Edited By Gourav Chouhan, Updated: 07 Aug, 2022 08:20 PM
किसानों की ओर से एडवोकेट जेएस तूर ने कोर्ट में बताया कि योजना को स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जा रहा है। हरियाणा सरकार द्वारा इसे अपना लिया गया, परंतु इसके लिए विधायिका की मंजूरी तक नहीं ली गई।
चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को हरियाणा में अपनाने और इसको लोन लेने वालों पर बाध्य करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को 24 जनवरी तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। किसानों की ओर से एडवोकेट जेएस तूर ने कोर्ट में बताया कि योजना को स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जा रहा है। हरियाणा सरकार द्वारा इसे अपना लिया गया, परंतु इसके लिए विधायिका की मंजूरी तक नहीं ली गई।
किसानों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जताई थी आपत्ति
दरअसल गुरनाम सिंह व अन्य किसानों की ओर से याचिका दाखिल करते हुए कहा गया था कि भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों की फसल को होने वाले नुकसान को देखते हुए इसकी भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम से स्कीम आरंभ की थी। इस स्कीम को हरियाणा सरकार ने अपना लिया और लोन लेने वाले किसानों के लिए इसे अनिवार्य रूप से लागू कर दिया गया। इस स्कीम के तहत खरीफ की फसल के लिए 2 प्रतिशत और रबी की फसल के लिए 1.5 प्रतिशत बीमा किश्त रखी गई। वार्षिक फसल के लिए इसे 5 प्रतिशत रखा गया। इसके बाद आरबीआई ने 17 मार्च 2016 को नोटिफिकेशन निकाल कर इसके लिए बैंक अकाउंट अनिवार्य कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार की यह स्कीम सीधे तौर पर किसानों के साथ लूट है। किसानों की ओर से एडवोकेट जेएस तूर ने कहा कि योजना को स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जा रहा है। हरियाणा सरकार द्वारा इसे अपना लिया गया परंतु इसके लिए विधायिका की मंजूरी तक नहीं ली गई।
याचिकाकर्ता का दावा, इस स्कीम से मोटा मुनाफा कमा रही बीमा कंपनियां
इसके साथ ही याची ने बताया कि सरकार द्वारा हरियाणा में बीमा का लाभ देने के लिए केंद्र द्वारा मंजूरी प्राप्त 11 कंपनियों में से 3 का चयन किया गया और इसके लिए किसी भी निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। सरकार द्वारा आरंभ की गई, इस स्कीम के तहत इन तीनों कंपनियों ने सरकार और किसानों से मिलाकर 252.35 करोड़ रुपए वसूल किए और मुआवजे के रूप में केवल 20 करोड़ रुपए दिए गए। इस राशि में से 123.55 करोड़ किसानों से एकत्रित किया गया था। 83.54 करोड़ राज्य सरकार ने तो वहीं 45.26 केंद्र सरकार ने भुगतान किया। याची ने कहा कि इस प्रकार बीमा कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं, जबकि किसानों की जेब काटी जा रही है। याची ने हाईकोर्ट से अपील की है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को संसद की मंजूरी न होने के चलते इसे खारिज किया जाए। हरियाणा सरकार द्वारा इस योजना को अपनाने के लिए जारी नोटिफिकेशन को खारिज किया जाए, क्योंकि इसके लिए विधायिका से मंजूरी नहीं ली गई।
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