कैसे पड़ेगा रौब, पहले लाल बत्ती गई और अब नेम प्लेट...

Edited By Isha, Updated: 26 Jan, 2020 10:39 AM

how will you be surprised first the red light goes and now the name plate

पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के सरकारी व गैर सरकारी कारों पर पेशा व पदनाम वाले स्टीकर नेम प्लेट हटाने के आदेश का सबसे बड़ा झटका सियासी दलों के उन छुटभैया नेताओं को लगा है जो अभी तक

अम्बाला (रीटा/सुमन): पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के सरकारी व गैर सरकारी कारों पर पेशा व पदनाम वाले स्टीकर नेम प्लेट हटाने के आदेश का सबसे बड़ा झटका सियासी दलों के उन छुटभैया नेताओं को लगा है जो अभी तक कार के अगले हिस्से में लगी फ्लैग रॉड पर अपनी पार्टी की झंडी लगाकर रौब डालते फिरते थे। सांसद व विधायक भी अब कार पर अपना पदनाम नहीं लिख पाएंगे। सरकारी कारों पर राष्ट्रीय ध्वज लगाने के पात्र अति विशिष्ट लोगों का विवरण फ्लैग कोड ऑफ  इंडिया-2002 में उल्लेखित है।

अब दिक्कत जिला व प्रदेश के कई आला अधिकारियों को भी आएगी जिन्होंने कार के आगे लगी नंबर प्लेट के साथ ही मोटे-मोटे अक्षरों में डी.सी., एस.पी., आयुक्त, मेयर, नगर परिषद अध्यक्ष, चेयरमैन, डायरैक्टर व और कई पद नाम लिखे हुए हैं। सवाल यह भी है कि कारों पर से लाल बत्ती तो पहले ही हट गई अब पदनाम की पट्टी हटने के बाद आम लोगों में वी.आई.पी. के रुतबे की पहचान कैसे होगी। हद तो तब हो गई थी जब कई पार्षदों, पंचों, सरपंचों व निगम बोर्डों के सदस्यों ने पीतल के अक्षरों में अपनी कारों के आगे पदनाम लिखना शुरू कर दिया। कुछ स्वयंभू संतों व कागजों में सीमित निजी संगठनों के पदाधिकारियों ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए अपनी कारों के आगे अपनी धार्मिक पदवियों की तख्तियां लगानी शुरू कर दीं। एक संत ने तो अपनी कार के ऊपर पीतल का मंदिर कलश ही लगा दिया।

 कारों के अगले पिछले शीशों पर अपने पेशे प्रैस, एडवोकेट, डाक्टर, आर्मी व इंजीनियर तो लिखना आम हो गया था। कुछ ने तो पूर्व विधायक, पूर्व अध्यक्ष, पूर्व चेयरमैन लिखने में भी अपनी शान समझी। हाईकोर्ट ने सरकारी कारों के आगे लिखे हरियाणा सरकार, पंजाब सरकार व भारत सरकार जैसे शब्दों को भी हटाने के निर्देश दिए हैं। चौराहों पर खड़े टै्रफिक पुलिस के कर्मियों को पहले तो लाल अक्षरों में लिखे हरियाणा सरकार को देखकर अंदाजा लग जाता था कि कोई आला अफसर आ रहा है और वे सतर्क हो जाते थे लेकिन अब तो सारी कारें एक जैसी नजर आएंगी।

सियासी दलों का ब्लाक स्तर का भी छोटा-मोटा पदाधिकारी भी अपनी कार के फ्लैग रोड पर अपनी पार्टी की झंडी लगाकर अपने आपको वी.आई.पी. मानने लगा था। कुछ साल तक पहले तक शहरों व गांवों में आम तौर पर कारों में कांग्रेस का तिरंगा व इनैलो का हरी झंडी लगी नजर आती थी। बाद में केसरिया हावी हो गया। अब हर तरफ  केसरिया व देवी लाल की फोटो के साथ हरे झंडों का बोलबाला है। कोर्ट के फैसले में यह पूरी तरह से साफ  नहीं हो पाया है कि वी.आई.पी. संस्कृति के प्रतीक अति वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कारों के आगे-पीछे लगे एक, 2 व 3 स्टार बरकरार रहेंगे या नहीं। 

यह भी साफ  नहीं है कि कुलपति, आयुक्त, जिला सत्र न्यायाधीश, उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक, डी.आई.जी., आई.जी., डी.जे.पी. व मुख्य सचिव व अतिरिक्त मुख्य सचिवों व अन्य कुछ अति विशिष्ट लोगों की कारों के फ्लैग रॉड पर लगी उनके पदनाम की झंडी इस फैसले की सीमा में आती है या नहीं। सबसे अच्छी बात यह है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले को लागू करने की शुरूआत अपने घर से की है। ज्यादातर लोगों ने कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। 

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