किसान आंदोलन : सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब अहम होगी 15 जनवरी की बैठक

Edited By Manisha rana, Updated: 14 Jan, 2021 11:24 AM

meeting of january 15 important after the decision supreme court

तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन पिछले 49 दिनों से जारी है। केंद्र सरकार से 8 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई भी वार्ता नतीजे पर नहीं पहुंची है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से तीनों कानूनों को लागू किए जाने पर स्टे लगाए जाने और इसके...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन पिछले 49 दिनों से जारी है। केंद्र सरकार से 8 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई भी वार्ता नतीजे पर नहीं पहुंची है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से तीनों कानूनों को लागू किए जाने पर स्टे लगाए जाने और इसके लिए एक चार सदस्यीय कमेटी गठित किए जाने के बाद किसान संगठनों में भी असमंजस की स्थिति नजर आने लगी है। इसी बीच 15 जनवरी को केंद्र सरकार के साथ किसान संगठनों की नौंवे दौर की वार्ता काफी अहम मानी जा रही है। खास बात ये भी है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद 15 जनवरी को होने वाली बैठक को लेकर किसान संगठनों में भी मंथन का दौर शुरू हो चुका है।

अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट भी मंगलवार को किसान आंदोलन और तीन कृषि कानूनों को लेकर एक बड़ा अहम निर्णय दे चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यीय कमेटी का गठन करते हुए इन तीन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का निर्णय देकर एक तरह से बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भी किसान संगठन असमंजस की स्थिति में नजर आ रहे हैं। हालांकि दिल्ली के सिंघू बॉर्डर से किसान संयुक्त मोर्चा ने मीडिया ब्रीफिंग में साफ कर दिया कि उनका आंदोलन जारी रहेगा और वे 26 जनवरी को दिल्ली में शांतिपूर्वक परेड निकालेंगे, लेकिन कुछ किसान नेता इस बात के भी पक्षधर हैं कि उन्हें माननीय सर्वोच्च न्यायालय पर भरोसा रखना चाहिए और सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार जबरन ये कानून अब लागू नहीं कर पाएगी और केंद्र सरकार के साथ 15 जनवरी को होने वाली बैठक में निश्चित रूप से इस मुद्दे को समाधान किया जा सकता है। इसलिए किसानों को भी संयम से काम लेते हुए अब भविष्य में किसी बड़े फैसले पर जाने से पहले कुछ दिनों तक इंतजार करना चाहिए।

विपक्ष के तेवर हुए तीखे
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए मंगलवार को बड़ा फैसला लेने के बाद विपक्ष के नेता और अधिक आक्रामक तेवरों में नजर आने लगे हैं और वे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने को तो सही ठहराते हैं मगर सरकार से तीनों कानून तुरंत वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव रणदीप सिंह सुर्जेवाला, कांग्रेस विधायक किरण चौधरी सोशल मीडिया से लेकर प्रत्येक प्लेटफार्म पर सरकार पर हमला बोल रहे हैं। सभी का यही कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाना चाहिए। 
उधर, इनैलो के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला लगातार सरकार पर पलटवार कर रहे हैं। अभय चौटाला ने तो अपने विधायक पद से इस्तीफा भी विधानसभा के अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता को भेज दिया है। जजपा के कुछेक विधायक भी कृषि कानूनों को लेकर बयान दे रहे हैं। कुल मिलाकर विपक्ष इस समय पूरी तरह किसान संगठनों से भी कहीं अधिक सक्रिय नजर आ रहा है। 

समाधान को लेकर लगातार सक्रिय हैं मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री का कहना है कि अब जबकि मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया है तो वहीं दूसरी ओर सरकार व किसानों के बीच भी वार्ताओं का दौर सकारात्मक तरीके से जारी है और उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही इस दिशा में किसानों की मांगों को लेकर उचित फैसला होगा। उल्लेखनीय है कि किसान आंदोलन को लेकर स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर 8 व 12 जनवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके हैं और इसके अलावा पहले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से भी मिले थे। यही नहीं वे इस मामले में केंद्रीय नेतृत्व के साथ भी लगातार फोन पर संपर्क बनाए हुए हैं।

दिल्ली में किसानों का आंदोलन 49 दिन से जारी है, जबकि आंदोलन की नींव सितंबर माह के पहले सप्ताह में पड़ गई थी। 10 सितंबर को कुरुक्षेत्र के पिपली में किसानों ने किसान रैली रखी थी। इसके बाद 21 सितंबर को राज्य के नैशनल हाइवे जाम किए और मंत्रियों की कोठियों का घेराव किया गया। 26 नवंबर से किसानों ने दिल्ली की ओर कूच करना शुरू किया और वहीं पर पड़ाव लगाया हुआ है। इससे पहले 6 अक्तूबर को सिरसा में किसान रैली की। तीन दिन पहले हिसार के आर्य नगर में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की गाड़ी के शीशे तोड़ डाले, तो यमुनानगर के छछरौली में किसानों ने शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुर्जर का विरोध किया।

11 जनवरी को ही करनाल के कैमला गांव में मुख्यमंत्री की महापंचायत का विरोध हुआ। मुख्यमंत्री द्वारा कार्यक्रम रद्द किए जाने के बावजूद भीड़ की ओर से बैरीकेड्स तोड़ दिए गए। टैंट तहस नहस कर दिया गया और हैलीपैड भी उखाड़ दिया गया, जिस पर पुलिस ने किसानों को भड़काने व स्थिति को उग्र बनाने के आरोप में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी सहित तोड़ फोड़ के मामले में अनेक लोगों के खिलाफ घरौंडा थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।

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