दाल-रोटी घर की, दीवाली अमृतसर की

Edited By Updated: 30 Oct, 2016 02:37 PM

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दिवाली के दिन सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी ग्वालियर के किले से अपने साथ 52 कैदियों को रिहा करवाकर अमृतसर पहुंचे थे। इस खुशी में बाबा बुड्ढा जी

दिवाली के दिन सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी ग्वालियर के किले से अपने साथ 52 कैदियों को रिहा करवाकर अमृतसर पहुंचे थे। इस खुशी में बाबा बुड्ढा जी की अगुवाई में सिखों ने अमृतसर में दीपमाला की थी। उसी दिन से आज तक अमृतसर में यह त्यौहार ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 

 

श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी के बाद गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने बाकायदा मीरी-पीरी की दो तलवारें पहनकर श्री अकाल तख्त साहिब की रचना करके वहां पर लोगों की शिकायतें सुननी शुरू कर दीं। मुगल सरकार की ओर से इन गतिविधियों को बगावत समझा गया और गुरु हरगोबिंद साहिब जी को ग्वालियर किले में नजरबंद कर दिया गया।

 

स्व. खुशवंत सिंह के अनुसार ‘शुरूआती सालों में सिख संस्था में आ रहे परिवर्तन की ओर सरकार का ध्यान न गया, पर जब गुरु जी के पैरोकारों की संख्या बढऩे लगी तो अधिकारियों ने गुरु जी के विरुद्ध शिकायतें भेजनी शुरू कर दी। जहांगीर ने गुरु जी की गिरफ्तारी तथा उनकी निजी सेना में फूट डालने के आदेश जारी कर दिए। गुरु जी को एक साल या कुछ ज्यादा समय के लिए ग्वालियर किले में कैद करके रखा गया। 
इस किले में 52 अन्य राजा कैदियों के रूप में रखे गए थे। गुरु जी को रोजाना खर्च के लिए जो धन मिलता, उसका कड़ाह प्रसाद बनाकर सभी को खिला दिया जाता तथा स्वयं किरती सिखों की हक सच की कमाई से बना भोजन करते रब्ब की भक्ति में लीन रहते। 

 

इसी दौरान जहांगीर को एक अजीब से मानसिक रोग ने घेर लिया। वह रात को सोते समय डरकर उठने लगा, कभी उसको यूं लगता था कि जैसे शेर उसको मारने के लिए आते हो। उसने अपना पहरा सख्त कर दिया तथा कई हकीमों व वैद्यों से इलाज भी करवाया, पर इस रोग से मुक्ति न मिली।

 

आखिर वह साईं मियां मीर जी की शरण में आया। साईं जी ने कहा कि रब्ब के प्यारों को तंग करने का यह फल होता है। साईं जी ने विस्तार से उसको समझाया कि गुरु हरगोबिंद साहिब जी रब्ब का रूप हैं। तूने पहले उनके पिता जी को शहीद करवाया और अब उनको कैद कर रखा है। 

 

जहांगीर कहने लगा कि साईं जी जो पहले हो गया, सो हो गया, परंतु अब मुझे इस रोग से बचाओ और उनके कहने पर जहांगीर ने गुरु जी को रिहा करने का फैसला कर लिया। गुरु जी की रिहाई की खबर सुनकर सभी राजाओं को बहुत चिंता हुई क्योंकि उनको पता था कि गुरु जी के बिना उनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं तथा यदि गुरु जी किले से चले गए तो उनका क्या हाल होगा। गुरु साहिब ने इन सभी राजाओं को कहा कि वे घबराएं नहीं। गुरु जी ने वचन किया कि वह सभी को ही कैद में से रिहा करवाएंगे। गुरु जी ने अकेले रिहा होने से इंकार कर दिया।

 

यह बात बादशाह को बताई गई। बादशाह सभी राजाओं को छोडऩा नहीं चाहता था, इसलिए उसने कहा कि जो भी राजा गुरु जी का दामन पकड़कर जा सकता है, उसको किले से बाहर जाने की इजाजत है। गुरु जी ने अपने लिए विशेष तौर पर 52 कलियों वाला चोगा तैयार करवाया। फिर सभी राजा गुरु जी के चोगे की एक-एक कली पकड़ कर बाहर आ गए। यूं गुरु जी ने अपने साथ 52 व्यक्तियों को भी रिहा करवाया, जिस कारण गुरु जी को बंदी छोड़ दाता कहा जाता है। 

 

बाबा बुड्ढा जी की अगुवाई में समूह संगत ने गुरु जी के अमृतसर साहिब में पहुंचने पर दीपमाला की। उसी दिन से लेकर आज तक अमृतसर में दीवाली का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है इसलिए कहा भी जाता है कि ‘दाल रोटी घर की, दीवाली अमृतसर की’। 

 

सिखों के चौथे गुरु रामदास जी ने 16वीं सदी में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नींव कार्तिक अमावस के दिन ही रखी थी तथा इस उपलक्ष्य में दीप जलाकर हर्षोल्लास से उत्सव मनाया गया। 
—गुरप्रीत सिंह नियामियां

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