किसानों से नहीं सुलझ रही पराली की पहेली, बारिश से भीगे खेत अभी तक नहीं सूखे

Edited By vinod kumar, Updated: 25 Nov, 2019 02:04 PM

parali s puzzle not solved by farmers

रानियां क्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है। करनाल के बाद रानियां का चावल विश्व प्रसिद्ध है। रानियां क्षेत्र उच्चकोटि के चावल उत्पादन के लिए प्रदेश में अव्वल श्रेणी में शुमार है। क्षेत्र में धान की बढिय़ा किस्म की पैदाइश होती है। मौसम की मार से...

रानियां(विर्क): रानियां क्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है। करनाल के बाद रानियां का चावल विश्व प्रसिद्ध है। रानियां क्षेत्र उच्चकोटि के चावल उत्पादन के लिए प्रदेश में अव्वल श्रेणी में शुमार है। क्षेत्र में धान की बढिय़ा किस्म की पैदाइश होती है। मौसम की मार से परेशान किसान के धान की फसल निकालना एक चुनौती बना हुआ है। धान की फसल अभी तक खेतों में ही पड़ी है। जिन किसानों ने धान की फसल काट ली है, उन किसानों के लिए अब गेहूं की फसल बिजाई करना मुश्किल हो रहा है। पराली की पहेली उलझन बनती जा रही है।

किसान अब पराली निदान की उलझन में फंसा हुआ है। सरकार की ओर से पराली निदान के लिए कोई उचित हल नहीं निकाला गया है। हालांकि सरकार व प्रशासन ने पराली के समाधान के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं। सरपंच, नंबरदार, पटवारी गांव में किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। लेकिन धरातल की स्थिति ही कुछ और है। किसानों के लिए पराली की समस्या विकराल रूप ले रही है।

एक दिन के काम के लिए लग रहे 15 दिन
अब किसान पराली का क्या करें, यह समझ नहीं आ रहा है। किसान सरकार व प्रशासन की मानता है तो किसान उलझन में पड़ता जा रहा है। जो काम किसान एक दिन में करता था, उसी काम को आज किसान 15 दिनों से लगातार उलझ रहा है लेकिन पराली का काम खत्म नहीं हो रहा है। किसान अपने खेत में से पराली को एकत्रित करके ट्राली में भर रहा है। किसान अपने साथ 4-5 मजदूर लगाकर खेत में जुटा हुआ है कि इस बार पराली को आग नहीं लगाएंगे, लेकिन किसान पराली को एकत्रित करते-करते थक चुका है लेकिन पराली की समस्या दूर नहीं हो रही है। किसान अपने खेत में पराली की गांठों को बांधने में जुटा हुआ है। किसान हर रोज सुबह अपने खेत में आ जाता है और रात होने तक लगा हुआ है। लेकिन पराली का निदान नहीं हो रहा है। 

पराली दबाने से नहीं हो रही बिजाई
अगर बासमती की पराली वाले खेतों की बात करें तो इस क्षेत्र का किसान पलटाऊ हल से पराली को दबाने में लगा हुआ है। लेकिन किसान जितनी बार खेत की जुताई कर रहा है तो पराली उतनी ही ऊपर आ रही है। किसान काफी दिनों से उलझ रहा है। किसी तरह पराली को दबाने के कोशिश करते हैं तो पराली ऊपर आ जाती है और अगर पराली थोड़ी नीचे रहती है तो जीरो ड्रिल से बिजाई के समय ड्रिल में फंस जाती है जिससे बिजाई नहीं होती है। 

सुपर सीडर व हैपी सीडर से भी नहीं हो रही बिजाई
घग्घर के साथ लगते लाल मिट्टी वाले क्षेत्र में सुपर सीडर व हैपी सीडर भी बिजाई नहीं कर पा रहे हैं। लाल मिट्टी होने के कारण जमीन में नमी होने पर ही गेहूं की बिजाई की जाती है। लाल मिट्टी में नमी हैपी सीडर व सुपर सीडर के लिए परेशानी बन जाती है। मिट्टी सीडर्स के साथ चिपक जाती है जिससे बिजाई नहीं हो पाती है। 

नहीं मिल पा रहा सबसिडी का लाभ
अधिकतर किसानों का कहना है कि  कृषि विभाग से सबसिडी लेना टेड़ी खीर साबित हो रहा है। विभाग की ओर से नियम बहुत कड़े हैं। अनेक किसान उन नियमों को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसलिए जो किसान नियम पूरे करते हैं उन्हें तो कई बार सबसिडी मिल जाती है लेकिन जो किसान नियम पूरे नहीं करते उन्हें सबसिडी नहीं मिल पाती। प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 24 दिसम्बर 2016 को रानियां रैली के दौरान किसानों की इस मांग का हल करवाने का आश्वासन दिया था और रानियां क्षेत्र में पेपर उद्योग लगाने की बात कही थी।

प्रदेश में भाजपा व जजपा की सरकार बन गई है और प्रदेश के दोबारा मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टïर बन चुके हैं। इस सीजन में तो किसान हाल-बे-हाल हो रहे हैं और अगले सीजन की सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं। अगर सरकार पराली के निदान का उचित समाधान नहीं करता तो उच्चकोटि का चावल तैयार करने वाले किसानों का मुंह बासमती की फसल से मुड़ सकता है। 

पराली की खरीद करे सरकार
किसान नेता जगसीर सिंह भाटी ने कहा कि एन.जी.टी. को दिए गए हलफनामे की पालना करते हुए स्वयं सरकार पराली की खरीद करें। सरकार 550 रुपए प्रति किं्वटल की दर से पराली की खरीद करे। हरियाणा सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त गौशाला समय पर अपने खर्च पर कचरा उठाकर गौशाला ले जाए, सरकार मनरेगा को चालू करके मजदूरों से पराली उठाने का काम करवाए, पराली निपटान के लिए सरकार 30 लीटर डीजल में नि:शुल्क किसानों को प्रति एकड़ की दर से दे।

वहीं, किसान क्लब के प्रधान सुरेंद्र विर्क ने कहा कि पराली की समस्या को दूर करने के लिए सरकार को इसका स्थायी हल निकालने की जरूरत है। पराली के लिए सरकार को क्षेत्र में प्लांट लगाना चाहिए। पराली की गांठे बनाने के लिए यंत्र उपलब्ध करवाए जाने चाहिएं। जिन सैंटरों को सबसिडी पर यंत्र दिए जाते हैं, उन्हें कम रेट पर गांठे बनाने के लिए प्रतिबद्ध किया जाना चाहिए। 

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