एक ही सप्लायर से लेनी होगी 408 पंचायतों को निर्माण सामग्री, नहीं तो रुकेगी पेमैंट

Edited By Rakhi Yadav, Updated: 28 Jul, 2018 08:13 AM

building materials otherwise the payment will not stop

जिले के सरपंचों पर आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाली कहावत सरकार के फरमान (ई-टेडरिंग) पर चरितार्थ की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पूर्व में सरकार पंचायतों में ई-पेमैंट प्रणाली लागू करने ....

अम्बाला(बलविंद्र): जिले के सरपंचों पर आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाली कहावत सरकार के फरमान (ई-टेडरिंग) पर चरितार्थ की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पूर्व में सरकार पंचायतों में ई-पेमैंट प्रणाली लागू करने में अपने हाथ जला चुकी है। जिसका सरपंचों ने खुलकर विरोध किया था। वहीं अब सरकार गुप-चुप तरीके से प्रदेश के सरपंचों के साथ आमने-सामने आने के मुड़ में है। इस मामले में सरपंचों का क्या रुख रहेगा, अभी देखने वाला होगा। लेकिन प्रदेश सरकार ने पंचायत राज को आदेश जारी करते हुए अगस्त माह से ई-टेंडरिंग सिस्टम लागू करने को कहा है। इस फरमान से सरकार का पंचायतों के मामले में फिर से अडिय़ल रवैया सामने आया है।

दरअसल, आदेश लागू होने के पहले तक गांवों के सरपंच विकास कार्यों हेतु निर्माण सामग्री खुले बाजार से सरकार द्वारा तय रेटों पर किसी भी फर्म से खरीदते रहे हैं। लेकिन ई-टेंडरिंग प्रणाली लागू होने के बाद सरपंच खुले बाजार से उक्त सामग्री नहीं खरीद पाएंगे। सरपंचों को सिर्फ सरकार द्वारा नियुक्त ठेकेदार से ही सामग्री खरीदनी पड़ेगी। खरीदारी को लेकर आजादी छीनने से सरपंचों में बेचैनी पैदा होनी लाजमी है। जिससे आने वाले दिनों में सरपंचों व सरकार में फिर से खींचतान के आसार नजर आने लगे हैं। 

सिस्टम लागू होने से पूर्व ही सरपंचों में विरोध
सरकार द्वारा ई-टेंडरिंग बारे किए गए लैटर जारी होने से सरपंचों में विरोध के स्वर दिखाई देने लगे हैं। दबी आवाज में सरपंच आपस में ही इस प्रणाली पर चर्चा में व्यस्त हैं। जबकि अधिकारी प्रणाली को लागू करने में कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहते। आदेश लागू होने से जिले के करीब 408 सरपंच कशमश में हैं।

आदेशों के जरिए सरपंचों की छवि धूमिल न करे सरकार 
इस मामले में नाम न छापने की शर्त पर जिले के कई सरपंचों ने बताया कि ई-टेंडरिंग प्रणाली लागू करने से पहले सरकार को सिस्टम को सुधारने के लिए संसाधन उपलब्ध करवाने चाहिए। अभी सरपंच डी.सी. द्वारा तय रेटों पर ही सामग्री खरीद रहे हैं। इसके बाद भी सरकार को यदि सरपंचों पर ही भरोसा नहीं तो फिर पढ़ी-लिखी पंचायत चुनने का फायदा। जिसके लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई। इस प्रकार के तुगलकी फरमान से सरकार की नीयत में खौट दिखाई दे रहा है और सरपंचों को छवि को भ्रष्टाचारी के रूप में गढ़ा जा रहा है।  

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