एक जनवरी से नहीं निकलेगा डेढ़ लाख लीटर डीजल का धुआं

Edited By vinod kumar, Updated: 18 Nov, 2019 03:28 PM

प्रदूषण के खिलाफ जारी जंग में दस साल पुराने ऑटो गुडग़ांव की सड़कों से हटाने के सरकारी निर्णय के बाद काफी कुछ बदलाव की उम्मीदें जग गई हैं। गुडग़ांव की सड़कों को काला धूंवा से सराबोर करने वाले डीजल ऑटो से जहां मुक्ति मिलेगी और प्रदूषण के हालात में सुधार...

गुडग़ांव(मार्कण्डेय पाण्डेय): प्रदूषण के खिलाफ जारी जंग में दस साल पुराने ऑटो गुडग़ांव की सड़कों से हटाने के सरकारी निर्णय के बाद काफी कुछ बदलाव की उम्मीदें जग गई हैं। गुडग़ांव की सड़कों को काला धूंवा से सराबोर करने वाले डीजल ऑटो से जहां मुक्ति मिलेगी और प्रदूषण के हालात में सुधार होगा तो वहीं सार्वजनिक परिवहन में क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद की जा  रही है। मिलेनियम शहर पर प्रदूषण एक काला धब्बा बना हुआ है यहां की फीजा में कार्बन मोनो आक्साईड की मात्रा सामान्य से छह गुना होने के लिए बड़ी तादात में चलने वाले ऑटो जिम्मेदार है। 

गुडग़ांव में 20,000 से अधिक ऑटो वाहन डीजल से चलते हैं। ये वाहन साईबर सिटी की सड़कों पर 12 से 15 घंटे सड़कों पर दौड़ते हैं। औसतन एक ऑटो में 7 से 8 लीटर डीजल की खपत होती है। ऐसे में अनुमान से डेढ लाख से दो लाख डीजल का धुंवा प्रतिदिन वातावरण में घुलता जा रहा है। जिसके कारण कार्बन मोनो आक्साईड, सल्फर डाई आक्साईड सहित विभिन्न गैसे वातावरण में घुलकर वातावरण के तापमान को तो बढा ही रहे हैं। बल्कि ऐसे जहरीली गैसों में लगातार बने रहने से लोगों को सांस की बीमारी सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी होने का खतरा है। 

तो वहीं डेढ़ से दो लाख वाहन शहर में कार्मशियल और नॉन कार्मशियल प्रतिदिन शहर में आते हैं जिनमें प्रदूषण मानकों को लेकर न तो किसी प्रकार की जागरुकता दिखाई देती है ना ही सरकारी स्तर पर इसके लिए कोई प्रयास दिखाई देता है। नाजायज जनरेटरों पर भी लगे लगाम:-शहर में डीजल से चलने वाले 10,500 जनरेटर हैं। इनसे निकलने वाला धूंआ न केवल गुडग़ांव शहर की हवा को विषाक्त कर रहा है बल्कि पूरे एनसीआर की आबादी के लिए ही खतरा बनता जा रहा है। 

दिल्ली में दशक भर पहले ही जहां डीजल वाहनों पर रोक लगा दिया गया और सीएनजी की शुरुआत कर दी गई थी तो मिलेनियम शहर कहे जाने वाले गुडग़ांव में आज भी पुराने ढर्रे और कानून ही चलाए जा रहे हैं। शहर में तकरीबन 900 से अधिक आवासीय सोसायटियां हैं जिनकी उर्जा जरुरतों में जनरेटर का प्रयोग भी शामिल है। लाईसेंस प्राप्त करके 10,500 जनरेटर है जो  चलाए जा रहे हैं, जबकि चोरी-छिपे और बिना अनुमति के चलाए जाने वाले जनरेटरों की कितनी संख्या है, इसका कोई निश्चित आंकड़ा मौजूद नहीं है। 

साल भर में सर्वाधिक चालान भी ऑटो का:- यातायात पुलिस ने गत एक साल में तकरीबन सवा लाख से अधिक वाहनों के चालान काटे है। जिनमें सर्वाधिक चालान ऑटो चालकों का होता है कारण कि इन चालकों न तो पर्यावरण की चिंता है नाही ये नियमों का पालन करना चाहते हैं। सर्वाधिक इंपाउंड होने वाले वाहनों में भी ऑटो वाहन ही है। इतना ही नहीं, हजारों की संख्या में ऑटो चालक नाबालिग होते हैं जो सवारियों को उठाने के लिए धडल्ले से नियमों की अवहेलना करते हैं।

 रैपिड रेल, मेट्रो के विस्तार की बढेगी मांग 
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने और पर्यावरण अनूकूल होने के साथ ही त्वरित और सुलभ यातायात के लिए मेट्रों जाना जाता है। प्रदेश सरकार की तरफ से पुराने गुडग़ांव में मेट्रो प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जा चुकी है लेकिन अब तक इसे लेकर कार्रवाई आगे बढ़ती नहीं दिखाई दे रही है। दूसरी तरफ रैपिड रेल प्रोजेक्ट का कार्य जारी है जो कि डीजल ऑटो, दस साल से अधिक पुराने व्यावसायिक वाहनों के सड़कों से हटते ही आधुनिक परिवहन के साधनों के विस्तार की जरुरत होगी तो वहीं जीएमडीए की ओर से चालित इलेक्ट्रिक बसों की मांग भी बढ़ेगी।

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