सातों आरोपियों की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील खारिज

Edited By Deepak Paul, Updated: 20 Mar, 2019 10:06 AM

appeal rejects appeal against seven convicts

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 दौरान रोहतक गैंगरेप के सातों आरोपियों की सजा के खिलाफ अपील को खारिज...

चंडीगढ़ (हांडा): पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 दौरान रोहतक गैंगरेप के सातों आरोपियों की सजा के खिलाफ अपील को खारिज कर मर्डर रैफरेंस पर सजा को बरकरार रखा है। वहीं, सरकार को आदेश दिए कि आरोपियों से 50 लाख वसूल कर पीड़िता के परिवार को दे चाहे उसके लिए चल-अचल संपत्ति को ही क्यों न बेचना पड़े। कोर्ट ने नकोदर माइनर रेप के आरोपी निशान सिंह की सम्पत्ति बेचकर पीड़ित के परिवार को 90 लाख मुआवजा दिए जाने का उदहारण भी जजमैंट में दिया।

जस्टिस  ए.बी. चौधरी पर आधारित डिवीजन बैंच ने मामले को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट मानते हुए टिप्पणी भी की। कहा कि मामले में रहम किया तो समाज या आरोपियों को उत्साहित करने के बराबर होगा। जैसी आरोपियों ने क्रूरता दिखाई, वह रहम के काबिल नहीं है। जिन हथियारों का इस्तेमाल हुआ और अप्राकृतिक यौन शोषण किया, वह आरोपियों की दिमागी इलनेस को दर्शाता है जिसके लिए फांसी भी कम है।

मुआवजा वसूल कर 25 लाख रुपए मृतका की बहन और 25 लाख सरकारी खाते में जमा करवाए जाएंगे। इस बाबत हरियाणा सरकार जुलाई माह में रिपोर्ट देगी। पहली फरवरी, 2015 को नेपाली युवती का सोनीपत से अपहरण हुआ था जिसकी रिपोर्ट बड़ी बहन ने लिखवाई थी। 4 फरवरी को शव रोहतक में नग्न अवस्था में मिला था जिसकी सूचना सौराल सिंह नामक किसान ने दी थी। सबसे पहले पुलिस ने पदम उर्फ प्रमोद को गिरफ्तार किया था। उसकी निशानदेही पर 6 और आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप, आप्रकृतिक यौन संबंध और अंगों को क्षति पहुंचाने की पुष्टि हुई थी।

सभी दोषियों को रोहतक कोर्ट ने 21 दिसंबर, 2015 को फांसी की सजा सुनाई थी। इसमें से एक आरोपी सोमबीर ने दिल्ली की एक जेल में फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली थी। मामले में बहस दौरान हरियाणा सरकार ने दिल्ली के निर्भया गैंगरेप से तुलना करते हुए जजमैंट की कॉपी हाईकोर्ट में पेश की। जस्टिस चौधरी ने अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. वाशिंगटन की वर्ष 1969 दौरान दी एक जजमैंट का भी उदहारण दिया। जस्टिस वाशिंगटन ने कहा था कि किसी भयानक अपराध और खौफनाक मंजर के लिए कानून में रहम शब्द आ जाए तो यह न्यायपालिका के लिए शर्मिंदगी भरा होगा।

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