कड़वे प्रवचनों के अंतिम दिन मुनि श्री ने दिया शाकाहार पर जोर

Edited By Updated: 13 Dec, 2016 02:11 PM

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क्रांतिकारी राष्ट्रीय जैन संत श्री तरुण सागर जी महाराज ने पेपर मिल ग्राऊंड में चल रहे कड़वे प्रवचन शृंखला के चौथे दिन धूमधाम से समापन किया गया।

यमुनानगर: क्रांतिकारी राष्ट्रीय जैन संत श्री तरुण सागर जी महाराज ने पेपर मिल ग्राऊंड में चल रहे कड़वे प्रवचन शृंखला के चौथे दिन धूमधाम से समापन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में विधायक घनश्याम दास अरोड़ा तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में एम.डी. ईशान प्लाईवुड सुरेन्द्र गर्ग व पंजाब प्लाईवुड के एम.डी. नरेश गर्ग उपस्थित रहे। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधान आनंद जैन ने की तथा संचालन ब्रह्मचारी सतीश जैन ने किया। सर्वप्रथम अतिथियों ने श्री फल चढ़ाकर महाराज श्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रवचन से पूर्व आनंद जैन व संजू जैन ने पाद प्रक्षलन किया, गिरिराज जैन व स्नेहलता जैन ने पूजा की, रमन जैन व शालू जैन ने शास्त्र भेंट किया व प्रमोद जैन व बाला जैन ने आरती की। बच्चों द्वारा सुन्दर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। 

महाराज श्री ने हजारों उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि एक बार जब घड़े से पूछा गया कि वह ठंडा क्यों होता है तो उसने जवाब दिया कि जिसका अतीत भी मिट्टी का है और भविष्य भी मिट्टी का हो उसे गर्मी कहां से आ सकती है। जिसकी जॉकेट में गर्मी हो, पॉकेट में गर्मी हो या लॉकेट में गर्मी हो उसे चैन नहीं आएगा। सोने की चेन पहनने वाला नहीं चैन से सोने वाला ज्यादा सुखी है। उन्होंने कहाकि मनुष्य को सदैव समर्पण भाव रखना चाहिए क्योंकि सौहार्द बढ़ता है। समर्पण समाधान देता है। जो सुख झुकने में है वह अकड़ में नहीं है। 

उन्होंने आगे कहा कि गली संकरी थी, राजा उसमें से निकल रहा था तो आगे से एक सांड दौड़ता हुआ आ रहा था, तो क्या राजा उससे टकराएगा। अगर राजा को बचना होगा तो राजा को ही झुकना पड़ेगा। अर्थात् दिनभर में हमें कई सांड मिलते हैं पर हमें उनसे टकराना नहीं है, क्योंकि टकराव ही बिखराव का कारण है। अगर हमारी चादर छोटी है मच्छरों से बचने के लिए पांव सिकोडऩे ही पड़ेगें, इच्छाओं को कम कर पुण्य की चादर ओढ़ें। उन्होंने कहा कि कभी की किसी की नकल न करों, तुम केवल तुम हो, तुम्हारे जैसा कोई नहीं है। दुनिया में अरबों लोग रहते हैं पर तुम्हारे अंगूठे की रेखाएं किसी के भी अंगूठे की रेखाओं से नहीं मिल सकती। इसीलिए अंगूठा लगवाकर पहचान की जाती है। अगर सबसे अलग दिखना है तो संत बन के दिखो। संयम जीवन में जरूरी है, आंख, नाक, कान, पैर सभी पर संयम रखना चाहिए। आंख पर दरवाजा है किन्तु कान पर कोई दरवाजा नहीं होता, जो भी दुनिया कहेगी सुनना पड़ेगा। मुख पर 2 दरवाजे हैं एक होंठ और दूसरे दांत, इस पर वाणी पर अधिक संयम रखना चाहिए। हमें एक नियम बनाना चाहिए, प्रतिदिन एक घण्टे का मौन रखना चाहिए। भजन के लिए भोजन भूलना संयम है और भोजन के लिए भजन को भूल जाना पाप है।

शाकाहारी बने, शाकाहार केवल आहार नहीं सेहत भी है। जीभ जो मांगे वह न दें लेकिन पेट जो मांगे वह दें, यही संयम की पहचान है। अपनी भूख के लिए किसी भी बकरा, मुर्गी या जीव को हलाल न करें। किसी भी निर्दोष जानवरों को हलाल करना कोई धर्म नहीं है। मुनि श्री ने आह्वान करते हुए कहा कि अपने 2 खोट शराब और मीट आज तरुण की झोली में डाल दें, और सुख-चैन की जिन्दगी जिएं। पैसा सुविधा है, सुख नहीं। गरीब आदमी भी संतों की शरण में आकर सुखी हो सकता है। धर्म करना सेवा का अवसर है लेकिन कल जब बुढ़ापा आएगा वह निमंत्रण है। 
 

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