MLA रहीशा खान के खिलाफ याचिका दायर, HC ने हरियाणा सरकार से मांगा जवाब

Edited By Nisha Bhardwaj, Updated: 07 Jul, 2018 09:57 AM

petition filed against mla rahisha khan

पुन्हाना से विधायक एवं हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन रहीशा खान पर बोर्ड के चेयरमैन के रूप में शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। अम्बाला कैंट के सूफी इमरान खान ने मामले में खान के...

चंडीगढ़ (बृजेन्द्र): पुन्हाना से विधायक एवं हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन रहीशा खान पर बोर्ड के चेयरमैन के रूप में शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। अम्बाला कैंट के सूफी इमरान खान ने मामले में खान के अलावा हरियाणा सरकार एवं बोर्ड के सी.ई.ओ. को पार्टी बनाया है। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को 24 सितम्बर के लिए नोटिस जारी किया है। याचिका में हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन व मैंबर्स के खिलाफ जांच के आदेश जारी किए जाए जिसके पीछे बोर्ड द्वारा अनियमितताएं बरतने के आरोप लगाए गए हैं। 

याची के वकील अतुल यादव ने कहा है कि हरियाणा वक्फ बोर्ड राज्य में 12500 से अधिक वक्फ सम्पत्तियों का प्रबंधन करता है। 20 मार्च, 2017 को एक मीटिंग में रहीशा खान को बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। आरोपों में कहा गया है कि चेयरमैन के रूप में नियुक्ति के बाद खान ने बोर्ड में व मेवात इंजीनियरिंग कालेज में बिना पदों व प्रक्रिया के भारी संख्या में नियुक्तियां करनी शुरू कर दी। हरियाणा वक्फ बोर्ड में नियुक्तियों व अन्य गतिविधियों में सामने आई भारी अनियमितताओं के बाद मैंबर्स ने चेयरमैन की सभी शक्तियां छीन ली। ऐसे में अब चेयरमैन की शक्तियां सीमित हो गई हैं। 

सरकार को मामले में रशीदा खान द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को लेकर उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए जाने चाहिए थे। इसकी बजाय सरकार ने 9 मई, 2018 को नोटिफिकेशन जारी कर उन्हें मिनिस्टर ऑफ स्टेट का दर्जा दे दिया। साथ ही मिनिस्टर ऑफ स्टेट को मिलने वाली सभी सुविधाएं दे दी। याचिका में हरियाणा सरकार की 4 दिसम्बर, 2015 की नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है जिसे वक्फ बोर्ड एक्ट की धारा 14(1)(ए) के प्रावधानों के विरोधाभासी बताया गया है। इसके अलावा 9 मई, 2018 की नोटिफिकेशन को भी रद्द करने की मांग की गई है जिसे एक्ट की धारा 14(1)(ए) के संदर्भ में 4 दिसम्बर, 2015 के फैसले के विपरीत बताया गया है। 

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