औद्योगिक नगरी का चक्का चलाने वाले मजदूर दूसरों के आगे हाथ फैलाने को मजबूर

Edited By Shivam, Updated: 11 May, 2020 09:23 PM

lockdown problems for laborers in faridabad

औद्योगिक नगरी का चक्का चलाने वाले मेहनतकश मजदूर लॉकडाउन में दूसरे लोगों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर हैं। भविष्य के लिए जोड़कर रखी गई मजदूरों की जमापूंजी भी लॉकडाउन में दाल-रोटी के चक्कर में समाप्त हो चुकी है। ऐसे में न चाहकर भी बेकार बैठे कामगार...

फरीदाबाद (सूरजमल): औद्योगिक नगरी का चक्का चलाने वाले मेहनतकश मजदूर लॉकडाउन में दूसरे लोगों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर हैं। भविष्य के लिए जोड़कर रखी गई मजदूरों की जमापूंजी भी लॉकडाउन में दाल-रोटी के चक्कर में समाप्त हो चुकी है। ऐसे में न चाहकर भी बेकार बैठे कामगार रोटी के लिए सामाजिक संस्थाओं की राह तक रहे हैं। काम-धंधा बंद होने से प्रवासियों का महानगरों में रहना मुश्किल हो गया है। ठेकेदारों ने वेतन नहीं दिया है। इससे खाने-पीने के लाल पड़ गए हैं। शहर में रोजगार की तलाश में आए थे। जब रोजगार ही छिन गया तो यहां रहकर क्या करेंगे? प्रवासी मजदूरों को फिर से काम-धंधा पूरी तरह शुरू होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। दूसरा, शहर में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता जा रहा है। इससे उनके अंदर डर समा गया है। 

प्रवासियों से बात करने पर यही बातें निकलकर आती हैं। इस वजह से प्रवासी इक_े होकर लगातार पलायन कर रहे हैं। जिले में छोटे बड़े करीब 32 हजार उद्योग हैं, जिनमें लाखों लोग काम करते हैं। इन मजदूरों का लॉकडाउन के बाद हाल बेहाल है। इन्हें सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिली। लॉकडाउन के बाद कुछ दिन तो जमा पूंजी से दाल रोटी का गुजारा किया, मगर अब वो समाप्त हो चुकी है। ऐसे में मजदूर सुबह शाम सामाजिक संस्थाओं की ओर से मिलने वाले भोजन या राशन पर ही निर्भर हैं।

मध्यप्रदेश के मजदूर रघुनाथ ने बताया कि वह यहां एक बड़ी फैक्टरी में ठेकेदारी पर हेल्परी करते थे। लॉकडाउन हुआ तो काम छूट गया। थोड़ा बहुत पैसा बचा रखा था, उससे कुछ दिन तो रोटी का मसला हल हुआ, मगर अब कुछ नहीं बचा है। जवाहर कॉलोनी के पास सुबह शाम दोनों टाइम कुछ लोग खाना बांटने आते हैं, तो वहीं लाइन में लगकर खाना लेते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी कुछ लोग मिले ये भी फैक्टरियों में नौकरी करते थे। इनकी भी कंपनी बंद चल रही है। अप्रैल माह का वेतन नहीं मिला। इस वजह से इनके लिए शहर में रहने में बड़ा मुश्किल हो गया था। कोरोना की वजह से फिर से काम-धंधा शुरू होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। इस वजह से वे बिहार अपने जिले के लिए चल पड़े। दिल्ली से कटिहार की दूरी करीब 1,300 किलोमीटर से अधिक पड़ती है। इनके पड़ोस में रहने वाले लोग पहले ही पलायन कर चुके थे। अब उनके घर से भी फोन आ रहा था। ऐसे में सभी आस-पड़ोस के लोग मिलकर पैदल-पैदल ही कटिहार के लिए निकल पड़े।

वहीं सेक्टर-24 की एक कंपनी में काम करने वाले बिहार के रहने वाले जतिन ने बताया कि वह यहां ठेकेदार के माध्यम से काम करते थे। लॉकडाउन के कारण कंपनी बंद पड़ी है। ठेकेदार बोलता है कि कंपनी खुलेगी तो पता चलेगा कि कितने लोगों को लगाएगा। सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। 7-8 दिन पहले एक संस्था वाले आए थे, जो कुछ राशन दे गए। उसी से अभी गुजारा चल रहा था। लेकिन अब वह भी बंद हो गया इसलिए उन्होंने अब वह अपने घर पैदल ही जा रहे हैं।

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