हरियाणा की सियासत पर भी पड़ा ‘संक्रमण’ का साया, उपचुनाव में ठंडी पड़ी सियासी सक्रियता

Edited By Shivam, Updated: 03 Sep, 2020 11:25 PM

politics of haryana was also affected by  infection  political activity cold

उपभोक्तावादी युग और इसमें आई प्रतिस्पर्धा के चलते उत्पादों का बाजार खड़ा करने के लिए विभिन्न विज्ञापन निर्माताओं ने अपनी कलात्मकता का बखूबी परिचय दिया है और इसी की बानगी है कि एक शीतल कंपनी के पदार्थ के लिए ‘डर के आगे जीत है’, स्लोगन काफी प्रसिद्ध...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा): उपभोक्तावादी युग और इसमें आई प्रतिस्पर्धा के चलते उत्पादों का बाजार खड़ा करने के लिए विभिन्न विज्ञापन निर्माताओं ने अपनी कलात्मकता का बखूबी परिचय दिया है और इसी की बानगी है कि एक शीतल कंपनी के पदार्थ के लिए ‘डर के आगे जीत है’, स्लोगन काफी प्रसिद्ध हुआ था और इसका आमजन के व्यवहारिक जीवन में भी सार्थक असर दिखाई दिया मगर कोरोना काल में अब यह स्लोगन दूसरे रूप से सार्थक होता दिख रहा है। 

मसलन अब कहा जाने लगा है कि ‘डर से ही जीत है’। यानी कोरोना से डर कर परहेज न किया तो अपने जीवन से हाथ तक धोना पड़ सकता है। यह युक्ति अब प्रदेश की सियासत में भी दिखाई देने लगी है और कोरोना संक्रमण का साया प्रदेश की राजनीति पर साफ दिखाई दे रहा है। क्योंकि इस वक्त करीब आधी सरकार कोरोना के संक्रमण में ऐसी आई कि इसके डर ने हरियाणा की सियासी गतिविधियों को ही मंद कर दिया है। 

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से लेकर कई मंत्री, सांसद व विधायक कोरोना संक्रमण की चपेट में हैं और ये सभी खुद को आइसोलेट किए हुए हैं, या फिर उपचाराधीन हैं। संक्रमण की भयावहता का ही नतीजा है कि सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्षी दल भी फिलहाल हर गतिविधि से ‘दूरी’  बनाए हुए हैं और यह दूरी न केवल डर बल्कि इसलिए कि बचाव रूपी डर का ख्याल न रखा गया तो परिणाम कुछ और होंगे। यह वजह है कि अब राजनीतिक गतिविधियां हर तरफ ठंडी सी पड़ चुकी है और इस संक्रमण का असर बरौदा में होने वाले उपुचनाव की बिसात पर भी दिखाई दे रहा है।

गौरतलब है कि अप्रैल माह में बरौदा से कांग्रेसी विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा का निधन हो गया था और उसके बाद से यह सीट रिक्त पड़ी है। नियमानुसार छह माह के दौरान उपचुनाव करवाने का प्रावधान है। कोरोना काल के समय में भी कुछ दिन पूर्व तक सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों की दस्तक से बरौदा में उपचुनाव को लेकर गतिविधियां काफी जोर पकड़े हुए थीं और आम लोगों की निगाहें भी बरौदा उपचुनाव पर केंद्रीत होने लगी थी लेकिन धीरे धीरे संक्रमण ने ऐसी चादर फैलाई कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सहित कई विधायक और मंत्री इस संक्रमण की चपेट में आ गए।  ये सभी बेशक ट्वीटर अथवा फोन के जरिए हर गतिविधि पर फोकस किए हुए हैं मगर इनके आइसोलेट हो जाने व पब्लिक संपर्क टूट जाने के कारण प्रदेश की अन्य राजनीतिक गतिविधियों के साथ साथ बरौदा उपचुनाव पर भी संक्रमण का साया पड़ गया है।

सियासी फील्ड से दूर हुए राजनेता
बेशक अभी बरौदा उपचुनाव को लेकर आधिकारिक रूप से तिथि की कोई घोषणा न हुई हो मगर कुछ रोज पूर्व तक  इस क्षेत्र में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व उनके मंत्रियों के साथ साथ विपक्षी नेताओं भूपेंद्र सिंह हुड्डा व अभय सिंह चौटाला की दस्तक से चुनावी माहौल जरूर बन गया था। अब करीब एक हफ्ते से बरौदा में ये सभी गतिविधियां थमी हुई है और हर कोई संक्रमण के चलते सियासी फील्ड से भी परहेज करता दिख रहा है। लेकिन माना जा रहा है कि अगले माह तक बरौदा में उपचुनाव हो सकता है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि असल में कोरोना के संक्रमण के कारण ही प्रदेश की सियासत एकबारगी रूकी हुई है लेकिन इतना तय है कि अक्तूबर माह के अंतिम अथवा नवम्बर माह के प्रथम पखवाड़े तक बरौदा में उपचुनाव संभावित है और फिलहाल मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से लेकर भाजपा की ओर से चुनाव प्रभारी बनाए गए कृषि मंत्री जेपी दलाल भी कोरोना संक्रमित हैं और जैसे ही उन्हें इस संक्रमण से निजात मिल जाएगी तो निश्चित रूप से प्रदेश की सियासत में भी गर्माहट आना तय है। इसमें भी कोई दोराय नहीं कि संक्रमण के बीच यदि प्रदेश की सियासत में गर्माहट का आगाज होगा तो वह भी बरौदा से होकर ही गुजरेगा। मसलन सरकार और विपक्ष का पूरा दारोमदार बरौदा पर ही टिका होगा।

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