हरियाणा में ‘गठबंधन’ की मजबूरी या ‘मजबूरी’ के गठबंधन!

Edited By Shivam, Updated: 14 Apr, 2019 10:56 AM

alliance of  coalition  or  compulsion  in haryana

हरियाणा की सियासत में गठबंधन की गांठे बंधती और खुलती रहती हैं। गठबंधन यहां की सियासी मजबूरी भी है। जननायक जनता पार्टी एवं आम आदमी पार्टी ने एक दिन पहले ही हरियाणा लोकसभा चुनाव को लेकर हाथ मिलाए हैं। दिल्ली में सरकार बनाने वाली ‘आप’...

हरियाणा की सियासत में गठबंधन की गांठे बंधती और खुलती रहती हैं। गठबंधन यहां की सियासी मजबूरी भी है। जननायक जनता पार्टी एवं आम आदमी पार्टी ने एक दिन पहले ही हरियाणा लोकसभा चुनाव को लेकर हाथ मिलाए हैं। दिल्ली में सरकार बनाने वाली ‘आप’ ने हरियाणा में पिछला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा। दस सीटों पर जमानत जब्त हो गई। ऐसे में ‘आप’ को हरियाणा में सामान विचारधारा वाले साथी की जरूरत थी। पिछले साल दिसम्बर में अस्तित्व में आई जजपा की भी गठबंधन की मजबूरी थी।

ऐसे में आप से जजपा ने हाथ मिलाया। ऐसी ही सियासी मजबूरी पिछले साल अस्तित्व में आई लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ थी। वहीं जींद उपचुनाव के नतीजों से मायूस हो इनैलो से किनारा करने वाली बसपा ने लोसुपा के संग जाने का रास्ता चुना। शिरोमणि अकाली दल ने भी भाजपा का साथ देने का मन बनाया है। आप, बसपा, लोसुपा व शिअद को यह एहसास था कि अकेले चुनावी समर में उतरकर वे प्रभाव नहीं छोड़ सकेंगे, अगर गठबंधन करेंगे तो जरूर असरकारक साबित हो सकते हैं। रोचक पहलू यह भी है कि आप के प्रदेशाध्यक्ष नवीन जयङ्क्षहद ने तो ट्विट करके कहा था कि अगर भाजपा को हराना है तो गठबंधन की रणनीति पर आगे बढऩा होगा। वहीं लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के राजकुमार सैनी ने जींद उपचुनाव के तुरंत बाद भी इसी तरह की बात कही थी।

दरअसल हरियाणा की दस संसदीय सीटों पर लोकसभा चुनाव एवं 90 विधानसभा चुनावों को लेकर गठबंधन की नैय्या पर सवार होकर अनेक दलों ने प्रभाव छोड़ा है। साल 1996 में हविपा-भाजपा गठबंधन तो साल 1999 के चुनाव में इनैलो-भाजपा गठबंधन ने अपना असर दिखाया था। यह गठबंधन सियासी मजबूरी के चलते बनते भी हैं और टूटते भी हैं। 18 अप्रैल 2018 को इनैलो-बसपा का गठबंधन हुआ, पर जींद उपचुनाव के नतीजों के बाद बसपा ने ‘चश्मा’ उतार दिया। इसी साल 7 फरवरी को बसपा ने नए बने दल लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से गठबंधन कर लिया।

आप व शिरोमणि अकाली दल पिछले कुछ माह से हरियाणा में अकेले चुनाव लडऩे का राग अलाप रहे थे, लेकिन सर्वे के जरिए मिली फीडबैक में इन दलों के नेताओं को यह एहसास हो गया कि अकेले चलेंगे तो नतीजे एवं समीकरण पक्ष में नहीं रहेंगे। ऐसे में आप ने जजपा के साथ गठबंधन किया तो शिअद ने भाजपा का साथ देने का निर्णय ले लिया। सभी ने अपनी सियासी मजबूरी के चलते एक-दूजे से हाथ मिलाए। रोचक पहलू यह है कि इनमें बसपा एवं शिअद जैसे दल पहले इनैलो के साथ थे। अब शिअद एवं बसपा दोनों की राहें अलग हैं।         

(प्रस्तुति: संजय अरोड़ा)

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