उद्योगपतियों पर बिजली गिरा रही ‘बिजली’

Edited By Rakhi Yadav, Updated: 21 May, 2018 08:52 AM

electricity dropped on industrialists

एक ओर प्रदेश सरकार जहां विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए उद्योगपतियों को आमंत्रित कर रही है तो दूसरी ओर वर्तमान में चल रहे उद्योगों की सुध लेने की दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रही है। इसका कारण यह है कि लघु उद्योग दम ....

अम्बाला(वत्स): एक ओर प्रदेश सरकार जहां विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए उद्योगपतियों को आमंत्रित कर रही है तो दूसरी ओर वर्तमान में चल रहे उद्योगों की सुध लेने की दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रही है। इसका कारण यह है कि लघु उद्योग दम तोडऩे के कगार पर हैं। इन उद्योगों को महंगी बिजली और बिजली की कमी के कारण भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 

वर्ष 2013 में उद्योगों के लिए बिजली की दर 4.70 रुपए प्रति यूनिट थी। फिक्स रेट 130 रुपए प्रति किलो वोल्ट के हिसाब थे। इस समय यह दर 6.65 रुपए प्रति यूनिट है। फिक्स रेट 170 रुपए प्रति किलो वोल्ट है। बिजली की दरें ज्यादा होने के कारण लघु उद्योगपतियों को काफी ज्यादा पैसा बिजली पर खर्च करना पड़ रहा है। इससे भी बड़ी परेशानी यह है कि महंगे बिजली के बिल अदा करने के बावजूद उद्योगों को पर्याप्त बिजली नहीं मिल पाती। 

बिजली की कमी के कारण उद्योगों को चलाने के जैनरेटरों का सहारा लेना पड़ता है। डीजल महंगा होने के कारण उद्योगों की उत्पादन लागत काफी बढ़ जाती है जिससे उद्योग घाटे में चलने लगते हैं। उत्पादन लागत बढऩे के कारण उद्योग नुक्सान की स्थिति में कर्ज के शिकार हो जाते हैं। उन्हें सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिल पाती। इस समय लघु उद्योगों को बिजली पर सबसिडी भी कम दी जा रही है।

उद्योगपति सरकार से 30 फीसदी सबसिडी की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी सरकार उद्योग नीति में बदलाव के मूड में नजर नहीं आ रही है। बिजली की जो सबसिडी दी जा रही है, वह बी ब्लॉक के उद्योगों को नहीं मिल रही। इससे इस ब्लॉक के उद्योग भारी आॢथक संकट का सामना करने को मजबूर हैं।

उद्योगपतियों की बड़ी समस्या एफ.ए.आर. यानी फ्लोर एरिया रेश्यो को लेकर भी है। हरियाणा में एफ.ए.आर. .75 फीसदी है। ग्रुप हाऊसिंग सोसायटीज के लिए यह 1.75 फीसदी है। एफ.ए.आर. का मतलब यह है कि उद्योगपति इस निर्धारित जमीन को किसी उपयोग में नहीं ले सकते। अधिकांश उद्योगपति एफ.ए.आर. का उपयोग जैनरेटर और टीन शैड लगाने में करते हैं। इससे संबंधित अधिकारियों को उन्हें परेशान करने व घूस देने के लिए मजबूर करने का मौका मिल जाता है। 

अगर सरकार एफ.ए.आर. पर निर्धारित जुर्माना लगाकर उसे रैगुलर कर दे तो इससे उद्योगपतियों को बड़ी राहत मिल सकती है। हरियाणा के पड़ोसी राज्यों में नए उद्योगों पर 7 साल के लिए सी.जी.एस.टी. लागू नहीं है जबकि हरियाणा में इसकी वसूली की जा रही है। इससे उद्योगपतियों को अतिरिक्त कर का भुगतान करना पड़ रहा है।

उद्योगपति लगातार सरकार के समक्ष इन मांगों को उठाते रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जा रहे। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में उद्योगपति यहां से पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे।

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