Edited By Yakeen Kumar, Updated: 07 Dec, 2024 07:28 PM
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार, स्पीच डिसऑर्डर व सेरेब्रल पालसी का इलाज जालंधर में हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा की मदद से किया जा रहा है।
चण्डीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी) : न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार, स्पीच डिसऑर्डर व सेरेब्रल पालसी का इलाज जालंधर में हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा की मदद से किया जा रहा है। इस पद्वती से उपचार की प्रक्रिया काफी मददगार साबित हो रही है। यह उपचार जरूरतमंद बच्चों के लिए पूरी तरह निःशुल्क है।
ई बाइओ केयर व गुरु नानक चैरिटेबल संस्था के फ़ाउंडर डॉक्टर जसविंदर सिंह ने इंडियन पेडिएट्रिक जर्नल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि भारत में 68 में से एक बच्चा ऑटिज़म से ग्रसित है, और यह संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसलिए इस विषय पर गंभीर चर्चा व एविडेंस बेस्ट रिसर्च की आवश्यकता है, जिस पर वह लगातार प्रयासरत हैं।
एलोपैथी में जिन असाध्य रोगों का उपचार नहीं होता है उनके लिए उपचार की आखिरी किरण हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा बनती जा रही है. जालंधर के डॉ. जसविंदर सिंह जिन्हें हॉल ही में नेशनल हैल्थकेयर अवार्ड एंड मेंटल हेल्थ एंड वेलनेस एक्सीलेंस अवार्ड इंडियन सीएसआर अवार्ड से नवाजा गया है और उन्होंने अपने करिश्माई काम लिए वर्ल्ड रेकोर्ड भी बनाया है, जिसमें विशेष रूप से सेरेब्रल पाल्सी, ऑटिज्म, स्पीच डिसऑर्डर जैसे जन्मजात या अत्यधिक स्क्रीन टाइम जनित रोगों से पीड़ित बच्चों को इस उपचार से लाभ मिल रहा है.
डॉ जसविंदर सिंह का कहना है कि सेरेब्रल पाल्सी में मस्तिष्क डेड होता है. यह गर्भावस्था में ही होता है. हम ऐसी दवाइयां देते हैं, जिससे वह धीरे-धीरे सक्रिय होता है. हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा में मस्तिष्क को सक्रिय करने की क्रियाएं होती हैं।
केस-1
सुल्तानपुर लोधी से आए साढे चार साल का आयुष ऑटिज्म से पीड़ित है. वह कई प्रतिष्ठित अस्पताल में लंबा उपचार करवा चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ तो डॉ जसविंदर से संपर्क किया। दो बार अपने बच्चे को लेकर आ चुके हैं और लगातार उसमें सुधार हो रहा है। वह बताते हैं कि ऑटिज्म के चलते वह बोलता नहीं था, लेकिन अब वह बोलने लगा है। उसकी गतिविधियां भी बदल गई हैं।
केस-2
लुधियाना से संजय कुमार के बच्चे को भी पिछले 4 वर्षों से ऑटिज्म था, सिर्फ 3 महीने की दवाई से ही बच्चे की हालत में काफी सुधार हुआ है, इससे पहले 4 साल की ऑटिस्टिक थैरेपी से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।