गांवों में मुखरता और शहर की खामोशी के बीच ‘उलझे’ चुनावी योद्धा

Edited By Deepak Paul, Updated: 20 Jan, 2019 09:53 AM

confused  electoral warrior among the village s assertiveness and city silence

जींद उपचुनाव न केवल सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है अपितु यह चुनाव खामोशी व मुखरता के बीच दो हिस्सों में भी बंटता दिख रहा है। इस चुनाव के मद्देनजर ग्रामीण इलाकों...

जींद (संजय अरोड़ा): जींद उपचुनाव न केवल सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है अपितु यह चुनाव खामोशी व मुखरता के बीच दो हिस्सों में भी बंटता दिख रहा है। इस चुनाव के मद्देनजर ग्रामीण इलाकों में तो वोटर बेहद मुखर हो रहा है मगर शहरी मतदाताओं ने चुप्पी साध रखी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपनी-अपनी स्थिति को लेकर सभी राजनीतिक दल कयासों के ही घोड़े दौड़ा रहे हैं मगर हकीकत यही है कि शहरी वोटरों के ‘मौन’ से सियासतदान बड़े बेचैन हैं।

गौरतलब है कि इस चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने पूरा पसीना बहा रखा है। शहर के वार्डों से लेकर गांव की गलियों तक में चुनावी सभाओं का दौर जारी है। डोर-टू-डोर वोट मांगने का क्रम भी चल रहा है लेकिन इन उम्मीदवारों के दिल की धड़कनें हर पल बढ़ती महसूस हो रही हैं। कारण साफ है कि अभी तक हर कोई कयास के भंवर में ही फंसा है क्योंकि वास्तविक स्थिति मतगणना के बाद ही साफ होगी।

शहर के 31 वार्डों व 35 गांवों पर आधारित जींद विधानसभा क्षेत्र में करीब 1 लाख 70 हजार मतदाता हैं जिनमें से करीब 95 हजार वोटर जींद शहर के हैं जबकि ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 75 हजार है। दिलचस्प बात यह है कि अधिक मतदाताओं वाला जींद शहर खामोश है और कम मतदाताओं वाले ग्रामीण अंचल में मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार का खुला साथ दे रहे हैं।

झंडों के रंग में रंगे गांव

जींद उपचुनाव की रंगत पूरी तरह से गांवों में साफ तौर पर दिखाई पड़ रही है। पंजाब केसरी टीम ने जब इस विधानसभा क्षेत्र के अधिकांश गांवों में माहौल को देखने के लिए दौरा किया तो हर तरफ सभी राजनीतिक दलों के झंडे लोगों के घरों की छतों पर दिखाई दिए। बातचीत दौरान भी इस क्षेत्र के वोटरों ने बड़ी साफगोई से अपने-अपने चहेते उम्मीदवारों के समर्थन में बात कही मगर शहर में स्थिति विपरीत दिखाई दी। बेशक यहां पोस्टरों ने चुनावी छटा बिखेरी हुई है लेकिन यहां कौन आगे व कौन पीछे के सवाल पर हर कोई साइड में हटता ही नजर आया। मसलन शहरी वोटर अपना भेद देने को तैयार नहीं हैं और उनकी चुप्पी के कारण ही मामला थोड़ा पेचीदा बना हुआ है। कुछ शहरी मतदाताओं ने यह बात अवश्य कही कि जींद शहर के मतदाता मतदान से ठीक एक अथवा दो दिन पहले ही खुलकर कहने की स्थिति में नजर आ सकते हैं। फिलहाल शहर का मतदाता ‘एक चुप सौ सुख’ वाली कहावत पर अमल करते हुए किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को नाराज नहीं करना चाहता।

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