समर्थन वापसी की अटकलों पर अजय चौटाला ने लगाया विराम, बोले- जजपा का अपना स्टैंड

Edited By Isha, Updated: 29 Sep, 2020 11:00 AM

ajay chautala took a break on speculation of withdrawal of support

केंद्र सरकार की ओर से पास किए गए तीन कृषि  बिल पर पंजाब व हरियाणा की सियासत में उबाल आया हुआ है। किसानों की ओर से इन दोनों ही राज्यों में बिलों का विरोध किया जा रहा है। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने एन.डी.ए. से अपना दो दशक पुराना सियासी रिश्ता तोड़...

सिरसा(नवदीप सेतिया): केंद्र सरकार की ओर से पास किए गए तीन कृषि  बिल पर पंजाब व हरियाणा की सियासत में उबाल आया हुआ है। किसानों की ओर से इन दोनों ही राज्यों में बिलों का विरोध किया जा रहा है। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने एन.डी.ए. से अपना दो दशक पुराना सियासी रिश्ता तोड़ लिया और अब हरियाणा में भी समूचा विपक्ष जननायक जनता पार्टी पर भाजपा सरकार से समर्थन वापस करने का दबाव बनाए हुए है। इन सबके बीच जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अजय सिंह चौटाला ने स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा से समर्थन वापस नहीं लेंगे। सरकार में हिस्सेदार बने रहेंगे। यहां सिरसा में पत्रकारों से बातचीत में अजय चौटाला ने शिरोमणि अकाली दल-भाजपा का गठबंधन टूटने पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अकाली दल का अपना स्टैंड है और जजपा का अपना स्टैंड है।

भाजपा से गठबंधन तोडऩा अकाली दल की अपनी अलग विचारधारा है, लेकिन जजपा भाजपा गठबंधन आगे भी जारी रहेगा। डा. अजय सिंह चौटालजा ने कहा कि कृषि आधारित तीन नए बिलों से किसानों को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।। किसानों का एक-एक दाना खरीदा जाएगा। डा. अजय चौटाला ने कहा कि कृषि पर आधारित बने कानून से किसानों को फायदा होगा। इससे पहले इसी साल गेहूं खरीद में भी किसानों को कोई परेशानी नहीं हुई और आगे भी कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी। उन्होंने कहा कि किसानों की फसल की सही खरीद होगी। उन्होंने कहा कि किसान किसी राजनीतिक दल या षडय़ंत्रकारी संगठन के साथ मिलकर विरोध  कर रहे हैं जिसका जल्द ही इनका पर्दाफाश हो जाएगा।

किसान आंदोलन से बनते-बिगड़ते रहे हैं सियासी समीकरण
हरियाणा में खेती एक बहुत बड़ा मुद्दा है। किसान आंदोलनों के चलते हरियाणा के सियासी समीकरण बनते-बिगड़ते रहे हैं। साल 1977 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से पहले ताऊ देवीलाल ने भी एक साल तक किसान संघर्ष समिति के बैनर तले प्रदेश में आंदोलन चलाया था। चौ. देवीलाल ने 1986 में राज्य में खेती से जुड़े मुद्दों को लेकर ‘न्याय युद्ध’ चलाया। उसके बाद 1987 में हुए चुनाव में कांग्रेस 5 सीटों पर सिमट गई और लोकदल और उसके सहयोगी दलों को 85 सीटों पर जीत मिली। भारतीय किसान यूनियन ने बिजली के रेट बढ़ाने व सप्लाई कम करने पर 1992 में आंदोलन शुरू किया था। इसके बाद 1996 में बंसीलाल सरकार में भी यह आंदोलन चलता रहा। 21 दिसम्बर 2000 को तत्कालीन चौटाला सरकार में बिजली सप्लाई काटने पर जींद के कंडेला गांव में बवाल हुआ। इसके बाद मई 2001 में कंडेला में भाकियू ने बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया। करीब 70 दिन तक किसान सड़क पर डटे रहे थे। उस समय कंडेला व गुलकनी गांवों में किसानों पर गोलियां चली। उस दौरान 8 किसान मारे गए थे। इस आंदोलन पर कांग्रेस ने भी इनैलो को खूब घेरा और बाद में 2005 में कांग्रेस की सरकार बनी। 

हरियाणा में खेती है बड़ा मुद्दा
वैसे भी बता दें कि हरियाणा में खेती एक बड़ा मुद्दा है। करीब 2.5 करोड़ की आबादी वाले हरियाणा में करीब 36 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। 60फीसदी आबादी खेती संग जुड़ी हुई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार प्रदेश में 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं जबकि 10 लाख से अधिक श्रमिक परिवार हैं। हरियाणा देश का प्रमुख गेहूं, धान, नरमा व सरसों उत्पादक राज्य है। देश में करीब 6 फीसदी किसानों को समर्थन मूल्य मिलता है जबकि हरियाणा और पंजाब में यह संख्या 90 फीसदी से अधिक है। नए कृषि अध्यादेशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी न होने के बाद ही पंजाब और हरियाणा में किसान लगातार आंदोलनरत हैं। हरियाणा में करीब 36 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। रबी सीजन में यहां करीब 25 लाख हैक्टेयर में गेहूं, सवा 6 लाख हैक्टेयर में सरसों के अलावा कुछ रकबे पर जौं व चने की खेती की जाती है। खरीफ सीजन में करीब 12 लाख हैक्टेयर में धान, साढ़े 6 लाख हैक्टेयर में कॉटन, साढ़े 5 लाख हैक्टेयर में बाजरा एवं 70 हजार हैक्टेयर में ज्वार की खेती की जाती है। इसके अलावा करीब 60 हजार हैक्टेयर में बाग हैं। 4 लाख हैक्टेयर में सब्जियों की, 995 हैक्टेयर में फूलों की खेती की जाती है। 

हरियाणा-पंजाब में कामयाब रहा है मंडी सिस्टम
हरियाणा व पंजाब दोनों ही राज्यों में पिछले सात दशक से मंडी बोर्ड सिस्टम के जरिए खरीद प्रणाली जारी है और यह कामयाब रही है। हरियाणा राज्य कृषि विपणन मंडल अनाजमंडियों में किसानों की फसल आढ़तियों के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की प्रक्रिया को हैंडल करता है। प्रदेश में करीब 113 अनाजमंडियां, 168 सबयार्ड एवं 196 खरीद केंद्र हैं। हरियाणा में करीब 25 हजार आढ़ती हैं, जबकि करीब 16.17 लाख किसान परिवार हैं। मंडी सिस्टम से करीब 2.5 लाख मजदूर परिवार भी जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि पंजाब और हरियाणा में ही कृषि अध्यादेशों को लेकर सबसे अधिक विरोध हो रहा है।

प्रदेश में यह है सियासी गणित
पिछले साल अक्तूबर माह में हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को 40 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस को 31, जजपा को 10, इनैलो व हलोपा को 1-1 सीट मिली थी, जबकि 7 आजाद विधायक निर्वाचित हुए थे। जजपा ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। महम से आजाद विधायक को छोड़कर शेष 6 आजाद विधायकों व सिरसा से हलोपा विधायक गोपाल कांडा भी बिना शर्त भाजपा को समर्थन दिए हुए हैं।
 

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