तुगलकी फरमान: प्रमोशन चाहिए तो महिलाएं 4 साल तक न लें विशेष छुट्टियां(video)

Edited By Punjab Kesari, Updated: 13 Mar, 2018 08:23 PM

हरियाणा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी के निर्देशानुसार प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रमोट होने वाले और प्रमोट हो चुके डॉक्टरों के लिए स्वास्थ्य विभाग ने अनिवार्य किया है कि वह अपने चार साल के...

रोहतक(दीपक भारद्वाज): हरियाणा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी के निर्देशानुसार प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रमोट होने वाले और प्रमोट हो चुके डॉक्टरों के लिए स्वास्थ्य विभाग ने अनिवार्य किया है कि वह अपने चार साल के अनुभव के दौरान चाइल्ड केयर लीव, मैटरनिटी लीव, अर्बोशन लीव न लें। यदि उन्होंने यह छुट्टियां ली हैं तो वह प्रमोशन के योग्य नहीं होंगे और यह पूर्व और भविष्य में भी लागू होगा। डीएमईआर के तुगलकी फरमान के विरोध में एचएसएमटीए 15 मार्च को रणनीति तय करेगा।

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 हरियाणा स्टेट मेडिकल टीचर एसोसिएशन ने डीएमईआर की ओर से जारी निर्देशों पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रमोट होने के लिए चार साल के अनुभव की शर्तों का असर सीधे महिला डॉक्टरों पर पड़ेगा। यह शर्त महिला डॉक्टरों को पीछे धकेलने के अलावा कुछ नहीं है। इसके लिए एसोसिएशन 15 मार्च को बैठक करेगी और अधिकारी के इस निर्देश के विरोध में अपनी रणनीति तैयार करेगी। वहीं महिला डॉक्टरों ने तो स्वास्थ्य अधिकारी के जारी निर्देश को तुगलकी फरमान करार दिया है।

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एसोसिएशन के प्रधान डॉ. आरबी जैन ने इस संबंध में बताया कि सभी हैरान है कि कोई नियम नये सिरे से तो लागू किया जाता है, लेकिन बैक डेट में लागू करने का मामला पहली बार प्रकाश में आया है। सबसे बड़ी बात है कि पीजीआईएमएस के डॉक्टरों पर कोई भी फैसला सीधा सरकार या अधिकारी नहीं थोप सकते। हेल्थ विश्वविद्यालय एक ऑटोनोमस बॉडी है, यहां कोई भी नियम बगैर एग्जीक्यूटिव काउंसिल और अकेडमिक काउंसिल में पास हुए बिना लागू नहीं हो सकता।

महिला डॉक्टर क्यों उठा रही हैं सवाल
महिला डॉक्टरों की मानें तो अधिकारी जो नियम उन पर लाद रहे हैं, वह उन्हें मजबूर कर रहा है कि वह या तो अपना निजी जीवन चुने या कैरियर। क्योंकि दोनों एक साथ प्राप्त करना उनके लिए किसी चैलेंज से कम नहीं होगा। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी है, विशेषज्ञ तो तलाशने से भी नहीं मिलते। ऐसे में इस तरह के फरमान डॉक्टरों को प्रदेश छोडऩे के लिए मजबूर कर रहे हैं। जारी नियम का असर सीधा महिला डॉक्टरों पर ही अधिक पड़ रहा है।

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महिला डॉक्टरों ने रोष जताते हुए बताया कि 17 से 18 की आयु में लड़कियां 12वीं करती हैं। एमबीबीएस की तैयारी करने और डॉक्टर बनने में उनकी आयु 24 से 25 वर्ष की हो जाती है। एमडी करने तक उनकी आयु 28 से 30 वर्ष हो जाती है। इसके बाद एक वर्ष के अनुभव के बाद वह असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए आवेदन कर सकती हैं। अब नये नियम के अनुसार यदि उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर बनना है तो वह पहले तो शादी न करें और करें तो मां न बनें, क्योंकि चार साल का उनका अनुभव नियमित होना चाहिए। 

यह शर्त एक महिला के निजी जीवन को समस्या में डाल रहा है। क्योंकि मेडिकल साइंस 35 के बाद किसी महिला को मां बनने के लिए हाई रिस्क मानता है। कोई भी नियम किसी महिला को उसके मां बनने के अधिकार को नहीं छीन सकता।

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