घग्गर ले रही जान, नेता नहीं खोल रहे जुबान

Edited By Shivam, Updated: 30 Mar, 2019 11:36 AM

gaggar taking life the leader does not open the tongue

पंजाब-हरियाणा में घग्गर लाखों लोगों की नसों में जहर घोल रही है। दोनों राज्यों में हर बरस 10 लाख हैक्टेयर भूमि पर घग्गर के जहरीले पानी से पैदा होने वाले अन्न से कैंसर व काला पीलिया पनप रहा है। इसी जहरीले पानी से पैदा होने वाले चारे को पशु खा रहे हैं...

सिरसा (स.): पंजाब-हरियाणा में घग्गर लाखों लोगों की नसों में जहर घोल रही है। दोनों राज्यों में हर बरस 10 लाख हैक्टेयर भूमि पर घग्गर के जहरीले पानी से पैदा होने वाले अन्न से कैंसर व काला पीलिया पनप रहा है। इसी जहरीले पानी से पैदा होने वाले चारे को पशु खा रहे हैं और फिर पशुओं के दूध को पीने वाले इंसान बीमार हो रहे हैं। कोढ़ में खाज यह है कि नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ओर से बार-बार फटकार लगाने के बाद हरियाणा-पंजाब के शासक-प्रशासक संवेदनहीन बने हुए हैं। ङ्क्षचतनीय पहलू यह भी है कि अब दोनों ही राज्यों में चुनाव हैं। 

चुनावी समर में नेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। अमर्यादित वाणी का इस्तेमाल कर रहे हैं। मैली हो चुकी घग्गर का उद्धार करने की जहमत कोई नहीं उठा रहा। नेताओं की जुबां और घोषणा पन्नों से घग्गर का जहरीला पानी कोई मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा बने भी कैसे? क्योंकि इससे किसान नाराज हो जाएंगे। ऐसे में नेता इस बात का जिक्र नहीं कर रहे हैं। गहरी पैठ यह है कि घग्गर के जरिए किसान पाइप लाइनों के जरिए अपने खेतों में पानी लगाते हैं। यह पानी फसल उत्पादन के दृष्टिगत बेहतर माना जाता है।

खाद-दवाई का इस्तेमाल कम करना पड़ता है। एक बार के निवेश के बाद ताऊम्र घग्गर का पानी मिलता रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को पानी मिलता रहे, लेकिन घग्गर का मुंह भी सुंदर बना रहे, इसको लेकर नेताओं को उपाय करना चाहिए। सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट्स के जरिए घग्गर को जहरमुक्त किया जा सकता है। घग्गर शासकीय-प्रशासकीय उदासीनता के चलते पिछले करीब 15 बरस में कैसे जहरीली हुई, यह जहर कैसे इंसानी नसों में घुल रहा है और नेता इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं, इसी पर आधारित हमारी आज की यह खास रिपोर्ट: घग्गर में बी.ओ.डी., टी.एस.एस., फैकल कोलीफोरम एवं आयरन तत्व जहर घोल रहे हैं। 

तय मानकों से करीब 100 गुणा तक इन तत्वों के बढऩे से घग्गर का पानी जहर बन गया है। दवा-दारू के कारखाने एवं घरों का दूषित पानी इस सुंदर नदी का मुंह जहरीला बना रहा है। ङ्क्षचतनीय पहलू यह है कि अभी इसी साल 7 अगस्त को ही नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हरियाणा, पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए घग्गर नदी के प्रदूषण को कम कर इस मैली नदी को साफ करने के लिए स्टेट और जिला लैवल पर टास्क फोर्स बनाकर आवश्यक कदम उठाने बाबत एक्शन प्लान बनाने के आदेश दिए। अभी तक पंजाब और हरियाणा में कोई एक्शन प्लान नहीं बना है। घग्गर में अनेक शहरों में सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट लगाए जाने की योजना खटाई में है, तो कारखानों का जहरीला पानी अनवरत इसमें छोडऩे का सिलसिला जारी है।

किसानों की नाराजगी मोल लेने से घबराते हैं नेता
घग्गर लोगों की जान ले रही है, पर नेता खामोश हैं। वजह है कहीं किसान नाराज न हो जाएं। इस नदी के जरिए करीब 10 लाख हैक्टेयर भूमि सिंचित होती है, वह भी बिना किसी शुल्क के। एक बार के छोटे से निवेश के बाद किसान घग्गर का पानी अपने खेतों में लगाते हैं। कैमीकल एवं पहाड़ों की मिट्टी के मिश्रण के चलते यह शिल्टयुक्त पानी फसलों के लिए अच्छा है। फसल की उपज नहरी पानी व नलकूप के पानी की तुलना में 30 फीसदी से भी अधिक होती है। खाद-दवाई का इस्तेमाल कम होता है।

ऐसे में किसान नहीं चाहते कि यह पानी बंद हो। यही वजह है कि नेता भी इस मुद्दे पर बोलने से हिचकते हैं पर विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में पंजाब-हरियाणा के शहरों में एन.जी.टी. के कहने के बावजूद सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट्स नहीं लगाए गए हैं। इस पानी को ट्रीट करके इसे साफ किया जा सकता है। दूसरा हिमाचल के दवा व दारू कारखानों के वेस्ट एवं कैमीकल पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। कैमीकल व वेस्ट के चलते ही इस नदी में प्रदूषण का स्तर कितना बढ़ गया है।

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