मां-बाप क्या गए, जिंदगी और घर में छा गया अंधेरा

Edited By Punjab Kesari, Updated: 01 Nov, 2017 12:44 PM

what happened to parents life and darkness fell in the house

मासूमों का बीमारी से ग्रस्त पिता संसार से विदा क्या हुआ, अगले ही कुछ पल बाद इन बच्चों की मां भी सांसारिक यात्रा को बाय-बाय कह गई और पीछे छोड़ गई 3 मासूम बच्चे और बूढ़ी मां। हम बात कर रहे हैं गांव बारवा के उस परिवार की जिसमें दीवाली से 2 दिन पूर्व...

थानेसर(नरूला): 3 मासूमों का बीमारी से ग्रस्त पिता संसार से विदा क्या हुआ, अगले ही कुछ पल बाद इन बच्चों की मां भी सांसारिक यात्रा को बाय-बाय कह गई और पीछे छोड़ गई 3 मासूम बच्चे और बूढ़ी मां। हम बात कर रहे हैं गांव बारवा के उस परिवार की जिसमें दीवाली से 2 दिन पूर्व टी.बी. से ग्रस्त परमाल ने दम तोड़ा। विगत दिवस उसकी पत्नी राधा भी इस संसार को छोड़कर अपने मासूम बच्चों को छोड़ गई।

परिवार में राहुल (7वीं कक्षा), राजेश (5वीं कक्षा), उनकी बहन (दूसरी कक्षा) व दादी सोना हैं। इसके बाद तो मानों इस परिवार पर विपदा का पहाड़ ही टूट पड़ा है। मृतक परमाल के बच्चों को अध्यापक पढ़ा तो रहे हैं किंतु जीवन की वास्तविक पढ़ाई करवाने में असमर्थ हैं। इस परिवार पर विपदाओं का पहाड़ टूट चुका है। गांव बारवा की इंदिरा कालोनी में परमाल व राधा की आकस्मिक से पूरे गांव में मातम छा गया। अब मासूम बच्चे अपनी दादी के साथ बिना लाइट के कच्चे मकान में अंधेरे में जीवन बसर करने को मजबूर हैं। अब उनकी जिंदगी में उजाला शायद काफी दूर चला गया है। परमाल 17 अक्तूबर को बीमारी से लड़ते-लड़ते जिंदगी की जंग का हार गया और सोचा होगा कि अब बच्चों की उनकी पत्नी राधा देखभाल करेगी लेकिन भगवान को यह भी मंजूर नहीं था। 21 अक्तूबर को भी परमाल की पत्नी राधा भी जिंदगी से हार गई।

पूर्व जि.प. चेयरमैन प्रवीण पहुंचे परिवार के द्वार पर
जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन प्रवीण चौधरी की पीठ थपथपाते हुए दादी ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि चौधरी जरूर घर आया था और सहायता का भी भरोसा दे गया है।

घर में न बिजली का कनैक्शन, न शौचालय और न खाने को कुछ
बच्चों की दादी जहां वृद्ध होने के कारण बीमार रहती है, वहीं इन बच्चों का पालन-पोषण करने में उसे पैंशन से गुजारा करना पड़ रहा है। घर के हालात यह हैं कि शौचालय तक नहीं। इसके लिए परिवार को अंधेरे का इंतजार करना पड़ता है। जिस घर में परिवार रहता है, वहां बिजली का नामोनिशान तक नहीं और अब जीवन भी अंधेरे से कम नहीं। ये बच्चे अक्सर घर से भूखे ही स्कूल जाते हैं। वहां से मिलने वाले मिड-डे मील से अपना पेट भरते हैं। जो उसमें से बचता है, उससे वे अपनी बूढ़ी दादी का पेट भरते हैं। अब यह बच्चे स्कूल से छुट्टी के बाद खेतों में जीरी की बालियां एकत्रित करते हैं ताकि परिवार का पालन-पोषण हो सके। ऐसे में इन बच्चों को रोशनी कौन दिखाएगा।

दादी की सांसें बच्चों में अटकीं; सता रही है भविष्य की चिंता
दादी सोना को बेटे व बहू की मौत के बाद अब बच्चों की जिम्मेदारी इस उम्र में सम्भाल पाना मुश्किल है। अब वृद्ध दादी अपनी बुढ़ापा पैंशन परिवार पर खर्च करेगी। पैंशन से पालन-पोषण नहीं हो पाएगा। ऐसे में उनको उनके भविष्य की ङ्क्षचता सताने लगी है। बहू की मौत हुई तो बहुत लोग दिलासा देने आए। जैसे-जैसे समय बढ़ता गया वो लोग दूर हटते गए। अब सहायता और दिलासा देने वाले नजर तक नहीं आ रहे।
 

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