गांवों में मौत का आंकड़ा डरा रहा, स्वास्थ्य सेवाओं और राजनीतिक लोगों के प्रति नाराजगी

Edited By Shivam, Updated: 23 May, 2021 08:55 PM

death toll in villages is frightening

कोरोना की रफ्तार भले ही स्लो हो गई लेकिन मौत के आंकड़ें भयभित करने वाले हैं। गांवों में स्थिति अधिक खराब है। गांव में अधिकतर मौत खांसी-बुखार के कारण हुई है। अस्पतालों में मंहगे इलाज की खबरों से गांव के लोग दहशत में हैं। इसी के चलते वह खांसी-बुखार...

रेवाड़ी/महेंद्रगढ़ (योगेंद्र सिंह): कोरोना की रफ्तार भले ही स्लो हो गई लेकिन मौत के आंकड़ें भयभित करने वाले हैं। गांवों में स्थिति अधिक खराब है। गांव में अधिकतर मौत खांसी-बुखार के कारण हुई है। अस्पतालों में मंहगे इलाज की खबरों से गांव के लोग दहशत में हैं। इसी के चलते वह खांसी-बुखार होने पर गांव में ही इलाज करवा रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं एवं राजनीतिक लोगों को लेकर ग्रामीणों में काफी नाराजगी है। इनका कहना है कि टीकाकरण भी गांव में रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। हालात यह है कि टीकों की कमी एवं स्लॉट बुक करने में आ रही दिक्कतों के कारण ग्रामीण एरिए में शहरी लोग टीके लगवाने के लिए पहुंच रहे हैं।

रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ के गांव में कोरोना की इंट्री के बाद वहां के हालात काफी खराब नजर आ रहे हैं। भले ही सरकारी आंकड़ें अब हालात कंट्रोल में होने का दावा कर रहे लेकिन गांव की स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है। गांव के लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक भरोसा नहीं है और इसी के चलते वह ना तो टीके लगवाने को लेकर गंभीर हैं ना ही जांच करवाने के लिए आगे आ रहे हैं। गांव रोहड़ाई की बात करें तो यहां की हरिजन बस्ती हॉट स्पॉट बनी हुई है। यहां पर करीब नौ लोगों की मौत हो चुकी है। इसी प्रकार मस्तापुर में भी ग्रामीण मौत के शिकार हुए हैं। यहां के सरपंच के युवा बेटे की भी मौत हो चुकी है।



स्वास्थ्य विभाग की बात करें तो जिले में टीके सीमित हैं और गांव के लोग स्लाट बुक नहीं कर पा रहे और यही कारण हैं कि गुरुग्राम, रेवाड़ी जैसे शहरों के लोग स्लॉट बुक कराकर गांव में टीके लगवाने पहुंच रहे हैं। सरपंच लालराम कहते हैं कि स्लॉट बुक करने की प्रक्रिया को आसान करना चाहिए। व्यवस्था इस प्रकार की जाना चाहिए जिससे आम लोगों को आसानी से टीके लग पाएं। ताजपुर में आठ लोगों की मौत हो चुकी है। इसी प्रकार कलाहा कलां, बलाहा, गोद गांव में भी हालात बेहतर नहीं हैं। गांव आदलपुर के विनोद, नवीन बताते हैं कि यहां अभी तक कोई टीम नहीं आई। झोलाछाप से ग्रामीण इलाज कराने को विवश हैं।

गांव खातौदड़ा के सतीश, अनिल, राकेश कहते हैं कि टीके की कमी है, इसके लिए सिफारिशें करवाना पड़ रही हैं। आकौदा के विजय, बाबूलाल कहते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल, गांव में मौत से सभी दहशत में हैं। ना सैंपल हो रहे ना ही टीके लग पा रहे। सरकारी सुविधाएं ना के बराबर हैं और इसी के चलते प्राइवेट इलाज करने वाले लोगों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। महेंद्रगढ़ जिले में भी नेता गांवों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं और इसके चलते लोगों में नाराजगी है। इन नेताओं के गांव, विधानसभा क्षेत्र के गांव में भी स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है।  वोट लेने वाले इसीलिए इनसे नाराज हैं कि इस महामारी में भी वह अपने घरों में दुबके बैठे हैं।



अस्पताल गए तो घर बिक जाएंगे
निजी अस्पतालों में ओवर चार्जिंग की खबरों से ग्रामीण खासे परेशान हैं। गांव जौनावास के अंकुर बताते हैं कि एक बार निजी हॉस्पिटल गए तो वहां के बिल के पैसे कहां से लाएंगे। हमारे तो घर ही बिक जाएंगे। कई समाचार पत्रों में इस प्रकार की ओवर चार्जिंग की खबरें आ रही हैं। इसी के चलते गांव के लोग गांव के चिकित्सक पर ही भरोसा करते हैं।  गांव के अंकुर के इलाज में निजी हॉस्पिटलों ने जमकर लूट करते हुए परिजनों से जमकर पैसा वसूला और बिल तक नहीं दिए।

राजनीतिक लोगों के दबाव से परेशान स्वास्थ्य अमला
गांव में सैंपल एवं टीकाकरण करने वाले स्वास्थ्य कर्मी राजनीतिक लोगों के दबाव के कारण खासे परेशान हैं। कर्मियों का कहना है कि वह समान रूप से ऊपर से आए आदेश के अनुसार अपने कार्य को अंजाम दे रहे हैं। राजनीतिक लोग फोन कर अपने जानकारों के यहां जाने एवं उनके काम पहले करने का दबाव बनाते हैं। जबकि हमारे लिए तो हर व्यक्ति एक समान है और सभी के सैंपल लेने हैं और टीके लगाकर उनका उपचार करना है।

घरेलू नुस्खे से लड़ रहे कोरोना की जंग
गांव पाली के वेदप्रकाश कहते हैं कि यहां पर अभी तक स्वास्थ्य अधिकारी नहीं पहुंचे। ना तो सर्वे हुआ ना ही टीके लगाने के लिए टीम आई। अनिल कहते हैं कि यहां के लोग घरेलू नुस्खे एवं सोशल मीडिया पर आने वाली आयुर्वेद, होम्योपेथिक तरीके का उपयोग कर कोरोना की जंग जीतने की कोशिश में लगे हुए हैं।

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