सांसद सैनी ने नई पार्टी बनाई तो दलबदल की होगी छठी छलांग

Edited By Rakhi Yadav, Updated: 26 Aug, 2018 10:35 AM

parliamentarian saini to form a new party sixth jump

2014 में मोदी नाम की सुनामी पर सवार हो कुरुक्षेत्र से निर्वाचित हो 16वीं लोकसभा के सदस्य बने सांसद राजकुमार सैनी यूं तो हमेशा ही सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन 3 साल से जाट आरक्षण विरोधी रवैये को लेकर....

अम्बाला: 2014 में मोदी नाम की सुनामी पर सवार हो कुरुक्षेत्र से निर्वाचित हो 16वीं लोकसभा के सदस्य बने सांसद राजकुमार सैनी यूं तो हमेशा ही सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन 3 साल से जाट आरक्षण विरोधी रवैये को लेकर उनकी गतिविधियों, तीखे बयानों ने सत्तारुढ़ दल को समय-समय पर  मुसीबत में डालने का कार्य किया है। जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए बवाल को लेकर जहां उन पर भी कई बार उंगली उठी वहीं, सैनी ने भी अपनी ही पार्टी के जाट मंत्रियों व सी.एम. तक पर भी ब्यानबाजी के तीर छोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

अब वही सांसद सैनी नई पार्टी बनाने को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। यदि अपने कहे अनुसार वे नई पार्टी बना भाजपा को अलविदा कहते हैं तो यह उनके राजनीतिक करियर की संभवत: छठी छलांग होगी। वैसे सांसद सैनी को राजनीति विरासत में नहीं मिली। एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले सैनी ने पंच, सरपंच, ब्लॉक समिति, जिला परिषद सदस्य तक का सफर अपने दम पर तय किया।  जनता से सीधा संपर्क साधने की कला व सत्ता के गलियारों की राजनीतिक सीढिय़ां चढऩे की महत्वाकांक्षा के चलते सैनी ने पूर्व सी.एम. स्व. बंसी लाल की हविपा ज्वाइन कर ली और 1996 में अपने पहले ही चुनाव में विधायक व फिर राज्यमंत्री बन बैठे लेकिन विद्रोही प्रवृत्ति व जी हजूरी कम करने के चलते उन्होंने हविपा को अलविदा कह दिया। 

हविपा सरकार टूटने के बाद 1999 में जोड़-तोड़ से सत्ता में आई चौटाला सरकार में वह फिर राज्यमंत्री बन गए। 2000 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो सैनी को इनैलो का टिकट नहीं मिला। उन्होंने चौटाला को छोड़ दिया। निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन तीसरे नंबर पर रहे फिर भजन लाल की अगुवाई में कांग्रेस में चले गए, जहां उन्होंने पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह तक से अपने संबंध बना लिए थे लेकिन 2005 में उन्हें कांग्रेस ने भी टिकट नहीं दिया। 2009 के विस. चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी एच.एल.पी. के बैनर तले चुनाव लड़ा लेकिन फिर उन्हें मुंह की खानी पड़ी।

 
 

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