लोकसभा चुनाव तय करेगा क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य!

Edited By kamal, Updated: 29 Apr, 2019 10:55 AM

lok sabha elections will decide the future of regional parties

यह लोकसभा का चुनाव कई क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य तय करेगा। जिस प्रकार 2014 में यू.पी. से बसपा व सपा का सफाया हुआ था...

हिसार(योगेंद्र): यह लोकसभा का चुनाव कई क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य तय करेगा। जिस प्रकार 2014 में यू.पी. से बसपा व सपा का सफाया हुआ था कुछ उसी प्रकार से इस बार भाजपा ने हरियाणा की क्षेत्रीय पार्टियों को समेटने की रणनीति बनाई है। इसी के चलते इस समय राष्ट्रीय पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला नजर आ रहा है। इससे क्षेत्रीय पार्टियां भी अनभिज्ञ नहीं हैं और इसी के चलते ज.ज.पा.-आप एवं बसपा-लोसुपा की नीतियां अलग-अलग होने के बावजूद गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी हैं।

हिसार में भी राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों का चयन कर क्षेत्रीय पार्टियों को उनके ही घर में घेरने की रणनीति बनाकर आगे निकलने का प्रयास किया है। हिसार लोकसभा की बात करें तो 2014 के चुनाव में इनैलो की ओर से चुनावी मैदान में उतरे दुष्यंत चौटाला ने उकलाना,नारनौंद एवं उचाना जाट बाहुल्य हलके से भारी बढ़त लेकर चुनाव जीता था। वहीं भाजपा-हजकां गठबंधन  के कुलदीप बिश्नोई हिसार, हांसी, बरवाला, नलवा,आदमपुर, बवानीखेड़ा हलके से बढ़त लेने के बावजूद चुनाव में परास्त हो गए थे। इस बार समीकरण पूरी तरह अलग है।
 
इनैलो दो फाड़ हो चुकी है और उससे उदय हुई ज.ज.पा. से अब सांसद दुष्यंत चौटाला चुनावी मैदान में है। इसके चलते सबसे पहले इनैलो उनकी राह में रोड़े अटकाएगी। दूसरी ओर भाजपा ने उकलाना,उचाना,नारनौंद जाट बाहुल्य हलके के ही केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह एवं विधायक प्रेमलता के पुत्र बृजेंद्र सिंह को मैदान में उतारकर ज.ज.पा. को घेरने का प्रयास किया है। बाकी जगह भाजपा गैरजाट मुद्दे पर वोट हासिल करने का प्रयास करेगी।
 
दूसरी ओर कांग्रेस भी 7 हलको में गैरजाट के मुद्दे पर बढ़त लेने की कोशिश कर रही है।  बसपा-लोसुपा गठबंधन की बात करें तो वह धीमी गति से चुनावी रण में कार्य करती नजर आ रही है। दूसरी इनैलो पार्टी जींद उपचुनाव के समान ज.ज.पा. को नुकसान पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है।
 
विधानसभा चुनावी हार से उबरने की चुनौती
लोकसभा चुनाव जीतने के उपरांत विधानसभा चुनाव में दुष्यंत उचाना से लड़े थे। यहां पर प्रेमलता ने उन्हेें मात दी थी। कारण इन जाट बाहुल्य हलकों में केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह का अपना वजूद एवं पकड़ है। इसी के चलते इस लोकसभा चुनाव में दुष्यंत को उचाना की हार से उबरने के लिए खासी मशक्कत करना पड़ रहा है। भाजपा की सोच है कि जाट बाहुल्य हलकों से उनके प्रत्याशी को उनके समाज के जाट वोट मिलना तय है और इसके बाद गैरजाट वोट के दम पर वह चुनावी नैया पार कर लेंगे। 

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