उद्योगपतियों से किए गए वायदे भूल रही सरकार, चुनावों के समय मिल सकता है बड़ा झटका

Edited By Deepak Paul, Updated: 24 May, 2018 12:59 PM

government forgetting the promises made by industrialists

प्रदेश सरकार ने गत विधानसभा चुनावों में उद्योगपतियों से जो वायदे किए थे, उनमें से अधिकतर अभी तक अधूरे हैं। वायदे पूरे नहीं होने के कारण प्रदेश के उद्योगपति सरकार से नाराज चल रहे हैं। उनकी नाराजगी दूर करने के लिए सरकार के पास अब ज्यादा समय नहीं है। 4...

अम्बाला(वत्स): प्रदेश सरकार ने गत विधानसभा चुनावों में उद्योगपतियों से जो वायदे किए थे, उनमें से अधिकतर अभी तक अधूरे हैं। वायदे पूरे नहीं होने के कारण प्रदेश के उद्योगपति सरकार से नाराज चल रहे हैं। उनकी नाराजगी दूर करने के लिए सरकार के पास अब ज्यादा समय नहीं है। 4 साल का समय निकल चुका है। अब करीब एक साल का समय ही बचा है, जिसमें उनके वायदे को पूरा किया जा सकता है। उद्योगपतियों की नाराजगी भाजपा को आने वाले समय में बड़ा झटका दे सकती है। 

भाजपा ने सत्ता में आने से पहले जहां उद्योगपतियों के लिए कई वायदे किए थे, वहीं सत्ता में आने के बाद कई घोषणाएं भी की थीं। न तो अभी तक वायदे पूरे हो पाए हैं औ न ही घोषणाओं को धरातल पर उतारा गया है। प्रदेश सरकार की ओर से घोषणा की गई थी कि हिसार में टैक्सटाइल जोन स्थापित किया जाएगा। इस दिशा में अभी तक सार्थक प्रयास नहीं हुए हैं

टेक्सटाइल जोन बनने से कॉटन उद्योग को भी बढ़ावा मिल सकता है। अभी प्रदेश का कॉटन उद्योग दम तोडऩे के कगार पर है। अगर टैक्सटाइल जोन बनता है तो इससे टेक्सटाइल और कॉटन दोनों उद्योगों में नई जान आ सकती है। सरकार की ओर से अंबाला के साहा में एक्सपोर्ट जोन बनाने की घोषणा की थी। इस दिशा में भी सरकार की ओर से कोई खास कदम नहीं उठाए गए हैं। सरकार ने जिन घोषणाओं पर अमल किया है, वे भी पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में प्रभावी रूप धारण नहीं कर पा रही हैं। 

बहादुरगढ़ चमड़ा उद्योग के लिए प्रख्यात है। यहां सरकार की ओर से रबड़ और प्लास्टिक जोन बनाने की घोषणा की थी। इस जोन के लिए भी सरकार प्रर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित नहीं कर सकी है। उद्योगपतियों के अनुसार उन्हें न तो पर्याप्त सुविधाएं मिल पा रही है और न ही रॉ मैटीरियल। रबर का दाना खरीदने पर उन्हें मोटा टैक्स देना पड़ता है। इससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है। अगर तैयार माल की कीमतों में वृद्धि की जाती है तो उनकी बिक्री प्रभावित होती है। सरकार समाल स्केल इंडस्ट्रीज की दशा सुधारने की दिशा में भी कोई खास कदम नहीं उठा पाई है। इससे उद्योगपति सरकार की उद्योग नीति से संतुष्ट दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। 

चमड़ा उद्योग पर दोहरी मार
प्रदेश के चमड़ा उद्योग को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। उद्योगपतियों को चमड़ा खरीदते समय 18 फीसदी टैक्स का भुगतान करना पड़ता है। जूते व चप्पल तैयार होने के बाद उद्योगपतियों को कर वसूली के रूप में 5 फीसदी राशि ही मिलती है। इससे दोनों करों में काफी अंतर आ जाता है। चमड़ा उद्योग से जुड़े लोगों को इससे दोहरा नुक्सान हो रहा है। 

टैक्स की मार पड़ रही ज्यादा
इस समय उद्योगपतियों को टैक्स की मार का सामना करना पड़ रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद सरकार ने घोषणा की थी कि जीएसटी के बाद कोई अन्य टैक्स नहीं लगाया जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। उद्योगपतियों के अनुसार उन्हें जीएसटी के अलावा कई अन्य टैक्सों का भुगतान भी करना पड़ रहा है। टैक्सों की दरें भी पड़ौसी राज्यों की तुलना में ज्यादा हैं, जिससे उद्योगपतियों को आर्थिक नुक्सान का सामना करना पड़ रहा है।

राइस मिल्स पर बोझ ज्यादा
उद्योगपतियों का कहना है उन्हें मार्कीट फीस के साथ-साथ सैसा टैक्स का भुगतान भी करना पड़ता है। सैसा टैक्स सरकार आपदा की स्थिति में लगाती है, लेकिन प्रदेश में यह स्थाई रूप से चल रहा है। इस टैक्स का रिफंड भी हर तीसरे महीने में करना होता है, लेकिन प्रदेश के व्यापारियों को इस टैक्स का रिफंड नहीं मिल रहा। रिफंड के करोड़ों रुपए बकाया हैं, जिससे उद्योगपतियों को आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ रहा है।

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