Edited By Isha, Updated: 13 Dec, 2019 03:17 PM
एक समय वह भी था जब बच्चों को घर से बाहर खेलने जाने के लिए मना किया जाता था। दिनभर घर से बाहर रहकर खेलने के लिए उन्हें डांट भी पड़ती थी, लेकिन अब समय बदल गया है। अब हालात ऐसे हो गए.....
जाखल (हरिचंद) : एक समय वह भी था जब बच्चों को घर से बाहर खेलने जाने के लिए मना किया जाता था। दिनभर घर से बाहर रहकर खेलने के लिए उन्हें डांट भी पड़ती थी, लेकिन अब समय बदल गया है। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बच्चे खेलने के लिए घर से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण आनलाइन वीडियो गेम और स्मार्टफोन हैं। वीडियो गेम खेलने वाले स्मार्टफ फोन 7-8 हजार रुपए तक में आसानी से मिल रहे हैं।
वहीं गूगल प्ले-स्टोर पर मुफ्त मोबाइल गेम भी मिल जाते हैं। दरअसल, ऑनलाइन वीडियो गेमिंग का बाजार बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है इसी के साथ बढ़ रहा है इसका दुष्परिणाम। कई वीडियो गेम्स बच्चों के लिए बेहद ही खतरनाक साबित हो रहे हैं। ऑनलाइन गेम में बच्चों की बढ़ती लत अब जानलेवा बन गई है। मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को मानसिक रूप से बीमार बना रहा है। दिनभर गेम व मोबाइल पर लगे रहने के कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं। ब्लू व्हेल गेम के बाद अब पबजी गेम खेलने का अवसाद तमाम बच्चों को जकड़ रहा है।
पब्जी का पूरा नाम प्लेयर अन-नौन्स बैटल ग्राउंड्स गेम है। पैराशूट के जरिए 100 प्लेयर्स को एक आईलैंड पर उतारा जाता है। जहां प्लेयर्स को बंदूकें ढूंढकर दुश्मनों को मारना होता है। आखिर में जो बचता है वो विनर होता है। 4 लोग इस गेम को गु्रप बनाकर खेल सकते हैं। युवा और बच्चे इस गेम को खेलने के इतने आदी होते जा रहे हैं कि दिन-रात वे फोन के साथ ही चिपके रहते हैं। गेम के टास्क को पूरा करने के लिए न तो वह खाने की परवाह करते हैं और न नींद की। इस गेम में कई तरह के हाईटैक फीचर हैं, जिसमें अट्रैक्टिव ग्राफि क्स के साथ-साथ मोशन सैंसरिग टैक्नोलाजी और पावरफु ल साउंड का इस्तेमाल किया गया है। जो बच्चों को जल्दी अट्रैक्ट कर रहा है।
जाखल क्षेत्र के रहने वाले अभिभावकों का कहना है कि उनका बच्चा 12 साल का है। जब भी उसे मौका मिलता है, वह तुरंत मोबाइल पर गेम खेलने लग जाता है। मना करने पर वह घर में तोडफ़ोड़ करने लगता है। वहीं एक अभिभावक अपने 15 साल के बच्चे को लेकर बहुत ङ्क्षचतित हैं। उनका कहना है कि बच्चे में मोबाइल गेम के प्रति ऐसी दीवानगी है कि वह फोन को छोड़ता ही नहीं है। फोन लेने पर आक्रामक हो जाता है।
वहीं सरकारी स्कूल के प्रिंसीपल धर्मेन्द्र ढांडा ने कहा कि बच्चे द्वारा घंटों एक ही पाजिशन में बिना मूवमैंट के बैठने व टकटकी लगाकर स्क्रीन को देखने से आंखों की कमजोरी, अपच की समस्या, अनिद्रा की दिक्कत,मानसिक तनाव के साथ हिंसक स्वभाव तेजी से बढ़ रहा है। वहीं डी.ए.वी स्कूल प्राचार्य नीरज शर्मा का कहना है कि परिजन बच्चों के दोस्त बनें, उनको टाइम दें, उनकी गतिविधियों पर नजर रखें, आउटडोर खेल के लिए प्रेरित करें, बच्चों के मोबाइल पर नजर रखें, मोबाइल निर्धारित समय के लिए दें, डांसिंग, म्यूजिक,पेंटिंग, किसी एक के प्रति उनमें जिज्ञासा पैदा करें।
मनोविकार का शिकार हो रहे बच्चे
एस.एम.ओ. डा. सुशील गर्ग ने बताया कि बच्चों में बढ़ती मोबाइल गेम ही आदत से उनमें कई तरह के मनोविकार आ रहे हैं। परिजन के ध्यान न देने से स्थिति बिगड़ रही है। जिन बच्चों के माता-पिता दोनों जाब करते हैं और बच्चे का साथी मोबाइल होता है, उन्हें अधिक दिक्कत आ रही है। उन्होंने कहा कि पबजी गेम का नशा जिस बच्चे व किशोर को पकड़ लेता है उसका मन अन्य कामों में नहीं लगता है। बच्चा हमेशा गुमशुम रहने लगता है। मोबाइल उसकी कमजोरी बन जाती है।