कांग्रेस छोड़ चुके अशोक तंवर ले सकते हैं जजपा का सहारा!

Edited By vinod kumar, Updated: 13 Feb, 2020 11:09 AM

ashok tanwar can take support of jjp

कांग्रेस छोड़ चुके पूर्व प्रदेश प्रधान अशोक तंवर का कहना है कि 16 फरवरी को करनाल में होने वाले स्वाभिमान समारोह में वही लोग भाग लेंगे, जिनमें स्वाभिमान है लेकिन प्रदेशभर से उन्होंने अपने समर्थकों को आमंत्रित किया है। एक तरह से चुनाव के बाद तंवर...

धामु: कांग्रेस छोड़ चुके पूर्व प्रदेश प्रधान अशोक तंवर का कहना है कि 16 फरवरी को करनाल में होने वाले स्वाभिमान समारोह में वही लोग भाग लेंगे, जिनमें स्वाभिमान है लेकिन प्रदेशभर से उन्होंने अपने समर्थकों को आमंत्रित किया है। एक तरह से चुनाव के बाद तंवर सी.एम.सिटी करनाल में शक्ति प्रदर्शन करने जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस छोडऩे के बाद वह राजनीतिक रूप से स्थापित नहीं हो पाए हैं। हालांकि दिल्ली चुनाव से पहले उन्होंने यह भी संकेत दिए थे कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में सक्रिय भागीदारी करेंगे। माना जा रहा था कि तंवर अपने समर्थकों को दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतारेंगे। 

उन्होंने दिल्ली चुनाव से पहले साइकिल यात्रा भी शुरू की थी परन्तु उनकी राजनीति दिल्ली में नहीं चल पाई। अब उन्होंने अपने जन्मदिन के बहाने सी.एम. सिटी करनाल में राजनीतिक पत्ते खोलने का मन बनाया है। चर्चाएं हैं कि अशोक तंवर नई पार्टी का ऐलान करेंगे? प्रथम दृष्टि में इसकी सम्भावनाएं भी दिखाई देती हैं। बताया जा रहा है कि उनके समर्थकों का उन पर नई पार्टी के गठन का दबाव भी है। वैसे भी हरियाणा विधानसभा चुनाव में उन्होंने एक सर्वमान्य नेता के रूप में खुद को स्थापित करने का प्रयास किया था। 

उन्होंने बिना किसी पार्टी के अलग-अलग चुनाव क्षेत्रों में कथित रूप से योग्य प्रत्याशियों को समर्थन भी दिया था। कहते हैं कि यह प्रक्रिया उनकी अपनी पार्टी बनाने के प्रयास का प्रथम चरण था। उन्होंने चुनावी समय में समर्थकों की नब्ज टटोल कर देखी थी। उन्हें इसमें क्या मिला, इसका तो अभी पता नहीं चला है पर अब नई पार्टी गठन की चर्चाएं अवश्य हैं लेकिन हरियाणा में नई पार्टी गठन का प्रयोग सफल नहीं रहा है पर इसका अपवाद इनैलो को कहा जा सकता है। 

इनैलो के सफल रहने के पीछे कई कारण रहे परन्तु स्व.बंसीलाल और स्व.भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्रोई का कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी गठन करने का अंत कांग्रेस वापसी के रूप में ही रहा क्योंकि हरियाणा की राजनीतिक माटी नई पार्टी के लिए उपजाऊ नहीं मानी जाती फिर अशोक तंवर की राजनीतिक पृष्ठभमि व पार्टी चलाने के साधन भी चौधरी बंसीलाल व कुलदीप बिश्रोई के मुकाबले कहीं कम दिखाई देते हैं। बताया यह भी जा रहा है कि तंवर को पार्टी हेतु संसाधन जुटाने के लिए कुछ लोगों का सहारा मिला है। ये वह लोग हैं,जो हुड्डा विरोधी हैं लेकिन अभी तक तंवर ने इस बारे में कोई संकेत नहीं दिए हैं। 

इसी बीच यह चर्चा भी सामने आ रही है कि तंवर नई पार्टी की बजाय दुष्यंत चौटाला की जन नायक जनता पार्टी में शामिल हो जाएं? चर्चाकारों का कहना है कि तंवर करनाल समारोह के बहाने अपने समर्थकों और कार्यकत्र्ताओं को विश्वास में लेना चाहते हैं। इस समारोह में जैसा कि राजनीति में होता रहा है,कार्यकत्र्ता निर्णय लेने का अधिकार एकमत से अशोक तंवर को दे देंगे। इसके बाद समय पाकर वह जजपा में चले जाएंगे। 

दूसरी ओर जजपा नेताओं की नजरें भी तंवर के करनाल के स्वाभिमान सम्मेलन पर लगी हैं। जजपा के सूत्र तंवर की गतिविधियों को राडार पर लिए हैं पर अभी तक तंवर और दुष्यंत चौटाला की मुलाकात की पुष्टी नहीं हो पाई है। चर्चाकारों का कहना है कि अशोक तंवर का जजपा में शामिल होने से पार्टी और तंवर दोनों के लिए राजनीतिक लाभ का सौदा होगा। नि:संदेह जजपा अपने गढ़ सिरसा में मजबूत हो जाएगी। इतना ही नहीं जजपा से मिल कर तंवर भी अपनी राजनीति चमका सकते हैं। इस तरह जजपा और अशोक तंवर को इस गठबंधन से जजपा को तंवर के रूप में दलित चेहरा मिल जाता है। अब हरियाणा की राजनीति एक नए अध्याय की रचना के इंतजार में है।
 

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