Edited By Rakhi Yadav, Updated: 24 Apr, 2018 09:36 AM
पेट्रोल की कीमतें करीब 55 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं जिससे जिले, राज्य और देश के आम उपभोक्ता का बुरा हाल है। पेट्रोल और डीजल के दामों में इस प्रकार की बेतहाशा बढ़ौतरी की किसी को उम्मीद नहीं थी। किसान व आमजन....
कैथल(ब्यूरो): पेट्रोल की कीमतें करीब 55 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं जिससे जिले, राज्य और देश के आम उपभोक्ता का बुरा हाल है। पेट्रोल और डीजल के दामों में इस प्रकार की बेतहाशा बढ़ौतरी की किसी को उम्मीद नहीं थी। किसान व आमजन इस वृद्धि के चलते बुरी तरह से प्रभावित है।
सरकारी तौर पर यह कहा जा रहा है कि पेट्रोलियम पदार्थों में बढ़ी महंगाई का कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतें है। जबकि सच्चाई यह है कि इस समय कच्चे तेल की कीमत 74 डॉलर प्रति बैरल है। जो अब भी 4 साल पहले की कीमत 105 डॉलर प्रति बैरल से कम है तो फिर यह कैसे मान लें कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार का असर हो रहा है।
वर्ष 2014 के मई के महीने की तुलना में अब इतने महंगे ये पदार्थ हो जाएंगे किसी ने कल्पना भी नहीं की थी और देश के अर्थशास्त्री भी यह मानते थे कि आंशिक बढ़ौतरी हो सकती है। अब आम उपभोक्ता के सामने यह सच्चाई आई है और उससे सरकार भाग रही है। ग्राहकों को भ्रम जाल में डालकर केंद्र सरकार जनता के सामने असली कारण बताने से बच रही है जबकि वास्तविकता यह है कि केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर त्रि-स्तरीय टैक्स लगाया हुआ है।
कच्चे तेल की कम कीमतों के सभी लाभ तेल कम्पनियों द्वारा लिए गए है। जिसका अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को फायदा हुआ है। जो असल में जनता को होना चाहिए था। पेट्रोल व डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त किया गया यानि उन्हें बाजार के रुख के हिसाब से तय करने का फार्मूला स्वीकार किया।
सरकार ने विभिन्न मंचों पर यही तर्क दिया कि इससे उपभोक्ताओं को ही लाभ होगा लेकिन ठीक इसके विपरीत हो गया। सरकार और कम्पनियों के वारे न्यारे हो गए और उपभोक्ता निरंतर पिसता चला गया।
आम उपभोक्ताओं ने हालांकि अलग-अलग राय व सुझाव दिए जिसका निष्कर्ष यह निकलता है कि देश को अपनी जरूरत या खप्त का करीब 80 प्रतिशत तेल आयात करना पड़ता है। इससे जहां आयात खर्च बढ़ रहा है और इसके फलस्वरूप देश का व्यापार घाटा बढ़ रहा है।