बरोदा में भी सोशल इंजीनियरिंग के ‘सहारे’ मैदान में उतरी भाजपा

Edited By Manisha rana, Updated: 19 Oct, 2020 09:35 AM

bjp enters the  sahara  ground of social engineering in baroda

जाट लैंड बरोदा विधानसभा क्षेत्र में 3 नवम्बर को होने वाले उप-चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। हर पार्टी इस चुनाव में जीत हासिल ...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : जाट लैंड बरोदा विधानसभा क्षेत्र में 3 नवम्बर को होने वाले उप-चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। हर पार्टी इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए मतदाताओं के घर द्वार पर दस्तक देती नजर आ रही है लेकिन चुनाव के दृष्टिगत भाजपा जींद में जनवरी 2019 में हुए उप-चुनाव की मानिंद बरोदा में सभी दलों से हटकर अपने सोशल इंजीनियरिंग के सहारे चुनावी माहौल को भुनाने का प्रयास करती नजर आ रही है। 

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मनोहर लाल खट्टर पार्ट-1 सरकार में जींद में उप-चुनाव हुआ था तो भाजपा को छोड़ सभी बड़े दलों के उम्मीदवार जाट ही थे जबकि वहां भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले तहत गैरजाट को मैदान में उतारा और पहली मर्तबा जाट लैंड में कमल खिलाने में कामयाब रही। कमोबेश बरोदा भी जाट लैंड है और यहां हो रहे उप-चुनाव में कांग्रेस, इनैलो व निर्दलीय सहित तीनों उम्मीदवार जाट समुदाय से हैं, ऐसे में भाजपा ने बरोदा में भी गैरजाट को मैदान में उतार कर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया है।

हालांकि वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने इस क्षेत्र से इसी उम्मीदवार को उतारा था और भाजपा उस वक्त कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा से करीब 5 हजार वोटों से ही पीछे रही थी, यानी प्रदर्शन अच्छा रहा था और अब सत्ता में होने के कारण सरकार को फिर से इसी उम्मीदवार से ही ‘उम्मीद’ है। 

अब तक ये रहा है बरोदा का चुनावी इतिहास
वर्ष 1967 से लेकर 2005 तक बरोदा विधानसभा क्षेत्र आरिक्षत रहा है जबकि वर्ष 2009 से यह क्षेत्र सामान्य हो गया है। सामान्य सीट होने पर यहां से कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा लगातार 2009, 2014 व 2019 के विधानसभा क्षेत्रों में विजयी होते रहे हैं। जींद की तरह जाट बाहुल्य बरोदा विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 76 हजार 305 कुल मतदाता हैं। पहले यह इनैलो का गढ़ माना जाता था और वर्ष 2009 से निरंतर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। अब श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन से यह सीट रिक्त हो गई जिस पर 3 नवम्बर को उप-चुनाव होना है। अब देखना ये है क्या इनैलो पुन: अपना गढ़ बना पाती है अथवा कांग्रेस अपने गढ़ को बरकरार रखती है या भाजपा बरोदा जैसे जाट लैंड में जींद की भांति पहली बार कमल खिलाने में कामयाब होती है?

एक रोचक पहलू ये भी
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के अब तक के शासनकाल में होने वाला यह दूसरा उप-चुनाव जहां कई लिहाज से दिलचस्प बना हुआ है वहीं एक रोचक पहलू ये भी है कि यह दूसरा उप-चुनाव भी सोनीपत संसदीय क्षेत्र में ही हो रहा है। इससे पहले इसी क्षेत्र की विधानसभा सीट जींद में उप-चुनाव हुआ था और अब बरोदा में हो रहा है।

जींद उप-चुनाव के वक्त सरकार का शेष कार्यकाल अंतिम चरण में था जबकि अब हो रहा उप-चुनाव खट्टर सरकार पार्ट-2 का पहला वर्ष पूर्ण होने के तुरंत बाद हो रहा है, इसलिए भाजपा अपने शेष बचे 4 वर्ष के कार्यकाल में विकास का नारा देकर लोगों के बीच है जबकि कांग्रेस व इनैलो आदि दल सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल को असफल बताते हुए लोगों से समर्थन की अपील कर रहे हैं। जींद और बरोदा उप-चुनाव में एक अंतर ये भी है कि जींद में जजपा-भाजपा के सामान्तर चुनाव लड़ी थी जबकि इस बार जजपा-भाजपा के साथ सत्ता में सहयोगी है। अब देखना है कि बरोदा के मतदाता किसका देते हैं साथ और किसको मिलती है मात?    

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