन एक युवा साफ्टवेयर इंजीनियर है जो केरला में जॉब कर रही हैं। रेखा ने बताया कि वह कोई माउंटेनियर नहीं है मगर अब वह किसी अच्छे माउंटेनियर से कम भी नहीं है। यह प्रेरणा उसको अपनी बड़ी बहन सुनीता चोकन से मिली है जो 2011 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का संदेश देती हुई माउंट एवरेस्ट को फतह कर पाई थी।
रेखा ने बहन की प्रेरणा से ही उसने किलिमंजारो चोटी को भी फतह किया और अब इमजा आइसलैंड पीक को फतह कर पाई है। रेखा ने अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया कि यह हिमालय की 6180 मीटर ऊंची पर्वतमाला है जो बहुत ही दुर्गम व खतरनाक है जिसे उसने 9 दिन में फतह कर लिया। 12 अप्रैल 2019 को रात 2 बजे चढ़ाई शुरू की थी। उन्होंने बताया कि हमारे ग्रुप में 6 लोग थे जिसमें एकमात्र वही महिला थी। फाकडिंग, नामचि बाजार, टेंग व चुकुंग के रास्ते उन्होंने इमजा को फतेह किया।
रेखा ने बताया कि एक समय ऐसा भी आया जब चुकुंग में भारी स्नोफॉल हो रहा था, ऑक्सीजन की बहुत कमी हो गई और भयंकर ठंड की वजह से उसका सिर बुरी तरह दर्द करने लगा व ऐसा लगा कि अब आगे बढऩा मुश्किल है जान जा सकती है।
ऐसे में उसने अपनी बड़ी बहन सुनीता चोकन से फोन पर सम्पर्क कर परिस्थितियों से अवगत कराया। सुनीता ने उसे कुछ टिप्स बताए, जिन्हें प्रयोग करने पर उसे बड़ी राहत मिली। रात्रि विश्राम के बाद सुबह फिर से पैरों में वही जोश भर गया और पथरीले, लुढ़कते हुए पत्थरों, बर्फ से ढकी झील व अन्य खतरों को पार करती हुई मुकाम तक पहुंची।
रेखा ने बताया कि हमारे ग्रुप में हम सिर्फ 4 लोग ही मुकाम तक पहुंच पाए। रास्ते मे एक जर्मन कपल मिला जिसके दोनों हाथों की उंगलियां बर्फ से गल गई थी। सभी से हमें नेगेटिव फीड बैक मिला। हम आगे के रास्ते को लेकर चिंतित हो गए मगर बहन की प्रेरणा ने मुझे आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया और मैंने उस दुर्गम पीक को फतेह कर लिया।