Edited By Updated: 31 Jul, 2015 02:11 PM
समय बदल रहा है और समय के साथ ही समाज की सोच में भी काफी बदलाव आया है। अपने मां-पिता को भले ही बेटी कंधा और मुखाग्नि दे इसको अब गलत नहीं माना जाता
गुहला-चीका: समय बदल रहा है और समय के साथ ही समाज की सोच में भी काफी बदलाव आया है। अपने मां-पिता को भले ही बेटी कंधा और मुखाग्नि दे इसको अब गलत नहीं माना जाता जबकि पहले ऐसा नहीं होता था और बेटे का होना जरूरी माना जाता था। कुछ ऐसे ही देखने को मिला गुहला-चीका में जहां पांच बेटों व बीस से ज्यादा पोतों व पड़पोते-पड़पोतियों वाली सरबती देवी को उसकी बहुओं एवं बेटियों ने कंधा दिया। इसके बाद दोहतियों व पोतियों ने कंधा दिया।
अंत में बेटों व पोतों ने उनकी अर्थी को संभाला और उनका अंतिम संस्कार किया। सरबती देवी ने एक सामाजिक मुहिम से प्रभावित होकर अपने जीते-जी ही यह इच्छा जाहिर की थी कि उनकी मौत के बाद उन्हें बहू-बेटियां अपने कंधों पर शमशान भूमि तक ले जाए। सरबती देवी की मौत के बाद जैसे ही उनकी अर्थी को लेकर जब उनकी बहुएं कॉलोनी से निकली तो उनको देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई।
यहीं नहीं सरबती अपनी आंखें भी दान कर गईं। 87 साल की सरबती देवी कई साल पहले अपनी आंखें दान कर चुकी थीं। जिसके तहत उनकी मौत की सूचना के बाद डेरा सच्चा सौदा सिरसा के नेत्र बैंक की टीम पहुंची और उनकी आंखों को सुरक्षित रख लिया। जिनका भरा पूरा परिवार है फिर भी उनकी अर्थी को घर की महिलाएं कंधा दें, ये एक अनूठा उदाहरण है।