मिलावटी कारोबार डाल सकता है त्यौहार के रंग में भंग

Edited By Punjab Kesari, Updated: 18 Oct, 2017 10:44 AM

diwali

जिले में खाद्य एवं अन्य पदार्थों में मिलावट से इन्कार नहीं किया जा सकता। दीवाली की शुरूआत में घर की रंगाई पुताई से लेकर दीवाली पूजन तक और त्यौहार पर खाने वाली मिठाई....

चरखी दादरी: जिले में खाद्य एवं अन्य पदार्थों में मिलावट से इन्कार नहीं किया जा सकता। दीवाली की शुरूआत में घर की रंगाई पुताई से लेकर दीवाली पूजन तक और त्यौहार पर खाने वाली मिठाई में स्तर पर मिलावट की संभावना है। हालांकि हर बार इस प्रकार के त्यौहारों पर सरकार व प्रशासन सख्ती बरतते हुए छापेमारी तक करता है। इसके बावजूद भी कोई विशेष प्रभाव मिलावट खोरों पर नजर नहीं आता। दीवाली पर सबसे ज्यादा बिक्री घी और तेल की होती है। मुख्य रूप से सरसों का तेल पूजन के साथ ही खाद्य पदार्थ बनाने में भी प्रयोग होता है लेकिन सरसों का शुद्ध तेल जहां बाजार में 100 रुपए लीटर उपलब्ध है तो सस्ते के लालच में लोग नकली तेल विक्रेताओं के चंगुल में फंस रहे हैं। चावल की भूसी से निकलने वाले तेल में पीला रंग मिलाकर इसे सरसों का बना दिया जाता है। 

इसके अलावा पामोलीन ऑयल को भी कैमिकल की मदद से पतला कर सरसों का तेल बताकर बेचा जा रहा है। इस तेल की कीमत बाजार में 50 रुपए लीटर तक होती है लेकिन सरसों के नाम पर यही तेल 70 से 80 रुपए तक बेचा जा रहा है। वहीं शुद्ध देसी घी बाजार में लगभग 450 रुपए लीटर के हिसाब से बिकता है लेकिन शहर में ऐसी भी दुकानें हैं जहां पर शुद्ध देसी घी 100 रुपए किलो बोर्ड लगाकर बेचा जा रहा है। वनस्पति घी में रिफाइंड मिलाकर देसी घी की खुशबू का एसेंस प्रयोग किया जाता है।

जीवन के लिए घातक है सिंथैटिक मावा
मिठाई में सिंथैटिक मावे का खेल किसी से छिपा नहीं है। इस मावे से रसगुल्ले, बर्फी आदि तमाम मिठाई तैयार होती हैं लेकिन अब महंगी काजू कतली में भी मिलावट का खेल होने लगा है। 7 सौ रुपए किलो की कीमत में बिकने वाली काजू कतली में भी काजू की जगह मूंगफली की गिरी मिलावट देखी जा सकती है। मिठाई बनाने वालों के अनुसार कुछ लोग काजू की जगह मूंगफली की गिरी पीसकर उसमें काजू का एसेंस लगाते हैं और चीनी की चाशनी में इस मिश्रण को मिलाकर काजू कतली तैयार कर बेचते हैं जिसकी लागत 150 रुपए के आसपास बैठती है।

खिलौनों की शुद्धता से भी खेल
दीवाली पर आज भी परम्परा है कि खांड के बने खिलौने और बताशों के साथ खील, मखानों से पूजा होती हैं लेकिन यहां भी खेल शुरू हो चुका है। चीनी से बताशे और खिलौने तैयार हो रहे हैं। इसमें अहम बात यह है कि बाजार की रिजैक्ट चीनी जो खराब हो जाती है वह और सरकारी सस्ते गल्ले की चीनी का प्रयोग सबसे ज्यादा बताशे और खिलौने बनाने में हो रहा है लेकिन खांड के खिलौने बताशे अब शायद ही उपलब्ध हों।

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