इस्तीफे से तेज हुई प्रदेश में सियासी हलचल, नेताओं के बीच अब जोर पकड़ने लगा वाक्ययुद्ध

Edited By Manisha rana, Updated: 15 Feb, 2021 11:20 AM

political stir in the state intensified due to resignation

मौसम के बदलते मिजाज के साथ साथ प्रदेश की सियासत में भी इन दिनों काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। हालांकि दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के कारण देश एवं प्रदेश में राजनीति अपने अपने अंदाज में गढ़ी जा रही...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : मौसम के बदलते मिजाज के साथ साथ प्रदेश की सियासत में भी इन दिनों काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। हालांकि दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के कारण देश एवं प्रदेश में राजनीति अपने अपने अंदाज में गढ़ी जा रही है लेकिन इन दिनों हरियाणा की सियासत भी एक अलग ही दिशा में चल रही है। इसी साल 27 जनवरी को ऐलनाबाद विधानसभा सीट से अभय सिंह चौटाला ने इस्तीफे की ऐसी चिट्ठी सौंपी कि इसके बाद से हरियाणा में सियासी हलचल लगातार तेज होती जा रही है। इस इस्तीफे को लेकर जहां अन्य विपक्षी दल अपनी ओर से राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं तो वहीं अभय चौटाला भी आक्रामक अंदाज में अब ‘दूसरों’ पर इस्तीफे का दबाब बनाते दिख रहे हैं। इसके साथ ही सरकार में शामिल उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और बिजली व जेल मंत्री रणजीत सिंह पूरे विपक्ष और किसान नेताओं के निशाने पर हैं। कारण साफ है कि दोनों ही नेता देवीलाल परिवार से संबंध रखते हैं। यही नहीं अभय चौटाला के इस्तीफे के बाद नेताओं में सियासी वार-पलटवार का भी सिलसिला तेज हो गया है और साथ ही इन नेताओं में वाक्युद्ध भी छिड़ गया है।

आंदोलन के कारण हरियाणा सियासी उबाल
गौरतलब है कि हरियाणा सहित देश के कई राज्यों में पिछले करीब सवा पांच माह से किसान आंदोलन जारी है। पिछले करीब अढ़ाई माह से किसान दिल्ली के सीमांत इलाकों में पड़ाव डाले हुए हैं। किसान आंदोलन के चलते हरियाणा की सियासत में भी उबाल आया हुआ है। सर्द मौसम में अभय सिंह चौटाला की ओर से ऐलनाबाद सीट से इस्तीफा दिए जाने के बाद सियासी गर्माहट और अधिक बढ़ गई है। इस्तीफा देने वाले अभय इकलौते विधायक हैं। हालांकि कई विधायक किसानों के आंदोलन के समर्थन में जरूर हैं मगर अभय के इस्तीफे का ही असर रहा कि 11 फरवरी को उन्हें महम के ऐतिहासिक चबूतरे पर किसान केसरी सम्मान से नवाजा गया। अब कुछ दिनों से अभय के इस्तीफे के बाद नेताओं में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला अधिक तेज होता जा रहा है।

अभय सिंह के इस्तीफे के बाद उनके बड़े भाई और जजपा के संस्थापक डा. अजय सिंह चौटाला ने बयान दिया कि दुष्यंत का इस्तीफा उनकी जेब में है। अगर दुष्यंत के इस्तीफे से कोई असर होता है तो वो अभी दे देते हैं। साथ ही अजय ने अपने छोटे भाई अभय सिंह के इस्तीफे को लेकर सवाल खड़ा किया था कि क्या इस इस्तीफे से समस्या का समाधान हो गया? वहीं अजय चौटाला के इस बयान पर कलायत से पूर्व विधायक जयप्रकाश जेपी ने भी पलटवार किया है। उन्होंने अजय सिंह के बयान को नौटंकी बताते हुए कहा कि वे जनता को भ्रमित कर रहे हैं।

जेपी ने कहा कि दुष्यंत से इस्तीफा मांग कौन रहा है। वे सरकार में हैं यदि वे सरकार से समर्थन वापस ले लें, सरकार 15 मिनट में गिर जाएगी। इसलिए उन्हें इस्तीफा नहीं समर्थन वापस लेना चाहिए। वहीं कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने भी अभय के इस्तीफे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। सैलजा ने कहा कि इस्तीफे से कुछ असर नहीं होने वाला। इससे पहले कांग्रेस विधायक दल के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अभय चौटाला के इस्तीफे के कदम को उनका भाजपा से मिले होने तक का आरोप लगा चुके हैं। हरियाणा में बेशक विधानसभा चुनाव हुए अभी सवा साल का ही समय हुआ है, लेकिन किसान आंदोलन और उसके बाद अभय सिंह चौटाला के इस्तीफे के बाद हरियाणा की राजनीति में सियासी हलचल बहुत अधिक तेज हो गई है और वर्तमान में प्रदेश का सियासी परिदृश्य बदला बदला सा नजर आ रहा है।

देवीलाल परिवार में भी सियासी हलचल तेज
अभय सिंह देवीलाल के पौते हैं और उनके ऐलनाबाद से इस्तीफा देने के बाद देवीलाल परिवार में भी सियासत तेज हो गई है। स्वयं देवीलाल ने भी 1985 में महम विधानसभा से एस.वाई.एल. व अन्य मुद्दों को लेकर इस्तीफा दे दिया था। अब देवीलाल के पड़पौत्र दुष्यंत चौटाला सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं तो छोटे बेटे चौ. रणजीत सिंह भाजपा सरकार में बिजली व जेल मंत्री हैं। विपक्ष के साथ-साथ देवीलाल परिवार के ये दो सदस्य अब किसान नेताओं के निशाने पर हैं। किसान संगठन कई बार दुष्यंत व रणजीत की कोठियों का घेराव कर चुके हैं। किसान संगठन हालांकि अन्य मंत्रियों से भी सरकार से समर्थन वापसी की मांग कर रहे हैं, लेकिन सबसे अधिक दबाव दुष्यंत और रणजीत सिंह पर ही बनाया जा रहा है।

2 सीटें हो गई हैं खाली
अभय सिंह चौटाला ने इसी साल 27 जनवरी को विधानसभा अध्यक्ष को विधायक पद से इस्तीफा दिया था। जबकि उसके कुछ दिन बाद विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने कालका से कांग्रेस के विधायक प्रदीप चौधरी की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी। प्रदीप को हिमाचल की एक अदालत की ओर से एक मामले में दोषी करार दिया गया था। ऐसे में हरियाणा में ऐलनाबाद और कालका दो विधानसभा सीटें खाली हो गई हैं और अब वर्तमान में कुल 88 विधायक हैं। भाजपा के पास 40, कांग्रेस के 30, जजपा के 10 और हलोपा से एक विधायक हैं तो सात आजाद विधायक हैं।

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